पिछले दिनों जब हरियाणा विधानसभा चुनावों के नतीजे उम्मीद के मुताबिक एकदम उलट भाजपा की बड़ी जीत के रूप में सामने आये तभी से चुनाव आयोग की मिलीभगत से ईवीएम में छेड़खानी की आशंकाओं ने जोर पकड़ लिया था। अब चुनाव आयोग की नयी कारस्तानी ने इन आशंकाओं को और बल प्रदान कर दिया है।
पिछले वक्त में जब लोग ईवीएम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गये थे तो सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी थी कि चुनाव आयोग एक निश्चित समय तक ईवीएम सुरक्षित रखेगी और जिसे भी मतगणना पर आशंका है वह बूथवार अपने खर्चे पर ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों के मिलान की मांग कर सकेगा। उक्त भारी खर्चा जमा करने पर चुनाव आयोग को सम्बन्धित बूथों की ईवीएम व वीवीपैट पर्चियों का मिलान करना होगा।
हरियाणा चुनाव के बाद कांग्रेस ने डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटों पर परिणाम को लेकर शक जताया था। इसमें रानियां विधानसभा के 9 बूथों पर भी आपत्ति लगायी गयी थी। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी सर्वमित्र कम्बोज ने इन 9 बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट पर्ची से मिलान हेतु करीब सवा चार लाख रु. चुनाव आयोग में जमा कर दिये थे।
चुनाव आयोग ने इन 9 बूथों पर ईवीएम चेक करने का नोटिफिकेशन जारी किया। इस नोटिफिकेशन पर हरियाणा ही नहीं पूरे देश की नजर थी। ईवीएम चेक करने के लिए 9 जनवरी से 13 जनवरी तक 5 दिन का समय रखा गया। 9 मशीनों को चेक किया जाना था। 9 जनवरी को 2 ईवीएम चेकिंग के लिए निकाली गयीं। पहली मशीन जब निकाली गयी तो उसकी स्क्रीन पर इनवैलिड लिखा आया। यानी मशीन अब काम नहीं कर रही थी। इस प्रक्रिया की प्रशासन तो वीडियोग्राफी कर रहा था पर प्रत्याशी को वीडियोग्राफी नहीं करने दी गयी। अधिकारियों ने बताया कि जब मशीन सही तरीके से बंद नहीं की जाती तो वह इस तरह इनवैलिड दिखाने लगती है।
इससे आगे बढ़कर अधिकारियों ने ईवीएम चेकिंग की नयी प्रक्रिया घोषित कर डाली। उन्होंने कहा कि हम ईवीएम में पड़े मतों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान नहीं करेंगे बल्कि ईवीएम में पड़े वोटों को पहले मिटा देंगे और एक तरह से ईवीएम को नया बना कर नये सिरे से माक पोल करवा कर चेक करेंगे कि ईवीएम ठीक से काम कर रही है अन्यथा नहीं। कांग्रेस प्रत्याशी ने इस प्रक्रिया का यह कहते हुए विरोध किया कि उसने माक पोल के लिए आवेदन नहीं किया था और मोटी रकम उसी के लिए भरी थी। माक पोल तो चुनाव से पहले यह देखने के लिए कराया जाता है कि मशीन ठीक से काम कर रही है या नहीं। एक ईवीएम चेक करने के लिए करीब 48 हजार रु. भरने होते हैं। गौरतलब है कि अधिकारी ने एक ईवीएम का डाटा मिटा भी दिया। पर इस प्रक्रिया को रुकवाने के चलते अभी 8 ईवीएम सुरक्षित हैं। अब कांग्रेस प्रत्याशी फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं।
इस तरह चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश को भी मानने से इंकार कर दिया है। वह ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों के हिसाब को भी तैयार नहीं है। उसकी इस नयी पैंतरेबाजी से ईवीएम में छेड़छाड़ की आशंकाओं को और मजबूती मिली है। देखने की बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है।
-एक पाठक
चुनाव आयोग का नया पैंतरा
राष्ट्रीय
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आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?
सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।
समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।