हिन्दू फासीवाद विरोधी अभियान

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इंकलाबी मजदूर केन्द्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन व प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र फरवरी माहर में संयुक्त रूप से हिन्दू फासीवाद के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। अभियान में पर्चे-पुस्तिकाओं के माध्यम से आम जनता को हिन्दू फासीवादी ताकतों के बढ़ते वर्चस्व के प्रति सचेत किया जा रहा है और उनसे एकजुट हो फासीवादी खतरे का मुकाबला करने का आह्वान किया जा रहा है। यह अभियान उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली व हरियाणा के विभिन्न इलाकों में संचालित किया जा रहा है। 
    
अभियान हेतु जारी पुस्तिकाओं में हिन्दू फासीवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काले कारनामों, उसकी घृणित विचारधारा को उजागर किया जा रहा है। साथ ही हिटलर-मुसोलिनी के नाजीवाद-फासीवाद से हिन्दू फासीवादियों की तुलना प्रस्तुत करने वाली पुस्तिका भी वितरित की जा रही है। 
    
अभियान के दौरान घर-घर जाकर, नुक्कड़ सभायें कर आम जनता को यह संदेश दिया जा रहा है कि संघ-भाजपा के द्वारा समाज में एक ओर अम्बानी-अडाणी सरीखे पूंजीपतियों के मुनाफे की खातिर आम जनता की सुख-सुविधाओं पर हमला बोला जा रहा है। वहीं दूसरी ओर जनता इस हमले का प्रतिकार न कर सके इसलिए तरह-तरह के फर्जी मुद्दे उछालकर साम्प्रदायिक विभाजन पैदा किया जा रहा है। साथ ही जनता के जनवादी अधिकारों को छीनने का काम भी मोदी सरकार कर रही है।
    
बड़ी एकाधिकारी पूंजी व संघ का नापाक गठजोड़ लगातार देश को उस दिशा में ले जा रहा है जहां वे जनता के सारे जनवादी अधिकार छीन फासीवादी हिन्दू राष्ट्र कायम कर लेंगे। ऐसे में इनके जनविरोधी कदमों को रोकने, अपने छिनते अधिकारों को बचाने का काम मजदूर वर्ग के नेतृत्व में ही आम जनता कर सकती है। 
    
अभियान के दौरान संघी लम्पट जगह-जगह व्यवधान पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। हरिद्वार में इन लंपटों के साथ-साथ पुलिस भी व्यवधान डालने लगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलते हुए पुलिस अभियान हेतु अनुमति न होने की बात करने लगी। संगठनों के कार्यकर्ताओं ने संघी लम्पटों-पुलिस के हस्तक्षेप को धता बताते हुए अभियान लगातार जारी रखा है। 
    
अपने व्यवहार से संघी लम्पट खुद साबित कर रहे हैं कि वे किसी भी हद तक जाकर फासीवादी हिन्दू राष्ट्र बनाने को तैयार हैं। इसके लिए कानूनी स्वतंत्रताओं को छीनने से, कानून को ठेंगा दिखाने से भी उन्हें गुरेज नहीं है। हिटलर के ये वंशज सोचते हैं कि इस सदी में वे अजेय हैं। वे भूल जाते हैं कि हिटलर की औलादें कभी भी पैदा हों, उनका हश्र हिटलर की मौत सरीखा ही होगा। 
            -विशेष संवाददाता 

आलेख

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

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युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

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हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

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अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।