जी-7 : लुटेरों का जमावड़ा

जी-7 सम्मेलन 13-15 जून 24 को इटली में सम्पन्न होना है। इस बार यह सम्मेलन इटली के दक्षिणी क्षेत्र में आयोजित हो रहा है। जी-7 इटली, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, जापान, यूके और अमेरिका का समूह है। यूरोपीय संघ भी इसका भागीदार है। यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व यूरोपीय काउंसिल व यूरोपीय कमीशन के अध्यक्ष करते हैं। इसके अलावा कुछ विशेष सत्रों के लिए इस बार अफ्रीकी विकास बैंक, अल्जीरिया, यूक्रेन, अर्जेण्टीना, ब्राजील, भारत, आईएमएफ, जार्डन, केन्या, मारीटीनिया, ट्यूनीशिया, तुर्की, संयुक्त राष्ट्र संघ, ओईसीडी, वर्ल्ड बैंक, संयुक्त अरब अमीरात के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया गया है। पोप भी इसके कुछ सत्र में शामिल होंगे। 
    
13 जून को सम्मेलन की शुरूआत से पूर्व अमेरिका ने रूस पर नये प्रतिबंधों की घोषणा कर दी। इन प्रतिबंधों पर बाकी जी-7 के देशों ने सहमति दे दी। यूक्रेन को 50 अरब डालर की संयुक्त मदद के साथ रूस के फ्रीज किये गये फण्ड के ब्याज से यूक्रेन की मदद पर सहमति जतायी गयी। जी-7 के इन कदमों की प्रतिक्रिया में रूस ने अपने शेयर बाजार में डालर व यूरो में लेन देन रोकने की घोषणा कर दी। रूस-यूक्रेन के मसले पर जी-7 के देश जहां एकजुट तरीके से यूक्रेन के साथ दिखे वहीं गाजा नरसंहार के मसले पर देशों के बीच मतभेद नजर आये। हालांकि युद्ध विराम के अमेरिकी प्रस्ताव पर हमास को सहमत कराने को सब तत्पर नजर आये। 
    
सम्मेलन के पहले दिन भारत को भी रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ अवस्थिति बदल यूक्रेन के पक्ष में आने का आह्वान हुआ। अमेरिका भारत पर रूसी तेल गैस खरीद रोकने का दबाव बनाना चाहता है। देखना है कि भारत इस दबाव के आगे झुकता है या नहीं। 
    
अबार्शन के मुद्दे पर इटली सरकार इसके विरोध में खड़ी नजर आयी। इस सम्मेलन में बाइडेन ने आधारभूत क्षेत्र में 60 अरब डालर निवेश की अमेरिकी योजना घोषित की। सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा युद्ध, आर्टिफिशियल इंटेजीलेंस, पर्यावरण, आधारभूत क्षेत्र में निवेश, अफ्रीका, ऊर्जा संक्रमण आदि मुद्दों पर चर्चा होनी है। 
    
गौरतलब है कि विश्व अर्थव्यवस्था के लगभग 45 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले ये पश्चिमी साम्राज्यवादी देश रूसी-चीनी साम्राज्यवाद से कड़ी चुनौती झेल रहे हैं। इनमें मोटे तौर पर कुछ बातों की सहमति है तो कई अंतरविरोध भी हैं। दुनिया की जनता को लूटने पर ये लुटेरे एकमत हैं तो रूस-चीन के प्रति झगड़े में इनके रुख भिन्नता लिये हैं। विकासशील देशों को दबाव डाल अपने एजेण्डे पर चलाने में इनमें एकता है तो पर्यावरण व ऊर्जा मसलों पर भिन्नता है। 
    
रूस-यूक्रेन मसले पर पहले दिन बनी सहमति से यही प्रतीत होता है कि 15 जून को ये किसी साझे दिखावटी वक्तव्य पर पहुंच जायेंगे। पर यह वक्तव्य आज की दुनिया के महत्वपूर्ण प्रश्नों-युद्धों को हल कराने में कुछ भी कारगर नहीं होगा। लुटेरे अपनी एकता की झूठी नौटंकी ही अधिक करेंगे। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।