नगीना कालोनी बचाने को कालोनीवासी एकजुट

लालकुआं/ रेलवे द्वारा नगीना कालोनी, लालकुआं (नैनीताल) उत्तराखंड को खाली करने का नोटिस लगाये जाने के विरोध में 7 मई को नगीना कालोनी बचाओ संघर्ष समिति, लालकुआं (नैनीताल) द्वारा एक आपातकालीन आम सभा आयोजित की गयी, जिसमें विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की।
    

आम सभा में वक्ताओं ने कहा कि पिछले 40-50 सालों से लोग नगीना कालोनी में निवास कर रहे हैं। 3 मई को रेलवे ने 10 दिन के अंदर कालोनी खाली करने का नोटिस लगाया है जो कि सरासर गलत है। रेलवे इससे पहले भी कई बार कालोनी में नोटिस चस्पा कर चुका है। कालोनी वासियों के पास वोटर कार्ड सहित विभिन्न पहचान पत्र हैं। यहां बिजली-पानी कनेक्शन, सरकारी स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र, राशन की दुकान (कंट्रोल), स्थाई निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र इत्यादि भी मौजूद हैं। ऐसे में यह कालोनी भला कैसे अवैध है?
    

नगीना कालोनी में रहने वाले लोग गरीब, मजदूर-मेहनतकश हैं जो राजमिस्त्री, बढ़ई, मजदूरी, फड़, ठेला, सेंचुरी कंपनी में ठेका मजदूर, गौला नदी में मजदूरी इत्यादि जगह मजदूरी का काम करते हैं। गरीब, मजदूर-मेहनतकश अपनी मेहनत और हुनर से लालकुआं शहर सहित आस-पास के इलाकों को भी बनाने और सजाने-संवारने का काम करते हैं। वे देश की लोकसभा हेतु सांसद और प्रदेश की विधानसभा हेतु विधायक भी चुनकर भेजते हैं। लेकिन इसके बावजूद उनकी कालोनी को अवैध बताकर खाली करने का नोटिस लगाया जा रहा है और बार-बार लगाया जा रहा है जो कि सरासर अन्याय है।
    

कालोनी में सरकारों ने पिछले कई वर्षों से एक नागरिक के बतौर नागरिक की सुविधाएं दी गई हैं। (2014 में इस कालोनी को बिन्दुखत्ता नगरपालिका में शामिल किया गया था। बाद में नगरपालिका वापस हो गई थी।) सरकारों ने तो रेलवे की भूमि पर कब्जा कर सरकारी स्कूल आदि सुविधाएं नहीं दी होंगी? पहले उत्तर प्रदेश सरकार फिर उत्तराखंड सरकार ने तो अपनी भूमि पर ही यह सुविधाएं दीं। फिर क्यों बार-बार नोटिस लगाकर कालोनीवासियों को परेशान किया जा रहा है?
    

वक्ताओं ने कहा कि हमारे देश के अंदर जहां भी गरीब, मेहनतकश लोग रहते हैं, उनके साथ में सरकारें इसी तरह का अन्याय कर रही हैं। कहीं रेलवे की भूमि के नाम पर, कहीं किसी अन्य नाम पर मेहनतकशों की जमीन खाली कराई जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’। यहां नगीना कालोनी में तो उल्टा हाल किया जा रहा है। कच्चे मकान और झुग्गी-झोंपड़ी वालों को पक्के मकान देने की जगह उनकी झोंपड़ियों को ही हटाया जा रहा है। प्रधानमंत्री की इन बातों का क्या हुआ? 
    

अभी हाल ही में हल्द्वानी के बनभूलपुरा के हजारों लोगों को उनके घरों से बेदखल करने का आदेश उच्च न्यायलय, उत्तराखंड ने दिया था, जो कि लोगों के भारी विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये स्टे के चलते फिलहाल रुका हुआ है। सरकारें गरीबों के घरों को उजाड़ जा रही हैं ताकि उनकी जगहों पर देशी-विदेशी कारपोरेट पूंजीपति अपने होटल, रिजॉर्ट, मॉल इत्यादि बना सकें और मुनाफे के केन्द्र खोल सकें। प्रदेश की धामी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार तो एकदम नग्न होकर पूंजीपतियों के लिये काम कर रही हैं। 
    

आम सभा में लालकुआं की नगीना बस्ती हो या हल्द्वानी की बनभूलपुरा बस्ती अथवा पूरे देश में कहीं भी ‘अवैध’ बताकर गरीब मजदूर-मेहनतकश जनता को उजाड़े जाने के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया गया। साथ ही नगीना कालोनी खाली करने के रेलवे के नोटिस के विरोध में इज्जतनगर रेलवे मंडल सहित विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों को ज्ञापन देने व लालकुआं शहर में विरोध-प्रदर्शन करने का फैसला भी लिया गया। 
    

9 मई को जिलाधिकारी नैनीताल के नाम इंजीनियर प्रथम इज्जतनगर मंडल रेलवे के नाम से एक पत्र भेजा गया है जिसमें 18 मई को कॉलोनी खाली कराने के लिए स्थानीय प्रशासन से सहयोग की मांग की गई है।
    

आम सभा के फैसले के तहत 10 मई को लालकुआं शहर में जुलूस निकालकर तहसीलदार, लालकुआं के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार को ज्ञापन भेजा गया। ज्ञापन में नगीना कालोनी को बचाने की मांग मुख्यमंत्री से की गई। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं, नौजवानों एवं बच्चों ने भागीदारी की।
    

बस्ती खाली करने की बात को लेकर बस्तीवासियों के अंदर चिंता का माहौल बना हुआ है। गरीब, मजदूर लोग उनके कच्चे मकान, झुग्गी झोपड़ियां खाली हो जाएंगी तो वे कहां जाएंगे? उनके छोटे-छोटे बच्चों सहित स्कूल पढ़ने वाले छात्र कहां जाएंगे? गर्भवती महिलाओं, बीमार, बूढ़े लोगों का क्या होगा। इन्हीं सब चिंताओं के बावजूद भी कॉलोनी के लोग लंबी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं। वह कानूनी लड़ाई और सड़क के जरिए संघर्षों के लिए मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं।
    

आम सभा का संचालन नगीना कॉलोनी बचाओ संघर्ष समिति की अध्यक्ष बिंदु गुप्ता और सचिव अंचल कुमार ने संयुक्त रूप से किया। आम सभा में ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र, परिवर्तनकामी छात्र संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, युवा शिल्पकार समाज संगठन, प्रगतिशील युवा संगठन, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, मजदूर सहयोग केंद्र, इंटरार्क मजदूर संगठन पन्तनगर एवं भाकपा (माले) प्रतिनिधियों के अलावा बड़ी संख्या में कालोनीवासियों ने भागीदारी की।         -लालकुआं संवाददाता
 

आलेख

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

/samooche-pashcim-asia-men-yudha-phailaane-kaa-prayaas

इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी। 

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया।