वक्त की पुकार

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चल उठ ओ नौजवान
कब से सोया है? सपनों में खोया है
तेरे सामने जिंदगी खड़ी है
आ कदम मिला तू कर ले फैसला
ये इम्तिहान की सख्त घड़ी है।

किस किस पे भरोसा करता है
झूठे वादों मे यकीं तू करता है,
एक लम्हा जीने की चाहत में
हर रोज तू थोड़ा मरता है
कभी खुद पे भरोसा कर तो सही
सूरज को मुट्ठी में भर तो सही
इस पार अंधेरा घना है लेकिन
उस पार तो सुबह है खड़ी हुई।

उधर कोठियों मे गोदाम भरे हैं
इधर राशन की लंबी लाइन है लगी हुई
हर नुक्कड़, हर चौराहे पर
बेरोजगारों की फौज है खड़ी हुई
पेट की खातिर जिस्म बेचती
महिलाओं की भीड़ बड़ी है
आ कदम मिला तू कर ले फैसला
ये इम्तिहान की सख्त घड़ी है।
        -भारत सिंह, आंवला

आलेख

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