लाइन में लगने का अनुभव

हरियाणा के जिला फरीदाबाद के लघु सचिवालय में सुबह के 8 बजे हैं। लघु सचिवालय के मेन गेट से अन्दर जाने के बाद दायीं ओर जाने पर अंत में दो खिड़कियां हैं। सिर्फ खिड़कियां हैं कोई बोर्ड नहीं लगा है और न ही किसी प्रकार की कोई ऐसी सूचना है कि आपको कोई सूचना मिल सके। मोदी के अमेरिका में भव्य स्वागत की सूचना तो पहले ही मिल चुकी है (मन में एक डर तो यह था कि पता नहीं आज भी काम होगा कि नहीं दूसरा बेवकूफी वाला डर ये भी लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि वहां की जनता बाइडेन को हटाकर मोदी को अपना राष्ट्रपति न बना ले, लेकिन अच्छा हुआ कि ऐसी कोई खबर नहीं आई)। एक खिड़की पर महिलाएं लाइन में लगने लगी हैं और दूसरे पर पुरुष। ये सब लोग लाइन में इसलिए लगे है कि परिवार पहचान पत्र को सही करा सकें। बिना परिवार पहचान पत्र के हरियाणा में कोई भी काम नहीं हो पा रहा है। बच्चों के स्कूल में प्रवेश के लिए, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, राशन के लिए परिवार पहचान पत्र जरूरी है। परिवार पहचान पत्र में ज्यादातर लोगों की आय अधिक दिखा रखी है, इसलिए उनका राशन बंद हो गया है इसके लिए पहचान पत्र में आय कम करवानी है। लेकिन किसी काम के लिए पहले लाइन में लगना पड़ता है और नम्बर आता है कम से कम 2-3 घंटे बाद। तब पता चलता है कि ये काम तो ऐसे नहीं होगा। पहले ये करवाकर लाओ। जितने लोग लाइन में लगे होते हैं उनमें से आधे से ज्यादा लोगों के काम तो हो ही नहीं पाते। कोई स्त्री घरेलू महिला है लेकिन उसकी आय दिखा रखी है और उसे राशन लेने से वंचित कर दिया गया है। किसी का एडमिशन रुका पड़ा है। हरियाणा में आधार के अलावा भी परिवार पहचान पत्र हर काम में जरूरी कर दिया गया है। यहां तक कि यहां रहने के लिए भी यह जरूरी बन गया है। हरियाणा सरकार की किसी स्कीम का लाभ नहीं भी लेना है तो भी यह जरूरी हो गया है। यहां तक कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर भी दबाव बनाया जा रहा है कि वे परिवार पहचान पत्र जमा करें। परिवार पहचान पत्र के लिए स्कूलों पर दबाव बनाया जा रहा है। स्कूल बच्चों पर दबाव बना रहे हैं। बच्चे अपने मां-बाप पर दबाव डाल रहे हैं। 
    
जब परिवार में बाप-बेटे और भाइयों में आपस में बन नहीं रही, ऐसे समय में सरकार बाप-दादा से लेकर नाती-पोतों का डाटा इकट्ठा करके कागज पर परिवार बना रही है। अब तक जो परिवार एक साथ रह रहे थे उनके लिए एक मुसीबत बन गयी है। सबकी एक परिवार आई डी अर्थात पहचान पत्र होने से सबकी आय जोड़कर ज्यादा हो जा रही थी। इसलिए उनके लिए मजबूरी बन गयी कि वे अलग-अलग आईडी बनवायें। एक परिवार पहचान पत्र से अलग-अलग पहचान पत्र बनवाना भी एक बड़ी मुसीबत से कम नहीं है। निजी आपरेटर जिसको सीएससी सेन्टर कहते हैं, सरकार ने पहले उनको इस सब काम के बहुत से अधिकार दिये लेकिन गड़बड़ी होने पर उनसे ये अधिकार वापस ले लिये जैसे आधार कार्ड के साथ हुआ। 
    
कुछ सवालों के जवाब स्कूल प्रशासन के पास भी नहीं होते। एक परिवार की बेटी की शादी उत्तर प्रदेश में हो गयी थी। कुछ समय बाद उसके एक बच्चा हुआ। नौकरी आदि की वजह से वह बच्चा अपनी ननिहाल जो कि फरीदाबाद में है, आकर रहने लगा और यह सामान्य बात है। उसका एडमिशन भी पास के निजी स्कूल में करा दिया गया। दो साल तक कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन अब उससे परिवार पहचान पत्र मांगा जा रहा है। क्योंकि उसके माता-पिता तो उत्तर प्रदेश में रहते हैं तो उनका परिवार पहचान पत्र नहीं बन सकता। सरकारों ने इतने ज्यादा पहचान पत्र और आई डी बना रखी हैं और गरीबों के नाम तो उनमें मैच ही नहीं करते। परिवार में किसी की शादी हो गयी है और सुबह से वह लाइन में लगा है अपनी पत्नी का नाम जुड़वाने के लिए। आज सोचकर आया था कि आज छुट्टी करके नाम जुड़वाना ही है। लेकिन 5 सेकेंड के अन्दर खिड़की के अन्दर से आवाज आती है कि पहले मैरिज सर्टिफिकेट लाओ। ये फरक है खिड़की के अन्दर और बाहर वाले में। खिड़की के बाहर ये जानवर (समझदार लोग जानवर को इंसान पढ़ें) 3 घंटे से खड़ा है। अन्दर बैठा हुआ इंसान या तो एक पुरुष होता या औरत लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसकी खिड़की और अन्दर की ओर दूसरे सहयोगी और अफसर बैठे हुए हैं। जो ज्यादा सीनियर अफसर है वह ट्रेनिंग पर गया हुआ है (समझदार लोग गये हुए हैं पढ़ें)। इस विंडो और आफिस में काम करने वाले लोगों का समय शुरू होता है सुबह 9ः30 बजे से। अब कोई आते ही तो काम में नहीं जुट जायेगा। सुबह एक समस्या और भी कि जब कम्यूटर ऑन किये तो बार-बार लाइट चली जा रही थी। खिड़की के बाहर लोग फिर भी शांति से खड़े हैं, कोई शोर-शराबा नहीं है। लाइट जाने का कारण स्वीपर को पता था और उसने आकर बताया कि एमसीबी ट्रिप कर जा रही है। लाइट चले जाने के कारण किसी को कोई तनाव नहीं था। वैसे भी उस दिन योगा दिवस था तो तनाव तो होना नहीं था लेकिन बाहर खड़े लोगों का योगा तो रोज ही हो जाता है। बाहर खड़े लोगों की लाइन लम्बी होती रहती है लेकिन खिड़की के अन्दर बैठे लोगों पर कोई दबाव नहीं होता। चाय-पानी और लंच ब्रेक तो होता ही है। बीच-बीच में खिड़की के अन्दर बैठे लोगों के पास फोन भी आते रहते हैं उस पर आराम से बात की जाती है। यह सब तो नीचे के आफिस में हो रहा है। इसके ऊपर की मंजिल पर एडीसी और डीसी के आफिस भी हैं। लेकिन उनको इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने तो इतिहास, भूगोल, जनरल नॉलेज की खूब तैयारी करके आईएएस की परीक्षा पास कर ली है। परीक्षा पास करने के बाद पब्लिक मैनेजमेंट की ट्रेनिंग भारत सरकार कराती है वह भी उत्तराखंड के मसूरी की हसीन वादियों में।
    
इतना पढ़ने के बाद लग सकता है कि ठीक से लिखा नहीं गया है या सब कुछ बिखरा हुआ है। ये बात सच है ऊपर लिखी गयी बातें बिखरी हुई हैं। लेकिन यह केवल लिखने में नहीं है, असलियत में ही चीजें बिखरी हुई हैं। वह जानवर जिसको बताया गया है कि पत्नी का नाम जुड़वाने के लिए शादी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लाओ, तो वहां जाने पर पता चलेगा कि ये काम शुक्रवार या मंगलवार को होता है। जब मंगलवार को पहुंचेगा तो शादी की फोटो और शादी का कार्ड लगाओ या इसी टाइप का कुछ और। और ये सिलसिला चलता रहेगा। यहां पर भी पब्लिक मैनेजमेंट की ट्रेनिंग किये हुए कोई अधिकारी इसका हेड होता है। खास बात तो यह है इनको यही पब्लिक बहुत समझदार समझती है और अपने बच्चों को भी वैसा बनाना चाहती है। 
    
इन लम्बी लाइनों में कोई भी मुझे पैसे वाला नजर नहीं आया। मन में यह बात बार-बार आ रही थी कि ये पैसे वालों का काम कैसे होते हैं। इनके नाम में फर्क नहीं होता लेकिन शादी और एक-आध बच्चे तो होते ही हैं। उनका नाम कैसे जुड़ता है। यही सवाल मैंने एक बहुत थोड़े से समझदार से पूछ लिया। लेकिन वह तो पूरा बेवकूफ निकला और बोला कि उनका काम करने तो ये उनके घर और आफिस जाते हैं। उसकी बेवकूफी का असर मुझ पर भी हुआ। मेरे मन में भी आया कि कैसा रहेगा कि यदि इन लाइन में खड़े लोगों को अन्दर एयर कंडीशन में बैठा दिया जाय और काम करने वालों को बाहर खड़े होकर काम करवाया जाय और जब तक सबका काम न हो जाय कोई अधिकारी घर नहीं जायेगा। हजारों लोग रोज आते हैं और आधे से ज्यादा बिन काम हुए लौट जाते हैं ये है काम करने का तरीका। आधे से ज्यादा लोगों के परिवार पहचान पत्र में गड़बड़ी है लेकिन कोई नहीं पूछता कि गलत कैसे बन गये, किसने बनाये। किसने उसकी आई डी की डिटेल डाली और किसने उसकी जाति डाली। 
    
जन जो अब जानवर जैसी हालत में है वह कहीं नहीं जा सकता। अधिकारी का आफिस इतना बड़ा है और उसमें बीस कुर्सियां लगी हुयी हैं। बाहर संतरी खड़ा है गन लेकर। लग्जरी ऑफिस में बैठने वाले, अपने अधीनस्थों पर रुआब झाड़ने वाले जानवर रूपी आम जन से क्या बात करेंगे जो अपनी बात भी ठीक ढंग से नहीं रख पाते। अधिकारी चाहे जहां का हो लेकिन उनमें एक खास बात होती है कि छोटे लोगों से बात करने पर उनका मूड खराब हो जाता है और जाहिर सी बात है कि कोई भी अधिकारी अपना मूड तो खराब नहीं करना चाहेगा।             -एक पाठक, फरीदाबाद 

आलेख

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तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

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यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।