न्यूनतम वेतनमान में मामूली बढ़ोत्तरी भी पूंजीपतियों को बर्दाश्त नहीं

उत्तराखंड में निजी क्षेत्र की फैक्टरियों, दुकानों एवं अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले मजदूरों हेतु घोषित नये न्यूनतम वेतनमान को राज्य के ज्यादातर पूंजीपति लागू करने को तैयार नहीं हैं। इसके कारण सिडकुल की फैक्टरियों में मजदूरों में आक्रोश पनप रहा है। अभी तक सिडकुल के दोनों ही प्रमुख केंद्र- रुद्रपुर एवं हरिद्वार- में कई फैक्टरियों के मजदूर सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन कर नये न्यूनतम वेतनमान को लागू करने की मांग कर चुके हैं।
    
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा पांच साल बाद नया न्यूनतम वेतनमान घोषित किया गया है, जो कि इंजीनियरिंग उद्योगों में 50 से ज्यादा मजदूरों वाली फैक्टरियों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों-फैक्टरियों में 1 अप्रैल, 2024 से लागू होना है। इसके तहत अब मजदूरों की विभिन्न श्रेणियों का न्यूनतम वेतन- अकुशल मजदूर (हेल्पर) का 12,500 रु., अर्धकुशल मजदूर (सहायक मशीन आपरेटर) का 12,933 रु., कुशल मजदूर (आपरेटर) का 13,365 रु. एवं उच्च कुशल मजदूर (फोरमैन/सीनियर) का 14,093 रु. प्रतिमाह घोषित किया गया है। इसी तरह लिपिक वर्गीय कर्मचारियों में श्रेणी एक का 14,093 रु. एवं श्रेणी दो का 13,351 रु. प्रतिमाह न्यूनतम वेतनमान तय हुआ है। इसके अलावा दुकान, निर्माण, होटल, स्कूल आदि विभिन्न श्रेणियों के लिए भी बढ़े हुए न्यूनतम वेतनमान की घोषणा हुई है। (देखें तालिका)न्यूनतम वेतन
    
वैसे तो आज की बेतहाशा महंगाई के मद्देनजर उपरोक्त नया न्यूनतम वेतनमान बहुत ही कम है, लेकिन उत्तराखंड सरकार द्वारा घोषित इस बेहद कम न्यूनतम वेतन को भी पूंजीपति लागू करने को तैयार नहीं हैं। खबर यह भी आ रही है कि वे इसके विरोध में हाईकोर्ट का रुख कर चुके हैं। ऐसे में मजदूरों को इस बढ़े हुये वेतनमान को हासिल करने के लिये सड़क के संघर्ष को तेज करना होगा।
    
यदि जीवन जीने की बुनियादी जरूरतों का आंकलन किया जाये तो आज एक मजदूर का न्यूनतम वेतन तीस हजार रु. प्रतिमाह से कम कदापि नहीं होना चाहिये। लेकिन पूंजीपतियों की निगाह में मजदूर इंसान नहीं बल्कि मुनाफा पैदा करने वाले औजार मात्र होते हैं और इस ‘मैन पावर’ का अतिशय शोषण कर वे अकूत मुनाफा कमाते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि पूंजीपतियों की सरकार इसमें उनका बखूबी साथ निभाती है, इसीलिये सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतनमान इतना कम होता है।
    
लेकिन अपनी मुनाफे की हवस में ये धनपशु पूंजीपति इसे भी लागू नहीं करना चाहते। इतना ही नहीं ये मजदूरों से जबरन ओवर टाइम  करवाते हैं और उसका कानूनन दोगुनी दर से भुगतान भी नहीं करते हैं। इसके अलावा और भी दसियों तरह से श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन करते हैं। इस सबके विरुद्ध मजदूरों को संगठित होकर संघर्ष करना होगा; उन्हें अपने संघर्षों को क्रांतिकारी धार देनी होगी। साथ ही, इस सच्चाई को जानना-समझना होगा कि खेत-खलिहान में हो या फैक्टरी-कारखाने में, किसी भी उत्पादन का स्रोत मानव श्रम होता है और पूंजीपतियों का मुनाफा इसी श्रम की लूट से आता है, जिसका अंत इस पूंजीवादी व्यवस्था के अंत के साथ ही संभव है, और तब मजदूरों के श्रम के उत्पाद का मालिक कोई पूंजीपति नहीं बल्कि मजदूर स्वयं होंगे। 

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।