फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में अमेरिकी छात्र-छात्राओं का संघर्ष जिंदाबाद !

पिछले कई दिनों से अमेरिका में एक के बाद एक विश्वविद्यालयों में छात्रों के प्रदर्शन हो रहे हैं। लगभग 25 विश्वविद्यालय के छात्र अपने कैंपस में प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर्शन फिलिस्तीन पर जारी नरसंहार के खिलाफ हैं। छात्रों की मांग है कि यह नरसंहार तुरंत रोका जाये।
    
18 अप्रैल को कोलंबिया यूनिवर्सिटी से यह प्रदर्शन शुरू हुआ। कोलंबिया विश्वविद्यालय के हजारों छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में हरे टेंट लगाकर प्रदर्शन किया। उन्होंने इसे ‘गाजा एकजुटता शिविर’ का नाम दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस आंदोलन का दमन किया गया। करीब 108 से ज्यादा छात्रों को गिरफ्तार कर लिया गया। कई छात्रों को यूनिवर्सिटी प्रशासन ने निलंबित कर दिया। इसके विरोध में छात्रों ने कैंपस के ही अंदर दूसरी जगह प्रदर्शन शुरू कर दिया। छात्रों की अन्य मांगें हैं कि यूनिवर्सिटी उन कंपनियों में सभी तरह के इन्वेस्ट खत्म करे जिनका इजरायल से किसी भी तरह का कोई लेना देना है। जो छात्र अभी तक पुलिस की कैद में हैं उन्हें रिहा किया जाये। यूनिवर्सिटी द्वारा निलम्बित किए छात्रों को फिर से बहाल किया जाये।
    
फिलिस्तीन और कोलंबिया के छात्रों के समर्थन में इसी तरह के प्रदर्शन येल यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी आफ नार्थ कैरोलिना, यूनिवर्सिटी आफ मेलबर्न, ब्राउन यूनिवर्सिटी समेत दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों में हुए। आज अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में यह आंदोलन फैल चुका है।
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यह तय है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन के नरसंहार के विरोध में हो रहे यह प्रदर्शन तारीफ के काबिल हैं। परिवर्तनकामी छात्र संगठन अमेरिकी छात्रों के संघर्षों से पूर्ण एकजुटता प्रदर्शित करते हुए मांग करता है कि फिलिस्तीनी जनता के नरसंहार पर तत्काल रोक लगाई जाए। साथ ही अमेरिकी छात्रों का दमन बंद किया जाए और गिरफ्तार छात्रों को तत्काल रिहा किया जाए।
    
-परिवर्तनकामी छात्र संगठन
 

आलेख

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ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

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पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

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