
उत्तराखण्ड सरकार ने 1 अप्रैल 2024 से मजदूरों के लिए नया न्यूनतम वेतनमान लागू किया है। जिसमें कुशल, अकुशल (हेल्पर) अर्ध कुशल आदि का वेतन 12,500 रुपये से लेकर 13,551 रुपये तक होगा। लेकिन इस वेतन बढ़ोत्तरी में उत्तराखण्ड के सरकारी प्राइमरी जूनियन स्कूलों में खाना बनाने वाली भोजनमाताएं नहीं आतीं जो पिछले 19-20 सालों से खाना बनाने के अलावा स्कूलों में वो सारे कार्य करती हैं जो एक चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी करता है। सरकार ने स्कूलों में खाना बनाने वाली भोजनमाताओं को कोई राहत नहीं दी है।
सरकार को इन भोजनमाताओं की तकलीफ से कोई सरोकार नहीं है। स्कूल के बिना हवादार किचन में 200 से 600 या जहां जितनी छात्र संख्या हो, के हिसाब से खाना बनवाया जाता है। ये भोजनमाताएं एक मजदूर की श्रेणी से भी बाहर हैं। जहां सरकार खुद बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा देती है वहीं दूसरी ओर वो अपनी बेटियों को बेगारी करने पर मजबूर करती है। बता दें कि इनको मात्र 3000 रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जाता है जिसमें इनको पूरे साल में सरकार या संस्थान की तरफ से कोई अवकाश नहीं मिलता। किसी इमरजेंसी में अगर ये छुट्टी कर भी लें तो इनको डराया-धमकाया या स्कूलों से नोटिस देकर बाहर (स्कूल प्रशासन द्वारा या समिति द्वारा) कर दिया जाता है। मात्र 3000 में ये अपने पूरे घर का खर्च चलाती हैं। आज की महंगाई में 3000 रु. में घर खर्च तो पूरा नहीं होता है। सरकारें खुद इनके अशिक्षित होने का फायदा उठाती हैं।
जहां संविधान में हर व्यक्ति समान है लिखा गया हो वहीं अशिक्षित व गरीबी का सरकार खुद फायदा उठाती है। साथ ही स्कूलों में खाना सप्लाई करने हेतु एनजीओ अक्षयपात्र फाउंडेशन को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इसका लक्ष्य भोजनमाताओं की नौकरी छीन लेना है। प्रगतिशील भोजनमाता संगठन (उत्तराखण्ड) लम्बे समय से विरोध कर रहा है व सरकार से भोजनमाताओं की मांगों को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन-जुलूस करता रहता है। अपने हक की लड़ाई लड़कर भोजनमाताओं को इस निकम्मी बहरी सरकार को जगाना होगा व इसको बताना होगा कि हमें हमारा अधिकार चाहिए। हमें हमारे काम का पूर्ण वेतन चाहिए जो हमें संघर्ष की राह पर चलकर ही मिलेगा।
-एक पाठक, काशीपुर