काशीपुर/ अंततः 6 दिन के बाद काशीपुर (उधमसिंह नगर, उत्तराखंड) के कुंडेश्वरी स्थित दवाई निर्माता कम्पनी विविमेड के मजदूरों की हड़ताल 22 जून को खत्म हो गयी। ये मजदूर 17 जून से हड़ताल पर थे।
जब मजदूर कम्पनी के बाहर हड़ताल पर बैठे तो उनकी मुख्य मांग मार्च,2021 से उनके जमा न किये गये पी एफ को जमा करने को लेकर थी। साथ ही मजदूरों की मांग अपनी वेतन वृद्धि को लेकर भी थी। जिन मजदूरों को यहां काम करते-करते कई-कई साल हो चुके हैं उनकी तीन साल से वेतन वृद्धि नहीं हुई है। साथ ही जो मजदूर (ज्यादातर महिला मजदूर) ठेके के तहत यहां काम कर रहे हैं उनकी मांग थी कि उनका पी एफ जमा करवाया जाये और उत्तराखंड सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन उनको दिया जाये। साथ ही प्रबंधक द्वारा महिला मजदूरों के वेतन में से गैर कानूनी कटौती भी एक मुद्दा थी। अभी तक इन महिला मजदूरों से 5 से 7 हजार रु. में काम करवाया जा रहा है। साथ ही बहुत से कम्पनी के मजदूर भी ऐसे हैं जिनका वेतन उत्तराखंड सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन से कम है।
मजदूर शांतिपूर्वक कम्पनी के बाहर 6 दिन तक बैठे रहे। इस बीच कम्पनी प्रबंधन ने मजदूरों को डराने-धमकाने के काफी प्रयास किये। उनको परेशान किया गया। उन्हें हतोत्साहित किया गया। मजदूरों को कम्पनी के अंदर से पानी लाने एवं कैंटीन में बैठकर खाना खाने पर रोक लगाने, महिलाओं के लिए बाथरूम का प्रयोग बंद करने, बस की सुविधा बंद करने, ठेकेदार द्वारा महिला मज़दूरों को डराने-धमकाने से लेकर तमाम प्रयास करने के बावजूद प्रबंधन मजदूरों की एकता तोड़ने में कामयाब नहीं हुआ।
दिनांक 22 जून को दोपहर में कुंडेश्वरी चौकी इंचार्ज भी मजदूरों के धरना स्थल पर आये। मजदूरों की समस्याएं जानने के बाद वे अंदर गये और जब वे कम्पनी से बाहर आये तो वे भी प्रबंधक की भाषा ही बोलते नज़र आये। उसी समय कुछ मीडियाकर्मी भी कम्पनी गेट पर पहुंच गये और जब उन्होंने चौकी इंचार्ज के पास खड़े प्रबंधक और ठेकेदार से पूछा कि मजदूरों को कितना पैसा मिलता है तब वे साफ झूठ बोलने लगे। इस पर महिला मजदूरों का गुस्सा भड़क गया। एक महिला मजदूर ने तो साफ शब्दों में कहा कि 26 ड्यूटी करने के बाद भी उसके अकाउंट में मात्र 5 हजार रुपये आते हैं और पी एफ काटा तो जाता है, लेकिन जमा नहीं किया जाता, और जब पी एफ के बारे में एच आर मैनेजर से पूछते हैं तो वो डांट कर भगा देता है। इसके अतिरिक्त महिला मजदूरों ने बताया कि वे उत्पादन में मशीनों पर काम करती हैं। (जबकि ठेके के मजदूरों से स्थायी चरित्र के उत्पादन में काम करवाना गैर कानूनी है। उत्पादन में कम्पनी के पे रोल पर ही मजदूरों से काम करवाया जा सकता है।)
जो महिला मजदूर आज तक प्रबंधक और ठेकेदार से डरती थीं उनके इस तरह मालिक-प्रबंधन की गैरकानूनी गतिविधियों की पोल खोलने पर प्रबंधक और ठेकेदार फैक्टरी के अंदर भाग गये। यह मजदूरों की एकता की ताकत थी।
मजदूरों की इस 6 दिन की हड़ताल के दौरान शासन-प्रशासन और श्रम विभाग का रुख क्या रहा?
एस डी एम को मजदूरों ने 18 जून को अपनी समस्याओं के संबंध में ज्ञापन दिया था। लेकिन 5 दिनों के दौरान एक बार भी साहब मजदूरों के धरना स्थल पर नहीं आये और न ही उन्होंने कोई वार्ता बुला मजदूरों की मांगों पर कोई ध्यान दिया। मजदूरों ने 21 जून को फिर एक बार एस डी एम साहब को ज्ञापन दिया लेकिन कम्पनी मालिक और प्रबंधक की साफ तौर पर नज़र आ रही गैर कानूनी गतिविधियों पर उन्होंने अपनी आंखें मूंद लीं। दरअसल राज्य और केन्द्र सरकारें व उनका पुलिस प्रशासन का महकमा सब पूंजीपतियों के पक्ष में खड़े हैं। तभी तो काशीपुर या अन्य शहरों में सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन की पूंजीपति खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं।
जब मजदूर श्रम विभाग में अपना ज्ञापन लेकर पहुंचे तो लेबर इंस्पेक्टर ने बताया कि अखबारों में तो वे कम्पनी में मजदूरों की हड़तालों के बारे में पढ़ रहे हैं लेकिन चूंकि मजदूर उनके पास नहीं आये इसलिए उन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की। यानी जिन अधिकारियों को मजदूरों के खून पसीने से कमाए पैसों में से टैक्स काटकर तनख्वाह दी जाती है और जिनके बारे में प्रचार किया जाता है कि वे मजदूरों की समस्याओं को सुलझायेंगे और अपने से ऊपर के अधिकारियों को इस बारे में सूचित करेंगे वे दिखावे के लिए भी प्रबंधन के खिलाफ कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं। इतना ही नहीं वे पूंजीपति-प्रबंधन के नौकर सरीखा बर्ताव कर रहे हैं।
मजदूरों को शासन-प्रशासन और श्रम विभाग का ये चरित्र समझ में आ रहा है।
अंततः 22 जून को मजदूर और प्रबंधक के बीच एक समझौता हो गया। जिसके अनुसार दिसंबर 24 तक मजदूरों का पी एफ का पैसा मालिक जमा करेगा। ठेकेदार के मजदूरों को 300 रुपया दिहाड़ी मिलेगी (हालांकि यह मौखिक है)। कम्पनी के स्थायी मजदूरों की वेतन वृद्धि अक्टूबर में होगी। वेतन मजदूरों को 10 तारीख तक मिल जाया करेगा।
आज काशीपुर शहर में मजदूरों की स्थिति काफी बुरी है। यहां किसी भी फैक्टरी में मजदूरों की यूनियन नहीं है यानी मजदूर संगठित नहीं हैं जिसका पूंजीपति फायदा उठा रहे हैं। काफी संख्या में मजदूर ठेकेदारी के तहत उत्पादन में काम कर रहे हैं। महिला मजदूरों को पुरुषों से कम वेतन पर काम करवाया जा रहा है। उत्तराखंड सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है। फैक्टरियों के अंदर मजदूरों से गाली-गलौज की जाती है। मजदूरों के जरा सा भी बोलने पर उन्हें निकालने की धमकी दी जाती है। कुल मिलाकर मज़दूरों की स्थिति दयनीय है।
ऐसी परिस्थितियों में विविमेड लेब्स कम्पनी के मजदूरों द्वारा अपनी आवाज उठाना एक साहसिक कदम है। यह दिखाता है कि मजदूरों की सहने की एक सीमा होती है और जब उनकी सहन शक्ति चुक जाती है तो वे विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं। संगठित ताकत के दम पर वे शासन-प्रशासन से भी भिड़ जाते हैं हालांकि शुरुआत में उनके सामने शासन-प्रशासन का चरित्र स्पष्ट नहीं होता है। लेकिन अपने संघर्ष के दौरान वे इनका असली चरित्र समझ जाते हैं।
मज़दूर इस समझौते के बाद कम्पनी में चले तो गये हैं लेकिन उनको अपनी एकता को बनाये रखना होगा और मजबूत बनाना होगा। तभी वे आने वाले दिनों में मालिक और प्रबंधक के हथकंडों का सामना कर सकते हैं। उन्हें अपने संगठन को और मजबूत बनाने की जरूरत है। -काशीपुर संवाददाता
विविमेड लेब्स कम्पनी के मज़दूरों की हड़ताल ख़त्म
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