गाजा में इजरायल द्वारा नरसंहार जारी

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय को मानने से इंकार

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने बीते दिनों इजरायल को रफा में शरण लिये फिलिस्तीनियों पर हमला बंद करने का आदेश दे दिया। पर उम्मीद के मुताबिक इजरायल ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के इस निर्णय को धता बताते हुए अपना हमला न केवल जारी रखा बल्कि और तेज कर दिया है। इन्हीं हमलों का शिकार रफा का एक शरणार्थी कैम्प बना और उसके 45 लोग मारे गये।

अब तक इजरायली हमले में लगभग 36 हजार फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं व 23 लाख आंतरिक तौर पर विस्थापित हो चुके हैं। लगभग समूचा फिलिस्तीन ही इजरायली बमबारी के चलते खण्डहर बन चुका है। बड़े पैमाने पर बुनियादी सुविधाओं का ढांचा ध्वस्त हो चुका है और भुखमरी के हालात पैदा हो चुके हैं। अस्पताल-स्कूल किसी पर भी पगलाये इजरायली सैनिक हमला करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इतनी पीड़ा व तकलीफ में घिरे होने के बावजूद फिलिस्तीनी अवाम ने संघर्ष की राह नहीं छोड़ी है। उन्होंने इजरायली कब्जे के खिलाफ अपना मुक्ति संघर्ष जारी रखा है। अकाल व भूख से जूझते हुए भी इजरायल के खिलाफ लड़ती फिलिस्तीनी जनता आज दुनिया के हर कोने में अवाम को झकझोर रही है। अमेरिका, यूरोप के विश्वविद्यालयों से लेकर तुर्की की सड़कों तक फिलिस्तीन के लिए जनसमर्थन बढ़ता जा रहा है।

अमेरिकी साम्राज्यवादी पूरी निर्लज्जता से इजरायल के नरसंहार का समर्थन-सहयोग कर रहे हैं। एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इजरायल को रफा पर हमला रोकने के बयान दे रहे होते हैं तो दूसरी ओर इजरायल को हथियारों की आपूर्ति बढ़ा रहे होते हैं। एक ओर वे युद्ध विराम की वार्तायें आयोजित कराने का ढोंग करते हैं दूसरी ओर युद्ध विराम न करने पर नेतन्याहू की पीठ थप-थपाते हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादियों का यह दोगलापन अब पूरी तरह सामने आ चुका है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने 13-2 के मत से रफा पर हमला बंद करने का आदेश दिया। इजरायल ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय को स्वीकारने से इनकार करते हुए इस न्यायालय के ही नरक में जाने की बात कर डाली। अमेरिका का रुख भी इस निर्णय पर इजरायल सरीखा ही रहा।

इस बीच स्पेन, आयरलैण्ड व नार्वे ने फिलिस्तीनी को मान्यता देकर किसी हद तक इजरायल पर दबाव बढ़ाने का काम किया है। अब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू व रक्षा मंत्री योआव गैलेट की गिरफ्तारी का वारंट जारी करने की मांग की जा रही है। हालांकि कुछ ताकतें हमास के नेताओं के खिलाफ भी गिरफ्तारी वारंट जारी करने की मांग कर रही हैं।

अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने इस मसले पर कहा कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को इस मसले पर हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। अमेरिकी साम्राज्यवादी इजरायल के साथ बेशर्मी से खड़े हैं।

इन परिस्थितियों में गाजा में हर रोज अपनों को मरते देख रहे फिलिस्तीनी लोग कह रहे हैं कि अगर यह न्यायालय युद्ध को रोक नहीं सकता तो यह किस काम का है।

दरअसल गाजा को तबाह करने पर उतारू अमेरिका-इजरायल अपने इस कारनामे से समूचे पश्चिम एशिया में अपना कमजोर पड़ता दबदबा फिर से कायम करने की सोच से प्रेरित हैं। उनकी इस महत्वाकांक्षा की कीमत बीते 8 माह से निरंतर बमबारी के रूप में गाजावासी चुका रहे हैं।

अमेरिकी शासक व उनके इजरायली पिट्ठू इस वास्तविकता को देखने से इंकार कर रहे हैं कि पश्चिम एशिया में उनका दबदबा काफी दरक चुका है। आज इजरायल पर ढेरों छोटे-बड़े समूह अलग-अलग जगहों से हमला कर रहे हैं। ऐसे में अगर अमेरिकी-इजरायली हत्यारे शासक इस नरसंहार को खत्म नहीं करते तो वह दिन भी दूर नहीं जब अरब की जनता उठ खड़ी हो अमेरिका-इजरायल का बोरिया-बिस्तर बांध दे। इजरायल-अमेरिका के कुकर्म उन्हें अपनी ही दुर्गति की ओर धकेल रहे हैं।

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को