चीन का सॉफ्ट पावर
पिछले वर्षों में चीन दुनिया की एक बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका है। यह दुनिया के ऊपर अपना एक दबदबा कायम कर चुका है और इसको और बढ़ाने के लिए यह प्रयासरत है। आज मुख्यतया आ
पिछले वर्षों में चीन दुनिया की एक बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका है। यह दुनिया के ऊपर अपना एक दबदबा कायम कर चुका है और इसको और बढ़ाने के लिए यह प्रयासरत है। आज मुख्यतया आ
पिछले वर्षों में चीन दुनिया की एक बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका है। यह दुनिया के ऊपर अपना एक दबदबा कायम कर चुका है और इसको और बढ़ाने के लिए यह प्रयासरत है। आज मुख्यतया आ
जापान में सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने फूमियो किशिदा की जगह शिगेरू इशिबा को पार्टी प्रमुख और नया प्रधानमंत्री चुन लिया है। इशिबा ने 1 अक्टूबर को प्रधानमंत्री पद स
इस वर्ष का शांति का नोबेल जापान परमाणु निरस्त्रीकरण की वकालत करने वाले संगठन निहोन हिंडाक्यो को दिया गया है। यह संगठन जापान के हिरोशिमा-नागासाकी के परमाणु बम विस्फोट में
हमारा समय ऐसा है कि इसमें बहुत तुच्छ सी बातों को भी गुरू-गंभीर सत्य की तरह पेश किया जाता है और पेश करने वाले उम्मीद करते हैं कि उन्हें अति गंभीरता से लिया जाये।
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। और जब 2 अक्टूबर गांधी जयन्ती के दिन पीके (प्रशांत किशोर ‘‘पाण्डे’’) ने अपनी जन सुराज पार्टी की घोषणा की तो यही कहावत चर
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को