वेनेजुएला : निकोलस मदुरो फिर राष्ट्रपति बने

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10 जनवरी को वेनेजुएला के पुनः निर्वाचित हुए राष्ट्रपति निकोलस मदुरो ने फिर से राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली। इस बार के राष्ट्रपति चुनावों में भी अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने मदुरो को सत्ता से हटाने के लिए तिकड़मों की सारी हदें पार कर दी थीं पर अंततः उनके हाथ विफलता लगी। 
    
28 जुलाई 2024 को वेनेजुएला में राष्ट्रपति पद के चुनाव हुए थे। 29 जुलाई को मतगणना के बाद के नतीजों में निकोलस मदुरो को 51.95 प्रतिशत मत और प्रमुख प्रतिद्वंद्वी एडमंडो गोंजालेज को 43.18 प्रतिशत मत मिले थे। शेष मत अन्य उम्मीदवारों को मिले थे। मतगणना के पश्चात गोंजालेज ने मतगणना में भारी धांधली और खुद के विजयी होने की घोषणा कर दी थी। उनकी घोषणा का समर्थन करते हुए पश्चिमी मीडिया ने भी मतगणना में भारी धांधली और गोंजालेज के जीतने का दावा करना शुरू कर दिया। अपने फर्जी सर्वेक्षणों से दावा किया गया कि 70 प्रतिशत मत गोंजालेज को मिले हैं। 
    
इसके साथ ही वेनेजुएला के चुनाव को आयोजित करने वाली नेशनल इलेक्टोरल काउंसिल को भी निशाने पर लिया गया। उस पर आरोप लगाया गया कि उसने इलेक्टोरल मशीन का मिलान मत पर्चियों से नहीं किया। जबकि वेनेजुएला की मतगणना प्रक्रिया में ही यह बात शामिल है कि हर चरण में कुछ मतपेटियों की पर्चियों का मिलान वोटिंग मशीन से किया जायेगा और मतगणना के वक्त इसका पालन किया गया। 
    
धांधली के आरोप से आगे बढ़कर संयुक्त राज्य अमेरिका, पेरू, इक्वाडोर, कोस्टारिका, उरुग्वे और पनामा देशों ने गोंजालेज को देश के राष्ट्रपति के रूप में मान्यता दे दी। 
    
10 जनवरी को जब निर्वाचित राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण होना था तब गोंजालेज ने अपने समर्थकों से इस शपथ ग्रहण का बहिष्कार करने और विरोध में सड़कों पर उतरने का आह्वान किया। उसने दावा किया कि 10 लाख लोग सड़कों पर उतरेंगे। उसने सेना के अफसरों से आह्वान किया कि वे मदुरो सरकार की आज्ञा न मानें और कि 10 जनवरी को वो खुद राष्ट्रपति पद की शपथ लेगा। 
    
पर 10 जनवरी को गोंजालेज के समर्थन में बेहद कम लोग जुटे तब ही उसकी योजना की असफलता पर मुहर लग गयी। उसके हिंसक तरीके से तख्तापलट के मंसूबे धरे रह गये। सेना ने भी उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस तरह अमेरिकी साम्राज्यवादियों की योजना एक बार फिर विफल हो गयी। 
    
वेनेजुएला में अपनी मनपसंद सत्ता कायम करने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादी इतने लालायित क्यों हैं? इसकी वजह है कि वेनेजुएला एक ऊर्जा शक्ति से सम्पन्न देश है। इसके पास दुनिया का सबसे बड़ा तेल भण्डार, चौथा सबसे बड़ा गैस भण्डार और एक मजबूत पैट्रो केमिकल उद्योग है। अमेरिकी साम्राज्यवादी इस ऊर्जा भण्डार पर नियंत्रण करना चाहते हैं। 
    
अतीत में अमेरिकी व यूरोपीय साम्राज्यवादी इस ऊर्जा भण्डार पर अपनी मनमाफिक सरकारों के जरिये नियंत्रण करते रहे हैं। इससे इन साम्राज्यवादियों की कम्पनियों ने भारी मुनाफा भी कमाया था। अमेरिकी साम्राज्यवादियों द्वारा वेनेजुएला के निर्मम दोहन के चलते यहां अमेरिकी विरोधी भावनायें जनता में मजबूत होती गयीं और अंततः अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोध का दावा करने वाली ताकतें सत्ता में आने में सफल हुईं। समाजवाद का नाम लेकर सत्ता में आयी ये ताकतें तब से ही अमेरिकी साम्राज्यवादियों की आंखों की किरकिरी बनी हुई हैं। लैटिन अमेरिका के कई देशों में इस तरह की सत्तायें कायम हुईं। इन्होंने खुद को 21 वीं सदी के समाजवाद के माडल के बतौर पेश किया। इन्हें हटाने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवादी लगातार प्रयासरत रहे। कुछ जगह इन्हें सफलता मिली पर वेनेजुएला में ये अभी तक सफल नहीं हो पाये। 
    
इन सत्ताओं का समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं था। सत्ता में आने के बाद न तो इन्होंने पूंजीपतियों की सम्पत्ति जब्त की और न ही कोई अन्य समाजवादी कदम उठाये। वास्तव में ये अधिक स्वतंत्रता की चाहत वाले पूंजीपतियों की सत्तायें थीं जो अमेरिका के साथ बाकी साम्राज्यवादियों से रिश्ते कायम करने की सहूलियत चाहती थीं। 
    
इन्होंने देश को अमेरिकी साम्राज्यवादियों के चंगुल से बाहर निकालने को पैट्रोकेमिकल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया और तेल बिक्री से अपनी अर्थव्यवस्था चलाने लगे। तेल बिक्री की आय से इन्होंने नाम मात्र के कुछ जनराहत के कदम भी उठाये। पर बाद में अर्थव्यवस्था के बढ़ते संकट और अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते राहत कार्यकम से कमतर होते चले गये। समाज में इन सत्ताओं के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा। पर वेनेजुएला में मदुरो अपनी सत्ता सारे षड्यंत्रों के बावजूद अब तक बचाने में सफल रहे। 
    
इस दौरान इन्होंने रूस-चीन के साथ यूरोपीय साम्राज्यवादियों से रिश्ते बनाये। इन शासकों ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर अपनी व अपने चहेतों की जेबें भरीं। वेनेजुएला की जनता में इनके प्रति आक्रोश बढ़ रहा है। पर वह ज्यादा बड़ी बुराई अमेरिकी साम्राज्यवाद के पाले में जाने के बजाय छोटी बुराई के बतौर मदुरो को चुन रही है। 
    
वेनेजुएला का मजदूर वर्ग जब तक अपने पूंजीवादी शासकों के खिलाफ स्वतंत्र क्रांतिकारी पहलकदमी नहीं लेगा तब तक वह लुटेरे शासकों-साम्राज्यवादियों के चंगुल में फंसे रहने को अभिशप्त होगा। यह पहलकदमी पूंजीवाद साम्राज्यवाद विरोधी क्रांति की ओर बढ़ना ही हो सकता है जो वास्तविक समाजवाद स्थापित करेगी।  

 

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