
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘वर्ल्ड इकानामिक आउटलुक’ के मुताबिक 2025 में वैश्विक अर्थव्यवस्था उथल-पुथल वाली अनिश्चित राह की ओर बढ़ रही है। रिपोर्ट ट्रम्प द्वारा छेड़े गये टैरिफ युद्ध की वजह से सारी अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में तीव्र गिरावट की बात करती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान जहां पिछली रिपोर्ट में 2025 व 2026 दोनों वर्षों के लिए 3.3 प्रतिशत का लगाया गया था वहीं अब यह अनुमान गिरकर 2025 के लिए 2.8 प्रतिशत व 2026 के लिए 3 प्रतिशत हो गया है।
विकसित अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर का अनुमान 2025 के लिए 1.8 प्रतिशत से गिरकर 1.4 प्रतिशत हो गया है। अमेरिका की विकास दर का अनुमान 2.8 प्रतिशत से गिरकर 1.8 प्रतिशत रह गया है। इसके पीछे रिपोर्ट नीतिगत अनिश्चितता, व्यापार तनाव और घटती मांग को बताती है। यूरो क्षेत्र में विकास दर 0.2 प्रतिशत गिरावट के साथ 2025 में 0.8 प्रतिशत रहने की संभावना है। 2025 में जर्मनी की विकास दर 0.0 प्रतिशत, फ्रांस की 0.6 प्रतिशत, इटली की 0.4 प्रतिशत, स्पेन की 2.5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। जापान की विकास दर 2025 में 0.6 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। चीन की विकास दर 2024 के 5 प्रतिशत की तुलना में 2025 व 2026 दोनों में 4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
विकासशील देशों की विकासदर का अनुमान 2024 के 4.3 प्रतिशत से गिरकर 2025 में 3.7 प्रतिशत व 2026 में 3.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालांकि रिपोर्ट चीन को भी इसमें शामिल करती है। चीन को इससे हटा लेने पर यह अनुमान और गिर जायेगा। भारत की विकास दर 2025 में 6.2 प्रतिशत व 2026 में 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। ब्राजील की विकास दर 2025 में 2 प्रतिशत, सऊदी अरब की 3.0 प्रतिशत, नाइजीरिया की 3.0 प्रतिशत व द. अफ्रीका की 1.0 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।
रिपोर्ट इस गिरावट के कारणों में मौजूदा टैरिफ युद्ध के अलावा, घटती मांग, वृद्ध होती आबादी, बढ़ता राजकोषीय घाटा, अप्रवासन की कठोर नीतियां आदि को जिम्मेदार ठहराती है। रिपोर्ट का मूल स्वर उदारीकरण-वैश्वीकरण की राह पर आगे बढ़ने में इस समस्या का हल देखता है। इस तरह यह संस्था जिन नीतियों के चलते दुनिया इस हाल में पहुंची है उन्हीं नीतियों को तेजी से लागू करने में समस्या के हल का ख्वाब दिखाती है।
साम्राज्यवादी संस्था के नजरिये के इससे भिन्न होने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। वास्तविकता यह है कि 1970 के दशक से ही दुनिया की अर्थव्यवस्था आम ठहराव की अवस्था में है। ऐसे में इससे निपटने हेतु लागू की गयी उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियां दुनिया को 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट की ओर ले गयीं। यह संकट उतार-चढ़ाव के साथ आज भी जारी है। इसीलिए संकट से निपटने के नाम पर इन्हीं नीतियों को आगे बढ़ाना और अधिक संकट की ओर दुनिया को ले जाना है।
इन नीतियों का सार तत्व था कि पूंजी के हित में श्रम पर निर्मम हमला। समाजवादी समाजों में पुनर्स्थापना व मजदूर आंदोलन के पीछे हटने ने पूंजी को श्रम पर हमले का यह मौका मुहैय्या कराया। इन नीतियों का परिणाम मजदूर वर्ग के गिरते जीवन स्तर और इसलिए मांग में कमी के रूप में सामने आया।
पूंजीवादी व्यवस्था में इन आर्थिक संकटों का आना अपरिहार्य है। सामाजिक उत्पादन व व्यक्तिगत मालिकाने का अंतरविरोध बारम्बार पूंजीवादी व्यवस्था को संकट की ओर धकेलता है। बीते 3-4 दशकों की नीतियों ने इस अंतरविरोध को तेजी से तीखा कर मौजूदा संकट पैदा किया है।
संकट के इन हालातों में अमेरिका की गिरती हैसियत को बचाने के नाम पर ट्रम्प द्वारा छेड़ा टैरिफ युद्ध संकट को और गहराने की ओर ले जायेगा। यानी उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों ने संकट को पैदा किया और अब वैश्वीकरण में तटकर बाधाओं के जरिये आने वाली रुकावट भी संकट गहराने की ओर ले जा रही है।
पूंजीवादी दायरे में कल्याणकारी राज्य की ओर वापसी ही संकट को वक्ती तौर पर कुछ कम कर सकती है। संकट का मुकम्मल हल तो पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के खात्मे वाली समाजवादी क्रांति में ही है। वैसे भी पूंजीपति वर्ग केवल इस क्रांति के आसन्न खतरे को रोकने के लिए कल्याणकारी राज की ओर कदम बढ़ायेगा। ऐसे में दुनिया भर में क्रांतिकारी संघर्ष ही बेहतरी की ओर ले जा सकते हैं। साम्राज्यवादी संस्थाओं के नीम हकीमी नुस्खे हालात और बिगाड़ने की ओर ही ले जायेंगे।