संस्कृति के ठेकेदार

/sanskrati-ke-thekedaar

कुछ लोग ऐसे हैं जो रात-दिन संस्कृति की दुहाई देते हैं। रात-दिन इसकी माला जपते हैं। संस्कृति की दुहाई देने वालों का जो सबसे बड़ा ठेकेदार है उसकी तो सारी बात ही संस्कृति से शुरू होती है और संस्कृति पर खत्म होती है। महान  संस्कृति के महान उपासक के चेले सड़क पर जब इस संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं तो कोई भी कह उठेगा कि इस संस्कृति से और इस संस्कृति के तेजस्वी उपासकों से हमें राम ही बचायें।
    
एक संस्कृति के तेजस्वी उपासक ने तो सारी हदें पार कर दीं। तेजस्वी उपासक ने सरेआम एक मजबूर या जरूरतमंद महिला से यौन सम्बन्ध कायम किये और यह सब कैमरे में कैद हो गया। मनोहर लाल धाकड़ नामक इस तेजस्वी उपासक से संस्कृति के ठेकेदार जितना अपना पीछा छुड़ा रहे हैं उतना ही वह उनका अपना गुर्गा साबित हो रहा है। महान संस्कृति के तेज से जगमगाते ये उपासक पूरे भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अपनी चमक फैला रहे हैं। इनका नाम कभी ब्रजभूषण तो कभी बी शानमुगनाथन होता है। ब्रजभूषण मुकदमों में फंसा है तो शानमुगनाथन को राज्यपाल का पद तब छोड़ना पड़ा जब मेघालय में राजभवन के कर्मचारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर शिकायत की कि इन महाशय ने राजभवन को ‘लेड़ीज क्लब’ बना दिया है। 
    
महान संस्कृति स्त्रियों को ढोरों के समकक्ष रखती है और लगातार बताती है कि उन्हें कैसे रहना चाहिए। क्या करना और क्या पहनना चाहिए। और फिर इस संस्कृति के ठेकेदारों के चेले कहीं मनोहर लाल तो कहीं ब्रजभूषण बनकर इस संस्कृति का प्रदर्शन करने लगते हैं। न इनकी जुबान पर न इनकी हरकतों पर रोक लगती है। जाहिर सी बात है बलात्कार को जब इनके आदि गुरू जायज ठहराते हैं (दूसरे धर्म की औरतों के मामले में) तो फिर ये चेले यही सब कुछ करेंगे। संस्कृति की दुहाई देने वालों के यहां यही असली संस्कृति है जिसका प्रदर्शन इनके चेले आये दिन करते रहते हैं। 

आलेख

/samraajyvaadi-comptetion-takarav-ki-aur

ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

/india-ki-videsh-neeti-ka-divaaliyaapan

भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

/bharat-ka-garment-udyog-mahila-majadooron-ke-antheen-shoshan-ki-kabragah

भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।