
फैक्टरी में काम करने से पहले गंगादीन एक गैस प्लांट में लोडिंग अनलोडिंग का काम करते थे। भरे हुए गैस सिलेण्डरों को लाइन से उठाकर ट्रक में लोड करने का एक निश्चित समय होता था।
प्रत्येक पांच सेकेण्ड पर एक 30 किलो का गैस सिलेण्डर कन्वेयर बेल्ट पर सफर करते हुए निश्चित समय पर रुक जाता है। जहां पर दो मजबूत हाथ उसे उठाकर ट्रक पर चढ़ा देते। एक मंजिल पूरी होते ही दूसरी फिर तीसरी। इन दस मिनटों के भीतर लगभग 150 गैस सिलेण्डर दो हाथों से होकर गुजरते। दो साल के भीतर लाखों लोगों ने जो दिन रात खाना खाया उसमें गंगादीन की कड़ी मेहनत का भी एक योगदान रहा था।
दो साल की कड़ी मेहनत के बाद गंगादीन ने फैक्टरी का रुख किया। मजबूत कद काठी, गठीला शरीर, फैक्टरी में काम मिलने में कोई दिक्कत नहीं हुई। गंगादीन के पिता खेती किसानी से जुड़े थे। खेती अब किफायत का सौदा नहीं रह गयी थी तो गंगादीन ने मासिक वेतन भोगी मजदूर बनना स्वीकार कर लिया था। औसत सरकारी स्कूल से पढ़ने वाले बच्चे आम तौर पर इण्टर के बाद काम करने लग जाते हैं। गंगादीन की स्कूली पढ़ाई कुछ खास नहीं रही। पांचवीं के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था। जैसे ही होश संभाला मेहनत मजदूरी करने लगे।
गंगादीन जाति से दलित है। कहीं न कहीं जातिगत अपमान को बचपन से ही अलग-अलग रूप में महसूस किया था। किसी तरह ईसाई मिशनरी के सम्पर्क में आए और तब से ही मंदिर अपरिचित हो गये और इसका स्थान चर्च ने ले लिया। जहां ये प्रार्थना करते। गाना गाते और उसकी वीडियो साझा करते। अंग्रेजी में बाइबिल पढ़ा करते। और अक्सर सोशल मीडिया में इस सब कार्यवाही की वीडियो साझा करते। गंगादीन अब जिस समाज का हिस्सा बन चुके हैं वहां कोई छुआ छूत का भेदभाव नहीं है और न ही जाति सूचक गाली। इस छोटे से समाज के एक हिस्से के रूप में कुछ कुछ ख्याति और सम्मान जरूर गंगादीन को मिला।
जीवन की बेहतरी का स्वप्न देखना मानवजाति का नैसर्गिक गुण है। गंगादीन पेशे से मजदूर हैं और एक आम मजदूर प्रत्येक वर्ष एक उम्मीद करता है कि कुछ वेतन बढ़ोत्तरी उसकी तकलीफों को कुछ कम करेगी। हर साल इसी उम्मीद में गंगादीन को काम करते हुए 10 साल बीत गए। 5000 रु. मासिक वेतन से शुरू होते हुए 13,000 रुपये तक मासिक वेतन पाने वाले गंगादीन के जीवन के ढर्रे में कोई बदलाव नहीं हुआ और इसी बीच कंपनी में एक नये पुर्जे का उत्पादन होना शुरू हो गया।
नए पुर्जे के उत्पादन के साथ ही नई हसरतों ने भी जन्म लिया। नया पुर्जा भारी था। उच्च गुणवत्ता का और एक बार की डिस्पैच में पूरा हफ्ता लगता और 15 लोगों का पूरा दल इस डिस्पैच की कार्यवाही का हिस्सा है। और गंगादीन इस 15 लोगों के टीम लीडर हैं। इस नए तरह के दायित्व ने गंगादीन को एक तरफ विशिष्टता बोध से भर दिया तो दूसरी तरफ बाकियों से आगे निकलकर ज्यादा वेतन वृद्धि की संभावनाओं को भी जन्म दिया। कंपनी मैनेजर अब अक्सर गंगादीन के कंधे पर हाथ रखता। और कभी अपने केबिन में हंसी मजाक करता।
गंगादीन ईमानदार है, मेहनती है, सज्जन है लेकिन अब महत्वाकांक्षा ने उसके दिल में प्रवेश कर लिया है। अक्सर 36 घंटे ड्यूटी करना और अपनी टीम के बाकी लोगों को 36 घण्टे ड्यूटी के लिए तैयार करवा लेते। टीम लीडर की कड़़ी मेहनत को देख टीम के बाकी सदस्य भी कड़ी मेहनत करते। मैनेजमेण्ट के सुर के साथ अब गंगादीन का सुर भी एक ही ध्वनि पैदा करता और इस सारी कवायद में गंगादीन से मैनेजर ने 4000 रुपये वेतन वृद्धि का वादा किया है और गंगादीन अब 13000 से सीधे 17,000 रुपये मासिक वेतनभोगी होने का ख्वाब देखने लगे हैं।
रीढ़ की हड्डी के अभाव में केंचुआ रेंगता है, रीढ़ की हड्डी होने के कारण दो पाए और चार पाए अपने पैर पर खड़े होते हैं। चलते हैं। परन्तु रीढ़विहीन होने का मनुष्य जगत में कुछ और ही अर्थ होता है। इंसान के भीतर जन्म लेने वाली महत्वाकांक्षा अक्सर उसे रीढ़विहीन होने की तरफ ले जाती है। अपनी औसत कार्यक्षमता से अधिक परिश्रम करना। 36 घण्टे कम्पनी में रहना। या फिर मैनेजमेण्ट के आगे रीढ़विहीनता का परिणाम उसी महत्वाकांक्षा का उत्पाद होता है।
गंगादीन की कड़ी मेहनत और मैनेजमेण्ट के सुर में सुर मिलाना मजबूरी तो बिल्कुल नहीं, महत्वाकांक्षा है जिसने एक व्याधि का रूप ले लिया है। मैनेजमेण्ट के किसी भी आदेश के खिलाफ सोचने का अर्थ 17,000 रु. मासिक वेतन के ख्वाब पर हमला होता। और इसी जुगत में गंगादीन आज सुबह से कड़ी मेहनत में लगे हुए हैं। 25 किलो वजनी पुर्जे जो अभी तक गंगादीन के हाथों से गुजरे हैं उनकी संख्या दो सौ का आंकड़ा पार कर चुकी है। डिस्पैच के दो दिन रविवार और शनिवार अमूमन ऐसा ही होता है और इस प्रक्रिया का इतिहास लगभग साल भर पुराना है।
कट्ट। एक हल्की सी आवाज रीढ़ की हड्डी में से उठी। उस समय गंगादीन के हाथ में 5 किलो का पुर्जा था। गंगादीन को हल्का दर्द उठा जो इस समय सामान्य लगा। कहते हैं कि सांप जब काटता है तो उस समय मामूली सी सुई चुभने का अहसास होता है। मगर उसके प्राणघातक जहर का परिचय धीरे-धीरे समय के साथ मालूम होता है। गंगादीन के लिए अब खड़ा होना भी मुश्किल है। धीरे-धीरे असहनीय होते दर्द ने एक्सरे मशीन तक पहुंचा दिया।
स्लिप डिस्क हो गयी है। डॉक्टर ने बताया है कि अब कभी भारी काम मत करना। तीन दिन बाद पूरे प्लांट में खबर फैल गयी कि गंगादीन ने 5 किलो का पुर्जा उठाया और उसकी कमर में मोच आ गयी है। चटखारे लेते हुए मैनेजर ने एक नए मजदूर के कंधे पर हाथ रखा और क्यों भई ललित तेरे लीडर की तो कमर कमजोर निकली। ‘अब से तू अपने कंधे मजबूत कर ले। अब से डिस्पैच की जिम्मेदारी तेरी है।’ ‘हां सर!’ स्वीकृति देते समय ललित की रीढ़ की हड्डी का कोण 90 डिग्री था। -पथिक