
हाल ही में नीति आयोग के सी ई ओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) बी वी आर सुब्रमण्यम ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भारत जापान को पीछे छोड़ते हुये दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। उन्होंने यह दावा आई एम एफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) का हवाला देते हुए किया। बस फिर क्या था, जिस तरह टेलीविजन चैनलों के एंकरों ने पिछले दिनों इस्लामाबाद पर कब्जा कर लिया था कुछ उसी तरह का धमाल इन्होंने फिर से मचाया और हर बार की तरह इस ‘कामयाबी’ का श्रेय भी इन्होंने मोदी को दिया, कि देखो मोदी ने देश को कहां से कहां पहुंचा दिया! लेकिन आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने जल्द ही सच्चाई को उजागर कर दिया।
असल में आई एम एफ द्वारा ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई कि भारत जापान को पीछे छोड़कर चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। आई एम एफ ने तो बस जी डी पी के आंकड़ों के आधार पर वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की अर्थव्यवस्था के लगभग 3900 अरब डॉलर रहने का अनुमान लगाया है। जबकि जापान की अर्थव्यवस्था के लिये उसका यही अनुमान 4060 अरब डालर रहने का है। अर्थात आई एम एफ के अनुमान के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में जापान ही चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था रहने वाली है।
इसके अलावा आई एम एफ ने यह भी अनुमान व्यक्त किया है कि वित्त वर्ष 2025 के अंत तक भारत की अर्थव्यवस्था जापान की अर्थव्यवस्था से कुछ आगे निकल जायेगी। इस अनुमान के मुताबिक भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2025 के अंत में 4190 अरब डालर व जापान का 4186 अरब डालर रहने की संभावना है। यह अनुमान भारत की मौजूदा वर्ष में विकास दर 6.2 प्रतिशत रहने व महंगाई दर 4.2 प्रतिशत रहने के आधार पर लगाया गया है। लेकिन ये भी सिर्फ अनुमान हैं, असल में क्या होता है इसका पता तो वक्त आने पर ही चलेगा। इसमें भी खास बात यह है कि ये अनुमान जी डी पी (सकल घरेलू उत्पाद) के आंकड़ों के आधार पर हैं; और यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था की तस्वीर को खुशनुमा दिखाने के लिये जानबूझकर आंकड़ों में गड़बड़ करती है। वैसे भी जी डी पी को संगठित क्षेत्र के आधार पर तय किया जाता है और असंगठित क्षेत्र के हालात अनुमान पर आधारित होते हैं। गौरतलब है कि भारत में असंगठित क्षेत्र कुल अर्थव्यवस्था का करीब 45 प्रतिशत बनता है और नोटबंदी व जी एस टी के बाद लॉकडाउन ने इसकी कमर तोड़कर रख दी है। यदि मोदी सरकार आंकड़ों में गड़बड़ी न करे और असंगठित क्षेत्र की मौजूदा दुर्दशा को ध्यान में रखा जाये तो इस समय भारत की जी डी पी 3-3.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। जबकि मोदी सरकार इसे 6-6.5 प्रतिशत तक बता रही है और आई एम एफ के अनुमान कमोबेश भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों पर ही आधारित होते हैं।
यदि प्रति व्यक्ति आय के आधार पर मूल्यांकन किया जाये तो जापान की प्रति व्यक्ति आय सालाना करीब 34 हजार डालर है जो कि भारत की प्रति व्यक्ति आय सालाना करीब 29 सौ डालर से करीब 12 गुना ज्यादा है। आई एम एफ के ताजा आंकड़ों के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय की वैश्विक सूची में इस समय भारत का स्थान दुनिया के 197 देशों में 141 वां है। लेकिन इस कड़वी सच्चाई को दिन भर बजबजाने वाले खबरिया चैनल नहीं दिखायेंगे! इसी तरह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2028 तक भारत जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा। केवल अमेरिका व चीन ही उससे आगे रह जायेंगे। पर इस चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश की जमीनी हकीकत देखते ही शर्मनाक वास्तविकता सामने आ जाती है।
वास्तविकता यह है कि भारत में 82 करोड़ से अधिक आबादी जिन्दा रहने के लिए सरकार द्वारा बांटे जा रहे मुफ्त राशन पर निर्भर है। देश की बहुलांश आबादी की कमाई व जीवन स्तर बढ़ने के बजाय लगातार गिर रहा है। बेरोजगारी का आंकड़ा सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों से ज्यादा तेज दर से बढ़ रहा है। मैन्युफैक्चरिंग व कृषि क्षेत्र लगातार संकट का शिकार है और उसकी विकास दर 2-3 प्रतिशत से अधिक नहीं है। अप्रैल 25 में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर बीते 8 माह में सबसे निचले स्तर 2.7 प्रतिशत तक रह गयी थी। भारत भारी असमानता का शिकार देश है। यहां वर्ल्ड इनइक्वालिटी डाटा बेस के अनुसार बीते 100 वर्षों में वर्तमान समय में सर्वाधिक असमानता है। सबसे अमीर 1 प्रतिशत लोग भारत में 40 प्रतिशत सम्पत्ति पर नियंत्रण रखते हैं। दरअसल मोदीकाल में गरीबों की सम्पत्ति-मेहनत लूट कर अमीरों की तिजोरियों में पहुंचाने का काम अधिक तेजी से हुआ है। सारा विकास चंद पूंजीपतियों की दौलत बढ़ाने वाला साबित हो रहा है। इसीलिए देश अरबपतियों की संख्या के मामले में पहले ही दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।
इस वास्तविकता पर ध्यान देने के बाद सारा सरकारी जश्न हवा हो जाता है। तब अम्बानी के बेटे की शादी में फूंके जाते अरबों रुपये और चंद रुपयों की नौकरी के लिए बेरोजगारों की भारी भीड़ भारत की वास्तविकता को उजागर कर देती है। मजदूरों-मेहनतकशों की दुर्दशा के अथाह समुद्र पर चंद अमीरों की अश्लील सम्पन्नता ही भारत का कटु सत्य है। इसी सत्य पर बेशर्म सरकार इतरा रही है। इस सच पर पूंजीपति वर्ग और उसके गुर्गे ही जश्न मना सकते हैं। कोई भी संवेदनशील जागरुक इंसान तो इस कड़वे सच को जल्द से जल्द बदल डालने की ही बात सोचेगा।