अर्थव्यवस्था

अमेरिकी लुटेरी स्वास्थ्य बीमा कंपनियां

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बीते दिनों अमेरिका में एक दिलचस्प वाकया घटित हुआ। 4 दिसम्बर को यूनाइटेड हेल्थ केयर के सीईओ ब्रायन थाम्पसन की मैनहट्टन में निवेशकों की एक बैठक में जाते समय गोली मारकर हत्य

वैश्विक अस्थिरता की भेंट चढ़ी जर्मनी की सरकार

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जिस दिन अमेरिका में ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव में विजेता घोषित हुए उसी दिन जर्मनी में सत्तारूढ़ गठबंधन बिखर गया। 2021 से जर्मनी में तीन पार्टियों सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, फ्र

कार्यस्थल पर तनाव

श्रम करना इंसान का एक स्वाभाविक गुण है। लेकिन, पूंजीवाद में यह उसके लिए तनाव और यंत्रणा का कारण बन जाता है। मजदूर का श्रम पूंजीपति के लिए मुनाफे का जरिया होता है। मजदूर क

अमेरिका में मंदी की आहट : दुनिया भर के शेयर बाजार सहमे

अमेरिका में मंदी

5 जुलाई को दुनिया भर के शेयर बाजार एक के बाद एक भारी गिरावट का शिकार हुए। अमेरिका के शेयर बाजार से शुरू होकर यूरोप, जापान, भारत एक तरह से दुनिया के सारे शेयर बाजार गोता ल

कर चोरी का गोरखधंधा

सिंगापुर और मारीशस दो छोटे द्वीपीय देश हैं। सिंगापुर की आबादी लगभग 60 लाख है और इसका सकल घरेलू उत्पाद लगभग 525 अरब डालर है। मारीशस की आबादी लगभग 13 लाख और इसका सकल घरेलू

सैम बैंकमैन फ्राइड को सजा

बीते दिनों अमेरिका के सफलतम बिटकाइन हेज फण्ड के संस्थापक सैम बैंकमैन फ्राइड को अदालत ने 25 वर्षों की सजा सुनाई। फ्राइड पर आरोप था कि उसने अपने ग्राहकों से 8 अरब डालर की र

नाइजीरिया में अनाज संकट

अफ्रीकी महाद्वीप का एक देश नाइजीरिया इन दिनों अनाज संकट से जूझ रहा है। 1 अप्रैल को दक्षिण-पश्चिम में ओंडो राज्य की राजधानी अकूरे में जनता ने भूख के कारण गोदामों और ट्रकों

अफगानिस्तान में भूकम्प : ढाई हजार मौतें

इजरायल-हमास जंग की चर्चा में 7 अक्टूबर को अफगानिस्तान में आये भयावह भूकम्प की चर्चा गायब सी कर दी गयी है। 6.3 तीव्रता का यह भूकम्प अफगानिस्तान में पिछले कुछ दशकों में आया

आलेख

/trump-ke-raashatrapati-banane-ke-baad-ki-duniya-ki-sanbhaavit-tasveer

ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

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आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं? 

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सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।