सम्पादकीय

एक बदमाश की वापसी
ये डर है तो किस बात का डर है
चुनाव में अपचयित होता लोकतंत्र
मजदूरों-मेहनतकशों सावधान !
राजनीति से बेरुखी ठीक नहीं
यौन हिंसा और उसके खिलाफ फूटा आक्रोश
बांग्लादेश : जनाक्रोश से हसीना भागी पर भगोड़ा सत्ता में
15 अगस्त : आजादी के मायने तलाशने की जरूरत
मजदूरों-मेहनतकशों की बस्ती में ठगों का डेरा
नयी सरकार : अमीरों द्वारा, अमीरों की, अमीरों के लिए सरकार
चुनाव परिणाम : ‘‘कोउ नृप होउ हमहिं का हानि’’..?
आम चुनाव में मजदूर वर्ग कहां है
मजदूर पूंजीपतियों की गुलामी क्यों करें? कब तक करें?
इलेक्टोरल बाण्ड एक गोरखधंधा
‘‘विश्व गुरू’’ के मंसूबे के आगे खड़ी फौलादी दीवार
भारत का इतिहास सवाल दर सवाल
‘समान नागरिक संहिता’ : कहीं पे निगाह कहीं पे निशाना
उन्माद के बाद
‘‘आप तो आंधी और तूफान थे’’
किसी भी कीमत पर चुनावी जीत हासिल करने की साजिश
नया साल : चुनावी साल
हमारा भविष्य उज्जवल है
विकास का रथ : खून से लथपथ
वामपंथ क्यों गाली खाता है
शांति का रास्ता क्रांति से होकर जाता है
जातीय जनगणना
महिला आरक्षण क्या महज एक झुनझुना
भगतसिंह होने का मतलब
वैज्ञानिक उपलब्धि; श्रेय का चक्कर
‘‘एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य’’
गुलामी की स्याही हर माथे पर, गुमान पर आजाद होने का
किम रहस्यम् मोदी मौनम्
मोदी की अमेरिकी यात्रा के निहितार्थ
आगामी आम चुनाव : बनते-बिगड़ते राजनैतिक समीकरण
नया संसद भवन : रंग में भंग
‘सामाजिक न्याय’ के झण्डे में छेद ही छेद
मई दिवस का महत्व
देश का दुश्मन
जी-20 और विश्व गुरू
‘‘इंकलाब जिन्दाबाद !’’
व्यक्तिगत सफलता और सामाजिक मुक्ति
बीते साल का लेखा-जोखा

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को