शहीद भगतसिंह शायद उन चंद व्यक्तियों में होंगे जिनकी लोकप्रियता पीढ़ियों के बदले जाने के बाद भी हर नयी पीढ़ी के बीच बनी रहती है। वे अपनी युवावस्था में भारत की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो गये और यही कारण है वे चिर युवा बन गये। वे ऐसे चिर युवा हैं कि वह हर युवा जो उनके बारे में थोड़ी भी गहराई से जानने की कोशिश करता है, उन्हें अपने आदर्श के रूप में देखने लगता है। जो एक बार भगतसिंह का होता है वह हमेशा के लिए उनका हो जाता है।
भगतसिंह के व्यक्तित्व के अनेकोनेक गुणों की चर्चा की जा सकती है। जो बात उन्हें सबसे अनूठी बनाती है वह क्रांति के लिए अपने जीवन को कुर्बान कर देने की सर्वोच्च भावना है। और भगतसिंह के लिए क्रांति की समझ एकदम स्पष्ट है। यह स्पष्टता उन्हें भारतीय समाज में एकदम विशिष्ट स्थान प्रदान कर देती है। जब वे कहते हैं कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है तो हमारे सामने एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभरता है जो स्पष्ट तौर पर जानता है और पूरे देश को बतलाता है कि बिना क्रांतिकारी विचार के कोई क्रांति सम्भव नहीं है। वे सिर्फ क्रांति के पथिक नहीं बल्कि उसके नायक हैं।
क्रांतिकारी विचारों पर भगतसिंह का वैज्ञानिक जोर उन्हें अपने से पूर्व के सभी राष्ट्रीय क्रांतिकारियों से अलग कर देता है। उनसे पहले के क्रांतिकारियों में क्रांतिकारियों के उन व्यक्तिगत गुणों के खूब दर्शन होते हैं जो कि क्रांतिकारियों के आम गुण हैं। साहस, सर्वोच्च बलिदान की भावना, निजी सुखों की परवाह न करना, अपने लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठता, देशानुराग, ब्रिटिश या धूर्त-क्रूर शासकों के प्रति घृणा, देश को आजाद कराने के लिए सशस्त्र संघर्ष करने के लिए उत्कट इच्छा व प्रयत्न आदि ऐसे गुण थे जो भगतसिंह के पूर्व के क्रांतिकारियों में भी आम तौर पर दिखायी देते थे। भगतसिंह में अपने पूर्व के क्रांतिकारियों के ये सभी गुण थे परन्तु जो चीज उन्हें भगतसिंह बनाती थी वह थी क्रांतिकारी विचारों की देश की आजादी व एक नये भविष्य के निर्माण में सुस्पष्ट भूमिका को देखना और उसे अपने लेखन व जीवन से बारम्बार स्थापित करना।
जो उन्हें भगतसिंह बनाता था वह था मजदूर, किसानों, नौजवानों की भूमिका को समझना। क्रांति का कार्य महज यह नहीं है कि व्यक्ति अपने जीवन को अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित कर दे। क्रांतियां किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के किसी एक समूह का काम नहीं है बल्कि यह समाज के शोषित-उत्पीड़ित वर्ग का सामूहिक कार्य है। जब तक मजदूर वर्ग के नेतृत्व में समाज का सम्पूर्ण शोषित-उत्पीड़ित वर्ग एकजुट होकर समाज व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर सत्ता को अपने हाथ में लेकर नयी समाज व्यवस्था का निर्माण नहीं कर लेता है तब तक उसकी मुक्ति नहीं हो सकती है।
भगतसिंह होने का मतलब है उस व्यवस्था की सुस्पष्ट समझ जो मजदूरों, किसानों, मेहनतकशों के शोषण-उत्पीड़न की जड़ में है और उस व्यवस्था का क्रांति के द्वारा निर्माण करना है जहां शोषण-उत्पीड़न का नामोनिशान न हो।
भगतसिंह होने का मतलब है अपने युग के क्रांतिकारी कार्यों की सुस्पष्ट समझ हासिल करना और उसके लिए पूरे मनोयोग से पूरी शक्ति से कार्य करना। और क्रांति का कार्य करते हुए जहां पूर्ण जीवन लगाने की भावना हर वक्त मौजूद हो वहां गर क्रांति जीवन के बलिदान की मांग करे तो उसके लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर देना।
भगतसिंह होने का मतलब है अपने युग में प्रचलित विचारों की सुस्पष्ट समझ होना। और इसका ही अर्थ है कि यह भी सुस्पष्ट समझ होना कि कौन से विचार ऐसे हैं जो मजदूरों, किसानों, मेहनतकशों के हित में हैं। किन विचारों को अपनाकर और उन्हें और विकसित व परिष्कृत कर अपने युग में क्रांति के कार्यों को पूरा किया जा सकता है। उन विचारों की ढंग से मरम्मत करना जो मजदूर-मेहनतकशों के खिलाफ हैं।
भगतसिंह होने का मतलब है शोषित-उत्पीड़ित वर्ग के दोस्त व दुश्मन की सुस्पष्ट समझ हासिल करना।
भगतसिंह ने अपने जीवन, अपने कार्यों से बारम्बार स्थापित किया कि वे व्यक्तिगत रूप से हिंसा के खिलाफ हैं। वे आतंकवाद के समर्थक नहीं थे। वे अंग्रेजों के खून के प्यासे नहीं थे बल्कि वे अपने देश की मुक्ति चाहते थे। वे मानवजाति की मुक्ति चाहते थे। वे मानवता के हिमायती थे। वे व्यक्तिगत हिंसा या हथियारों के अनुयायी-पुजारी नहीं थे। अपने जीवन के अंतिम दौर में उन्होंने व्यक्तिगत आतंकवाद की खूब निंदा की और बताया कि क्रांति तब ही होगी जब क्रांति का संदेश नौजवान हर कल-कारखाने, हर खेत-खलिहान तक ले जायेंगे। क्रांति की मंजिल तब ही हासिल होगी जब देश के मजदूर, किसान क्रांति की लड़ाई में अपनी पूरी एकता व संघर्ष की भावना से कूद पड़ेंगे।
भगतसिंह होने का मतलब है दूर दृष्टि रखना। उन्होंने अपनी फांसी के पूर्व ही इस बात को ढंग से देख लिया था कि कल को हिंदोस्तान में क्या हो सकता है। उन्होंने ऐसे ही नहीं लिखा था कि गोरे अंग्रेजों के चले जाने से और उनकी जगह काले अंग्रेजों के ले लेने से भारत के मजदूर-किसानों की जिंदगी में बुनियादी बदलाव नहीं आयेगा। उन्होंने स्पष्ट तौर पर लिखा था कि भारत को समाजवादी क्रांति चाहिए। ऐसी क्रांति जिसके जरिये भारत में मजदूरों-किसानों का राज कायम हो। यह हकीकत है कि भारत में क्रांति न हो सकी। भगतसिंह की बात सही साबित हुयी। गोरे अंग्रेजों के स्थान पर काले अंग्रेजों का राज कायम हो गया। और काले अंग्रेजों ने गोरे अंग्रेजों की तरह भारत की जमीन पर अपना राज कायम रखने के लिए असंख्य जलियांवाला बाग जैसे हत्याकांड रच डाले। यह सिलसिला आज तक जारी है।
भगतसिंह होने का मतलब है इस बात को बार-बार याद दिलाना कि जब तक साम्राज्यवाद, पूंजीवाद रहेगा तब तक मजदूरों, किसानों की मुक्ति नहीं हो सकती। मानवता मुक्त नहीं हो सकती है। भगतसिंह को अगर भारतीय समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी लोकप्रियता हासिल है तो इसलिए कि क्रांति का कार्य अधूरा है। भगतसिंह को याद करने, उनका जैसा बनने, उनकी तरह अपनी जिंदगी देश के लिए- क्रांति के लिए न्यौछावर करने की आवश्यकता बराबर बनी हुयी है। हजारों-हजार भगतसिंह की जरूरत है।
भगतसिंह होने का मतलब है इतिहास का ज्ञान और भविष्य के लिए स्वप्नदृष्टा होना। भगतसिंह होने का मतलब है एक ऐसा जीवन जीना जिससे कि आप हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जायें।
भगतसिंह होने का मतलब
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को