चीन विरोधी अमेरिकी मुहिम का भागीदार बनता भारत

भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा

बीते दिनों जी-20 की बैठक के साथ ही कुछ देशों ने एक अलग से बैठक भी आयोजित की। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, मारीशस, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, भारत व अमेरिका व विश्व बैंक के प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। इस बैठक को ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एण्ड इन्वेस्टमेंट (पी जी आई आई) और भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे पर संयुक्त कार्यक्रम का नाम दिया गया। 
    
इस बैठक में भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को बनाने पर सहमति दी गयी। इसके तहत भारत को खाड़ी क्षेत्र से जोड़ने वाला पूर्वी कारीडोर व खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ने वाला उत्तरी कारीडोर बनाया जायेगा। इसमें रेलवे, जहाज-रेल पारगमन नेटवर्क व सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे। इसके साथ ही भविष्य में भागीदार देश पाईपलाइन बिछाने, विद्युत व डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए भी सहमत हो सकते हैं। भागीदार देश 2 माह के भीतर फिर से बैठ कर इस गलियारे की आगे की बातें तय करेंगे। 
    
इस गलियारे में अमेरिका-सऊदी अरब द्वारा वित्त मुहैय्या कराने, यूरोप द्वारा तकनीक व भारत द्वारा निर्माण हेतु ठेका व श्रम शक्ति मुहैय्या कराने के अनुमान लगाये जा रहे हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी इस गलियारे को इस क्षेत्र में तेजी से फैलती चीन की बेल्ट एण्ड रोड पहल के जवाब में खड़ा करना चाहते हैं। भारतीय शासक भी चीन के बरक्स खुद के कारीडोर का दम्भ भरने के लिए अमेरिकी परियोजना में शामिल हो रहे हैं। ये परियोजना कितना जमीन पर उतरेगी यह आने वाले वक्त में ही पता चलेगा क्योंकि अमेरिकी साम्राज्यवादी बीते कुछ वर्षों में चीन को रोकने के नाम पर कई ऐसी परिस्थितियों की घोषणा कर उनसे पल्ला झाड़ चुके हैं। चीनी शासकों ने इस परियोजना के भी इसी हश्र की घोषणा कर दी है। 
    
ज्यादा गम्भीर बात यह है कि भारतीय शासक चीनी साम्राज्यवाद के विरोध के नाम पर अमेरिकी साम्राज्यवादियों से अधिकाधिक सटते जा रहे हैं। बाइडेन-मोदी की बैठक के बाद जो संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ वह दिखाता है कि अमेरिकी निवेश भारत में कई क्षेत्रों में आने के वायदों के साथ भारत को अमेरिकी जहाजों के मरम्मत के केन्द्र के रूप में अमेरिका विकसित कर रहा है। अगर यह परियोजना परवान चढ़ती है तो अमेरिका बगैर किसी हो हल्ले के जहाजों की मरम्मत के नाम पर भारत में अघोषित सैन्य अड्डा कायम कर लेगा। 
    
कुल मिलाकर मोदी सरकार साम्राज्यवादी चीन के बरक्स खुद को पेश करने के लिए बड़े डाकू अमेरिका के साथ गलबहियां बढ़ा अपनी पीठ ठोंक रही है। यह बड़ा डाकू कब पीठ में छुरा भोंक देगा, मोदी सरकार इससे बेपरवाह है। 

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को