चोर बाजार में जनता की सम्पत्ति का बंटवारा -रॉक डाल्टन अनुवाद -मनोज पटेल

उन्होंने हमें बताया कि पहली शक्ति है
कार्यपालिका शक्ति
और विधायी शक्ति दूसरी शक्ति है
जिसे ठगों के एक गिरोह ने
‘‘सत्ता पक्ष’’ और ‘‘विपक्ष’’ में बांट रखा है,
और चरित्र भ्रष्ट हो चुका (फिर भी माननीय) सुप्रीम कोर्ट
तीसरी शक्ति है

अखबारों, रेडियो और टी.वी. ने खुद को
चौथी शक्ति का दर्जा दे रखा है और वाकई
वे बाकी तीनों शक्तियों के हाथ में हाथ डाले चलते हैं

अब वे हमें यह भी बता रहे हैं कि
नई लहर वाले युवा पांचवीं शक्ति हैं।

और वे हमें यह भी भरोसा दिलाते हैं कि सभी चीजों और शक्तियों के ऊपर
ईश्वर की महान शक्ति है।

‘‘और अब चूंकि सभी शक्तियों का बंटवारा हो चुका है
..वे निष्कर्ष रूप में हमें बताते हैं-
किसी ओर के लिए कोई शक्ति नहीं बची है 
और अगर कोई कुछ और सोचता है
तो उसके लिए फौज और नेशनल गार्ड हैं’’

शिक्षाएंः

1. पूंजीवाद शक्तियों की एक बड़ी मंडी है
जहां केवल चोर अपना धंधा करते हैं
और सच्ची शक्ति की वास्तविक मालिक
यानी आम जनता की बात करना जानलेवा हो सकता है

2. शक्ति के वास्तविक मालिक को उसका 
हक दिलाने के लिए यह जरूरी होगा 
कि चोरों का व्यापार के मंदिरों से लतिया कर केवल बाहर ही न कर दिया जाए
क्योंकि वे बाहर जाकर फिर संगठित हो जाएंगे;
बल्कि बाजार को व्यापारियों के
सर तक ले आना होगा। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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