रामनवमी पर धार्मिक जुलूसों के नाम पर उत्पात

/ramnavami-par-dharmik-juluson-ke-naam-par-utpaat

फासीवादी ब्रिगेड ने रामनवमी पर इस बार भी जमकर उत्पात मचाया और विभिन्न राज्यों में शोभा यात्राओं के नाम पर भड़काऊ जुलूस निकाले। इस दौरान डी जे पर बेहद तेज आवाज में अश्लील और भड़काऊ गीत चलाये गये और धर्म विशेष को लक्षित कर नारों की शक्ल में भद्दी गालियां दी गईं। अनेकों जगहों में ऐसे जुलूसों में न सिर्फ भगवा झंडे अपितु तलवारें भी खुलेआम लहराई गईं। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में तो एक दरगाह पर चढ़कर भगवा झंडे भी लहराये गये। और ये सब करने वाले अपने कपड़ों से साफ पहचाने जा रहे थे। साफ जाहिर था कि ये कोई धार्मिक लोग नहीं थे बल्कि हिंदूवादी संगठनों से लम्पट तत्व थे। भला कोई धार्मिक आदमी किसी मस्जिद के सामने खड़ा होकर सेल्फी लेकर और भड़काऊ नारे लगाकर रामनवमी क्यों मनायेगा? 
    
रामनवमी के दिन इन भड़काऊ और एक समुदाय विशेष को आतंकित करने वाले और कानून व्यवस्था को धता बताने वाले जुलूसों के दौरान पुलिस-प्रशासनिक अमला मूकदर्शक बना रहा। कानपुर में पुलिस ने उन्मादी भीड़ को थोड़ा नियंत्रित करने की कोशिश की तो पुलिस पर ही जूता उछाल दिया गया। 
    
इन उन्मादी जुलूसों के दौरान यदि मुसलमान समुदाय धैर्य का परिचय नहीं देता और कहीं कोई घटना घट जाती तो आर एस एस-भाजपा दंगा भड़काने की पूरी कोशिश करती और पुलिस दंगाईयों के नाम पर मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर उनका दमन शुरू कर देती। सरकार का बुलडोजर उनके मकान-दुकानों को ढहाना शुरू कर देता और एकाधिकारी पूंजी द्वारा नियंत्रित मीडिया इस सब को हिंदू गौरव के रूप में प्रस्तुत करता। जैसा कि आजकल आम तौर पर हो रहा है। 
    
केंद्र एवं विभिन्न राज्यों की सत्ता पर काबिज आर एस एस-भाजपा द्वारा अब हर धार्मिक त्यौहार को सांप्रदायिक राजनीति के रंग में रंगना आम हो चुका है। क्योंकि ये भली-भांति जानते हैं कि हिंदू-मुसलमानों के बीच वैमनस्य बढ़ाने में ये जब-तक कामयाब रहेंगे तभी तक ही सत्ता में भी बने रहेंगे। धर्म के नाम पर निकलने वाले इनके राजनीतिक जुलूसों में हुड़दंग मचाने वाले बेरोजगार नौजवानों के ऊपर से जिस दिन इनकी नफरत की राजनीति का नशा उतरेगा उस दिन वे रोजगार की मांग के साथ इन्हीं के खिलाफ तन कर खड़े हो जायेंगे।
 

आलेख

/samraajyvaadi-comptetion-takarav-ki-aur

ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

/india-ki-videsh-neeti-ka-divaaliyaapan

भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

/bharat-ka-garment-udyog-mahila-majadooron-ke-antheen-shoshan-ki-kabragah

भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।