
उ.प्र. को अपराध मुक्त कराने का मुख्यमंत्री योगी आये दिन दावा करते रहते हैं। पर असलियत बार-बार उनके झूठे दावों को तार-तार करने के लिए सामने आ जाती है। बीते दिनों वाराणसी-कासगंज-प्रतापगढ़-मुरादाबाद में एक-एक कर सामने आये सामूहिक बलात्कार प्रकरणों ने साबित कर दिया कि संघ-भाजपा के शासन का बढ़ते महिला अपराधों से गहरा रिश्ता है।
वाराणसी प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र है। आये दिन यहां मोदी से लेकर योगी का खुद आना जाना लगा रहता है। वाराणसी में 12वीं की एक छात्रा के साथ 23 लोगों द्वारा कई दिन तक एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर नशा खिला सामूहिक बलात्कार किया गया। इस दौरान छात्रा के पिता उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने गये तो थाने वालों ने उन्हें भगा दिया। बाद में छात्रा जब अपराधियों के चंगुल से बाहर आयी तो यह वीभत्स घटना सामने आयी। बताया जा रहा है कि एक कैफे संचालक के इर्द-गिर्द बने गिरोह ने इस वारदात को अंजाम दिया और वे अन्य कई लड़कियों को अपना शिकार बना चुके हैं।
कासगंज में 16 वर्षीया नाबालिग लकड़ी जब अपने दोस्त के साथ घर लौट रही थी तो 8 युवकों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया। प्रतापगढ़ में एक नर्सिंग होम में काम करने वाली दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ तो मुरादाबाद में 14 वर्षीया नाबालिक लड़की सामूहिक बलात्कार का शिकार बनी।
उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से एक-एक कर सामने आ रही घटनाओं ने प्रदेश में कानून-व्यवस्था से लेकर अपराधों की स्थिति पर सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं। रही सही कसर इस खबर ने पूरी कर दी कि गुजरात की तर्ज पर उ.प्र. में भी कुछ सिपाहियों द्वारा फर्जी थाना चलाना पकड़ा गया। ये सिपाही फर्जी थाना चला अवैध वसूली कर रहे थे।
आखिर महिलाओं के प्रति हिंसा संघ-भाजपा के शासन में क्यों बढ़ रही हैं? क्या संघ-भाजपा के शासन और बढ़ती महिला हिंसा के बीच कोई सम्बन्ध है या फिर ये घटनायें एक साथ सामने आना संयोग मात्र हैं। थोड़ा भी गौर से देखने पर सीधा सम्बन्ध सामने आने लगता है।
पहली बात तो यही कि खुद भाजपा के ढेरों विधायक-सांसद महिलाओं के प्रति अपराधों के आरोपी हैं। कुलदीप सेंगर-ब्रजभूषण सरीखों की भाजपा में कमी नहीं है। ऐसे में इनके लगुवे-भगुवे भी इसी चाल-चरित्र के होंगे। आशाराम सरीखों के साथ संघी सरकार क प्रेम किसी से छिपा नहीं है। दूसरी बात यह कि हर विरोध-प्रदर्शन, अपने खिलाफ उठती हर आवाज को पुलिसिया डण्डे से खामोश करने की इनकी आदतों ने पुलिस को भी किसी हद तक नक्कारा व छुट्टे सांड सरीखा बना दिया है। ज्यादातर जगहों पर इनकी देखादेखी पुलिस अपराध खात्मे के फर्जी दावे करने के साथ अपराध रोकने के रस्मी कदम भी उठाने से इंकार करने लगी है। अपराधियों (जो ज्यादातर संघ-भाजपा वाले या उन तक पहुंच वाले होते हैं। क्योंकि अपराधियों के लिए सुरक्षा का सबसे बड़ा उपाय संघ-भाजपा के करीब आना बन चुका है) से सांठगांठ कर कमाई ही पुलिस का मुख्य काम बन चुका है। इसीलिए वाराणसी में छात्रा के पिता की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज नहीं होती और पुलिस की नाक के नीचे संगठित गिरोह सक्रिय रहता है। तीसरा यह कि जिस हद तक संघ-भाजपा की नीतियों ने बेकारी को बढ़ाया है और बेरोजगार युवाओं को अपनी डीजे पर नाचने वाली, मस्जिद पर भगवा लहराने वाली लंपट सेना में भर्ती किया है, उस हद तक उन्होंने इन्हें किसी भी अपराध को करने की खुली छूट भी दे दी है। इसीलिए बी एच यू में भाजपा आई टी सेल के 3 युवक सामूहिक बलात्कार में लिप्त पाये जाते हैं। चौथा यह कि सवर्ण वर्चस्व की इनकी संघी सोच ने दलितों पर हिंसा बढ़ा दी है। दलित महिलाओं से अत्याचार बढ़ना इसी का हिस्सा है। पांचवा यह कि पाश्चात्य संस्कृति का विरोध करने का दिखावा करने वाले ये ‘राष्ट्रवादी’ वस्तुतः अमेरिका भक्त हैं। ट्रम्प से यारी के साथ ट्रम्प की इण्टरनेट-पोर्नोग्राफी, रामनवमी पर फूहड़ अश्लील नृत्य सब भारत में तेजी से प्रसारित हो महिलाओं से अपराध बढ़ने में मदद कर रहे हैं। छठी व अंतिम बात यह कि मनुस्मृति के ये पुजारी खुद स्त्रियों को पांवों की जूती सरीखा मानते हैं और उनके खिलाफ अपराध को अपना अधिकार समझने लगे हैं।
ये सभी कारण मिलकर संघ-भाजपा के ‘अमृत भारत’ को महिलाओं के लिए ‘विषैले’ भारत में बदल रहे हैं जिसका जीता जागता उदाहरण उ.प्र. की हालिया घटनायें हैं। इस विषैलेपन से मुक्ति के लिए संघ-भाजपा के शासन से मुक्ति के साथ-साथ महिला शरीर को उपभोग वस्तु के रूप में पेश करने वाली पूंजीवादी व्यवस्था से मुक्ति भी जरूरी है।