
काशीपुर/ जिला उधमसिंह नगर में स्थित काशीपुर शहर जहां छोटे-बड़े कई कारखाने और फैक्टरियां हैं। इन्हीं फैक्टरी ग्रुपों में से एक ग्रुप है जिसका नाम के वी एस ग्रुप आफ कंपनीज है। जिसका मालिक देव कुमार अग्रवाल और उसका बेटा अर्पण जिंदल है जिसकी बहुत सी छोटी-बड़ी फैक्टरियां हैं। जिसमें केवीएस इस्पात उद्योग और देवार्पण नमकीन फैक्टरी नाम से बड़ी फैक्टरी है जो काशीपुर में स्थित है। इन कंपनी में भारी पैमाने पर ठेके के तहत मजदूर काम करते हैं। बिना किसी पीएफ और ई एस आई की सुविधा के 12 घंटे के एवज में महज 400 रुपए और उससे भी कम मजदूरी पर मजदूरों से काम लिया जाता है। न ही कोई साप्ताहिक अवकाश इन मजदूरों को हासिल है। आए दिन मजदूरों के अंग-भंग हो जाना, दुर्घटना में किसी मजदूर की मौत हो जाना यहां मामूली सी बात है। और श्रम कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाना यहां आम बात है। मामूली सी चोरी पर, या चोरी का इल्जाम लगाकर सिक्योरिटी गार्ड से निर्ममता से पिटाई लगवाने के मामले में यहां का मैनेजमेंट कुख्यात है। और इतना सब कुछ होते हुए भी न तो पुलिस प्रशाशन कोई कार्यवाही करता है और श्रम विभाग भी इनका पालतू बना हुआ है। अक्सर ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी से फैक्टरी मालिक की मुलाकातें होती रहती हैं।
अभी कुछ दिन पहले 4 अप्रैल के दिन दीवार्पण नमकीन फैक्टरी में रात की शिफ्ट में एक मजदूर की कन्वेयर बेल्ट में फंसकर दर्दनाक मौत हो गई। समय रहते यदि कन्वेयर बेल्ट को काट दिया जाता तो मजदूर की जान बचाई जा सकती थी। परन्तु मालिक की नजर में बेल्ट की कीमत मजदूर की जान से ज्यादा कीमती थी इसलिए मजदूर की मौत की कीमत पर बेल्ट बचा ली गयी।
केवीएस ग्रुप में जब भी किसी मजदूर की मौत होती है तब मजदूरों की तरफ से कभी कोई प्रतिरोध नहीं होता। मैनेजमेंट आता है मजदूरों की डांट लगता है और मजदूर काम पर लग जाते हैं। और मैनेजमेंट भी मामले को अक्सर यूं ही रफा-दफा कर देता है और इस बार भी ऐसा ही हुआ।
कंपनी के बगल में ही केवीएस का एक और प्लांट है जिसका नाम केवीएस इस्पात उद्योग है। इस कंपनी में एक मजदूर कपिल जो कि इलेक्ट्रिकल विभाग में काम करता है उस तक इस घटना की सूचना पहुंचती है। जो कि अपने सारे ही जानने वालों तक घटना की सूचना पहुंचाता है और अगले दिन 5 अप्रैल को सभी स्थानीय लोगों का फैक्टरी गेट पर पहुंचने का आह्वान करता है।
5 अप्रैल की सुबह ही मजदूर के परिवारजन, स्थानीय मजदूर और सामाजिक संगठनों के लोग फैक्टरी गेट पर पहुंच जाते हैं। दिन भर कंपनी की सड़क प्रतिरोध की गवाह बनी रही। अपनी वफादारी निभाते हुए पुलिस प्रशासन का रुख मालिक के प्रति वफादारी का रहा और वो विरोध में खड़े लोगों के मन में दहशत बनाने का काम करता रहा। इन सब के बीच कपिल सीधे मुखर विरोध में खड़ा रहा था। अंत में शाम होते-होते 5 लाख के मुआवजे पर मजदूर के परिवार से समझौता हुआ। लेकिन साथ में विरोध के कारण कपिल का गेट भी अगले दिन बंद कर दिया।
स्थानीय आबादी और सामाजिक संगठनों के सम्मिलित प्रतिरोध से हालांकि मजदूर के परिवार को कुछ तात्कालिक राहत तो मिल गई परंतु जो विरोध देवार्पण नमकीन में काम करने वाले मजदूरों को करना चाहिए था वो मजदूर मूक दर्शक ही बने रहे। जब तक ये मजदूर अपने किसी मजदूर साथी की मौत पर यूं ही मूकदर्शक बने रहेंगे तब तक वो यूं ही मारे जाने के लिए अभिशप्त रहेंगे। इस बीच गेटबंदी के बाद कपिल ने आगे की लड़ाई के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। अब देखना ये है कि जिस भी तरीके से सही ये पहली दफा कोई संघर्ष फूटा है कितनी जल्द फैक्टरी के मजदूरों के भीतर किसी उद्वेलन को पैदा करने में कामयाबी हासिल करता है।
-काशीपुर संवाददाता