एलके (Elkay) कम्पनी में मजदूरों का शोषण

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फरीदाबाद/ Elkay कम्पनी हरियाणा के फरीदाबाद शहर में प्लाट नम्बर 141, सेक्टर 24 में स्थित है। यह काफी पुरानी कम्पनी है। इसमें कॉपर की हर साइज की तार बनाने का काम होता है। हम अपने आस-पास घरों में, बिजली के खम्बों में बिजली घरों में जहां पर भी तारों को देखते हैं वैसी ही तार इस कम्पनी में बनायी जाती हैं। 
    
कॉपर की तारों को 7, 15, 16, 21, 25, 31, 41 की संख्या में पहले मशीनों से एक किया जाता है। फिर उसमें अलग-अलग साइज में पीवीसी मशीनों से प्लास्टिक चढ़ाई जाती है। फिर इन तारों से अलग-अलग संख्या व साइज के हिसाब में 4, 8, 16, 32 गियर में अलग-अलग मशीनों में एक तार या वायर बनायी जाती है। उसके बाद अलग-अलग आर्डरों के हिसाब से इनमें टेप या पानी वाली टेप चढ़ाने का काम होता है। ये वायर आर्डरों के हिसाब से बड़े-छोटे बोवीनों (गिटों) में भरकर अन्य कम्पनियों या सरकारी विभागों में सप्लाई की जाती है। 
    
कम्पनी के मालिक का नाम महेन्द्र गर्ग है। यह काफी सख्त व्यवहार के कहे जाते हैं। ये हर दिन कम्पनी में एक बार चक्कर जरूर लगाते हैं। इनकी एक और कम्पनी फरीदाबाद के औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर-25 में इसी नाम से इस कम्पनी के बाद खोली गयी है। 
    
एलके (Elkay) कम्पनी में 12-12 घंटे की दो शिफ्टों में काम होता है। कम्पनी में लगभग 130-135 मजदूर व लगभग 50-55 स्टाफ काम करता है। इन 130 मजदूरों में से लगभग 40-45 मजदूर ही स्थाई मजदूर हैं। इन मजदूरों को कम्पनी में काम करते हुए 15 से 25 साल तक हो चुके हैं। कुछ मजदूर ऐसे भी जो पहले कम वेतन के कारण नौकरी छोड़ कर चले गये, बाद में वेतन बढ़ने के बाद कम्पनी में आकर नौकरी करने लगे और लम्बे समय बाद स्थायी हो गये। 
    
ये सभी स्थायी मजदूर आपरेटर हैं। कम्पनी में काम काफी पुरानी तकनीक से होता है। हाथों से भी काफी काम होता है। पांच-सात मशीनों को छोड़कर शेष मशीनें ऐसी हैं जिन पर कोई भी मजदूर काम आसानी से सीख सकता है। शुरूवात में मशीनों को कम स्पीड के साथ ऑपरेट किया जा सकता है। बाद में स्पीड बढ़ जाया करती है। कम्पनी में तकनीक इतनी पुरानी है कि बड़े से बड़े बोवीनों (गिटों) को भी हाथों से एंगल लगा-लगा कर इधर से उधर किया जा सकता है। सुरक्षा की नजर से देखा जाये तो मजदूरों को कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं दिये जाते हैं। मजदूर आपस में कहते भी हैं कि हाथ-पैर बचा कर काम करो, चोट लगने पर कोई कुछ नहीं करेगा और न कुछ मिलेगा। 
    
कम्पनी में कुछ समय से महिलाओं को भी भर्ती किया जा रहा है। लेकिन कम्पनी में महिलाओं की समस्याओं को सुनने के लिए कोई कमेटी नहीं है।
    
कम्पनी में स्थायी और अस्थाई मजदूरों के बीच कुछ ही वेतन का अंतर है। हरियाणा सरकार की ओर से मजदूरों का न्यूनतम वेतन 11,002 रु. है। कम्पनी में मजदूरों को 10500 रु. ही वेतन मिलता है। इन्सेन्टिव (मजदूरों को कम्पनी में लगातार और ज्यादा काम करने के एवज में मिलने वाले कुछ रुपये) मिलने के बाद ही मजदूरों का वेतन न्यूनतम वेतन के बराबर पहुंच पाता है। 
    
अस्थाई मजदूरों का ईएसआई और पीएफ नहीं काटा जाता है। हालांकि भर्ती के समय उनको बोला जाता है कि आपका ईएसआई और पीएफ काटा जाता है। एक महिला मजदूर जब कम्पनी में काम करने गयी और उसने कुछ समय बाद अपने पीएफ न काटने के बारे में पूछा तो इतनी ही बात पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया। 
    
अन्य कम्पनियों की तरह एलके (Elkay) कम्पनी में भी ओवरटाइम मजदूरों के लिए एक बड़ी समस्या है। यहां मजदूरों की 12-12 घंटे की दो शिफ्ट हैं। इसका मतलब है मजदूरों से 3.5 घंटे प्रतिदिन ओवरटाइम करवाना। इस ओवरटाइम का उन्हें श्रम कानूनों से हिसाब से दुगुना भुगतान नहीं किया जाता है बल्कि सिंगल ही दिया जाता है। इस तरह मालिक प्रतिदिन मजदूरों से 8 घंटे के बजाय 12 घंटे की ड्यूटी करवाता है। इसके अलावा मजदूरों से 24-36 घंटे तक लगातार भी कार्य करवाया जाता है। जो मजदूर ओवरटाइम करने से मना करता है उसका गेट बंद कर दिया जाता है।
    
बढ़ती महंगाई के बीच मजदूर आज ओवरटाइम पर रुकने या कहें कि 12 से 36 घंटे की ड्यूटी करने के लिए मजबूर है। एक समय 8 घंटे काम की मांग पूरी दुनिया में उठी और भारत में भी काम के घंटे 8 हुआ करते थे लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। इंसानी शरीर काम करने के बाद आराम मांगता है लेकिन मजदूरों को आराम का समय ही नहीं है। और जब मजदूर बूढ़ा हो जायेगा तो 12-12 घंटे कैसे काम कर पायेगा। 
    
कम्पनी में स्टाफ और मजदूर के बीच भारी अंतर है। स्टाफ की 8 घंटे की जनरल शिफ्ट होती है। मजदूरों के शोषण के दम पर स्टाफ को मोटी-मोटी तनख्वाहें दी जाती हैं। स्टाफ भी मजदूरों से जानवरों की तरह काम लेता है ताकि मालिक को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा कर दे सके। 
    
इसी मुनाफे के दम पर मालिक एक के बाद एक फैक्टरियां लगाता जा रहा है और मजदूर सालों काम करने के बाद एक झोंपड़ी तक नहीं बना पा रहा है। लेकिन कहावत है कि एक समय बाद मुर्गा भी बोलने लगता है। मजदूर भी अपने खिलाफ होने वाले शोषण और अन्याय के खिलाफ एक न एक दिन जरूर संगठित होंगे। 
        -फरीदाबाद संवाददाता

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