मानहानि का खेल

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हमारे देश में एक खेल बहुत तेजी से फैला है। यह खेल मानहानि का खेल है। विपक्ष के नेता ने फलाने के लिए यह बोल दिया। जिसके लिए बोला वह इतिहास की कब्रगाह में तसल्ली से सो रहा है पर भावनाएं आहत हो गईं मरे हुए के पोते की। क्या हुआ दादा तो मर गया पर पोता तो जिन्दा है। जिन्दा पोते की मानहानि दादा पर लगे इल्जाम के कारण हो गई? बेचारे पोते के पास अपना कुछ है नहीं जो कुछ है वह दादा का ही है। यहां तक कि भी बेचारे पोते को लोग इसीलिए जानते हैं कि वह फलाने का पोता है। मानहानि के कारण ही पता चला मरे दादा का पोता अभी भी जिन्दा है। 
    
ऐसे ही एक आदमी, जो कि दिल्ली का उप राज्यपाल है उसकी भी मान हानि हो गई। मानहानि कैसे हो गयी और किसने की। एक लड़ाकू औरत ने एक ऐसे आदमी की पोल खोल दी जो उप-राज्यपाल बनाया ही इसलिए गया था कि उसने इस बात में महारत हासिल की थी वह किसी माननीय का मान कैसे भी करके गिरा सकता है। अब जब अपने मान की बारी आयी तो सीधे भागा अदालत और रोने लगा कि मेरी मानहानि हो गयी। अब अदालत क्या करे? वहां तो एक से बढ़कर एक माननीय हैं। एक माननीय जज के घर करोड़ों रुपये न जाने कैसे जल गये। उनके जले हुए नोटों ने ही कईयों के दिल जला दिये। जैसे बरसात में भीगे कुत्ते को कोई अपने दरवाजे पर बैठने नहीं देता है ठीक वैसे ही हालत करोड़ों रुपये जिस माननीय जज के जले उसकी हो गयी। पूरी न्याय प्रणाली जज का मान लौटाने में जुटी है पर जज का मान लौट के नहीं आ रहा है। वकील उसके मान की ऐसी-तैसी कर रहे हैं। 
    
न्याय प्रणाली भी क्या करे? अपना मान बचाये कि अपने यहां मान-हानि की गुहार लगाने वालों का मान बचाये। और फिर ऐसी हालत में क्या किया जाये जब हर कोई माननीयों के मान के पीछे पड़़ा हो। और कामरा ने तो हद कर दी। किसी को न छोड़ा। न शिंदे को, न मोदी हो, न शाह को, न सीतारमण को। कामरा के मान को तोड़ने के लिए शिंदे के मान के रखवालों ने उसका स्टूडियो तोड़ डाला। और करोगे मानहनि! और कामरा की पौ बारह हो गयी। वह किसी की मानहानि करे तो उसकी दौलत बढ़े और कोई उसकी मानहानि करे तो भी उसकी दौलत बढ़े। यह हुआ सोने पे सुहागा। 
    
मानहानि का खतरा उनको होता है जिनका कोई मान अतीत या वर्तमान में होता है। बाकी रही आपके मान की बात तो कोई पुलिस वाला, कोई सरकारी बाबू, कोई अफसर, कोई मैनेजर यानी कोई भी कहीं भी, कभी भी बता सकता है कि आपका मान क्या है? और आप न सावरकर के पोते ही तरह न सक्सेना की तरह अपने मान की रक्षा के लिए उनके पास गुहार लगा सकते हैं जिनका खुद का मान खतरे में है। और फिर आदमी रोजी-रोटी की फिक्र करेगा या रात-दिन मान के चक्कर में अदालत में चक्कर लगायेगा। ऐसे मान की रक्षा से बेहतर है कि आदमी मन मार के गालियां खा ले या फिर पिछवाड़े पर पड़ी लात को सह ले। आम आदमी तो यही करता आ रहा है। पता नहीं कब तक करता रहेगा। 

आलेख

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ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

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भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

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भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।