
अंधेरा है
बहुत घना अंधेरा है
कुछ नहीं दिखाई देता
हिंदू है या मुसलमान है
मगर शायद इंसान है,
अंधेरे को चीरती हुई आ रही हैं
बच्चों की चीखें, महिलाओं की सिसकियां
वो रोते हुए बड़बड़ा रही हैं
क्या कसूर था इन मासूम बच्चों का?
क्या अपराध था मेरा?
क्यों गिरा दिया छोटा सा आशियाना मेरा।
तुम्हें औरंगजेब की कब्र खोदनी है
जरूर खोदो
तुम्हें जिसका भी मकबरा खोदना है
खोदो
मगर जीते जी बूढ़े मां-बाप को
बुलडोजर से मत रौंदो।
अपने आप को योगी, संत, सनातनी कहने वालो
बताओ किस गीता में लिखा है कि
बाप के जुर्म की सजा बच्चों को दो
किस वेद पुराण में लिखा है कि
बेटे के अपराध की सजा मां-बाप को दो
तुम कहते हो कि तुम्हारा धर्म श्रेष्ठ है
तुम्हारी संस्कृति महान है
बस्तियां उजाड़ते हुए तुम्हें दर्द नहीं होता
क्या यही वसुधैव कुटुम्बकम का ज्ञान है।
माना कि बहुत अन्याय है अंधकार है
रोशनी की किरण अभी दूर है
रात घनी अंधियारी है
सूरज भी मजबूर है
मगर जब मशालें लेकर
सड़कों पर जन सैलाब आयेगा
तब अंधियारा छंट जायेगा
और नया सवेरा आयेगा।। -भारत सिंह