सेवा का मेवा

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बहुत कम ईडी निदेशक रहे होंगे जो निरंतर चर्चा में बने रहते हैं। संजय मिश्रा ऐसों में सबसे ऊपर हैं। इनकी चर्चा भाजपा सरकार के इशारों पर नाचने वाले के तौर पर होती है। विपक्षी नेताओं और पूरी की पूरी प्रदेश सरकारों को तोड़ने-फोड़ने में भाजपा सरकार ने ईडी का जमकर इस्तेमाल किया।
    
संजय मिश्रा वर्ष 2018 में ईडी के निदेशक बने। 2020 में इनका कार्यकाल समाप्त होना था। लेकिन मोदी सरकार के प्रिय संजय मिश्रा को तीन बार सेवा विस्तार दिया गया। तीसरा सेवा विस्तार उन्हें नवम्बर 2023 तक दिया गया। अंततः सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से मोदी के प्रिय निदेशक की सेवाएं खत्म हुईं।
    
संजय मिश्रा मोदी के इतने प्रिय क्यों थे। यह तो उनका पिछला रिकार्ड ही बता देता है। पिछले 10 सालों में मनी लांडरिंग के 193 केस राजनीतिक लोगों पर लगाये गये जिसमें से मात्र 2 मामलों में दोष सिद्ध हुआ। 42 मामले मोदी के पहले कार्यकाल के अंतिम 4 चार वर्षों के हैं। साल 2019 में मोदी के दूसरे कार्यकाल में 138 मामले दर्ज किये गये थे। यानी साफ है ईडी के ज्यादातर मामले संजय मिश्रा के कार्यकाल के हैं। 
    
संजय मिश्रा की सेवाएं ही थीं कि मोदी उनके कार्यकाल को बढ़ाते गये। जब कार्यकाल बढ़ाना संभव नहीं रह गया तो उन्हें मोदी ने आर्थिक सलाहकार बना दिया। सेवाभाव से भरे संजय मिश्रा को मोदी कैसे छोड़ सकते हैं। सेवाएं भी ऐसी जो कई बार विरोधियों को पट करने में बहुत ही निर्णायक रही हैं।

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता