शहीद दिवस पर शहीदों की राह पर चलने का संकल्प लिया

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पंतनगर/ दिनांक 13 अप्रैल 2025 को जलियांवाला बाग हत्याकांड व पंतनगर गोलीकांड की याद में ट्रेड यूनियन संयुक्त मोर्चा से जुड़ी यूनियनों/संगठनों  द्वारा रामलीला मैदान से शहीद स्मारक तक जुलूस निकाला गया और शहीद स्मारक पंतनगर पर सभा में पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई। इंकलाबी मजदूर केंद्र एवं प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ताओं/सदस्यों की इस कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी रही। जुलूस में 13 अप्रैल के शहीद अमर रहें, जलियांवाला बाग के शहीदों को लाल सलाम, शहीदों की क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाओ, अमर शहीदों का पैगाम जारी रखना है संग्राम, हाईकोर्ट के आदेशानुसार ठेका मजदूरों का नियमितीकरण करो, मजदूरों की निकाला-बैठाली बंद करो, पंजीकरण-वर्दी के नाम पर लूट बंद करो, ठेका प्रथा खत्म करो, उत्तराखंड सरकार महंगाई भत्ता लागू करो, मजदूर विरोधी 4 लेवर कोड रद्द करो, बोनस, ग्रेच्युटी, अवकाश सुविधा लागू करो, आंदोलन का दमन बंद करो आदि नारे लगाये गये।
    
सभा में वक्ताओं ने कहा कि 13 अप्रैल 1919 को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से चल रही सभा में निहत्थी जनता पर चलाइ गई अंधाधुंध गोलियों से हजारों निर्दोष जनता का कत्ल कर दिया गया था। अंग्रेजी सरकार  के दमन से आजादी का आंदोलन रुका नहीं बल्कि शहीदों की रुधिर की धार से शहीद भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, ऊधम सिंह जैसे क्रांतिकारी पैदा हुए जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी देकर आजादी के आंदोलन को आगे बढ़ाया। 
    
आजादी के ठीक 40 साल बाद 13 अप्रैल 1978 को आजाद भारत में पंतनगर में श्रम नियमों द्वारा देय बोनस, ग्रेच्युटी, अवकाश, स्थाईकरण जैसी कानूनी मांगों को लेकर मजदूरों की चल रही शांतिपूर्ण सभा पर काले अंग्रेजों द्वारा गोलीकांड  किया गया और नया जलियांवाला हत्याकांड रचा गया। जिसमें 14 मजदूर शहीद हो गए। सैकड़ों घायल हो गए। काले अंग्रेजों ने साबित किया कि वह मजदूर वर्ग के दमन में अंग्रेजी हुकूमत से कतई कम नहीं हैं। पर हमारे शहीद मजदूर साथियों ने गोरे, काले अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके, गुलामी को स्वीकार नहीं किया। अपनी जायज मांगों को हासिल करने में जुझारू संघर्षों को आगे बढ़ाते रहे। गुलामी को खत्म कर नियमितीकरण, बोनस, ग्रेच्युटी, अवकाश जैसी मूलभूत सुविधाएं शासन-प्रशासन से छीनीं।
    
श्रद्धांजलि सभा द्वारा संकल्प लिया गया कि 13 अप्रैल 1978 के शहीदों की क्रांतिकारी विरासत को याद करते हुए अपने साथ हो रहे शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार, हर तरह के अन्याय, ठेका प्रथा के खिलाफ संगठित होकर शहीदों के सपने पूरे करने में पूरी ताकत के साथ अपनी आवाज बुलंद करेंगे और नियमितीकरण जैसी जायज मांगों के लिए जुझारू आंदोलन आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।     -पंतनगर संवाददाता 

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।