छात्रों के संघर्ष की चिंगारी से जब संसद में धुआं उठा

सर्बिया में 1 नवंबर 2024 को नोवी सैड रेलवे स्टेशन पर एक कैनोपी गिरने से 15 लोगों की मौत हो गई थी। इसके विरोध में 3 नवंबर 2024 को छात्रों ने 15 मिनट सड़क जाम कर मरे हुए लोग
सर्बिया में 1 नवंबर 2024 को नोवी सैड रेलवे स्टेशन पर एक कैनोपी गिरने से 15 लोगों की मौत हो गई थी। इसके विरोध में 3 नवंबर 2024 को छात्रों ने 15 मिनट सड़क जाम कर मरे हुए लोग
बीते दिनों एक-एक कर संघर्षरत छात्र संगठनों पर संघी शासकों ने हमले बोलने का काम किया। दिसम्बर माह में मनुस्मृति जलाने वाले भगतसिंह स्टूडेंट्स मोर्चा के 13 छात्रों को पहले
हरिद्वार/ राजकीय मेडिकल कालेज, हरिद्वार में सत्र 2024-25 के लिए 100 छात्र-छात्राएं एमबीबीएस में दाखिले के लिए आए हुए थे। उन्हें दिनांक 8 जनवरी 2025 को पत
मोदी सरकार का देश की शिक्षा व्यवस्था पर हमला बोलना बदस्तूर जारी है। अभी हाल में ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपने कुछ नये नियम जारी किये। इन नियमों से विश्वविद्यालयों
देश की संसद में गृहमंत्री द्वारा अम्बेडकर के अपमान का मुद्दा अभी शांत भी नहीं हुआ था कि वाराणसी में घटे एक घटनाक्रम ने दिखला दिया कि दरअसल संघ-भाजपा को अम्बेडकर से न केवल
पूरे देश में एक समान मूल्यांकन पद्धति को लेकर ‘परख’ (प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा एवं समग्र विकास के लिए ज्ञान का विश्लेषण) संस्था पिछले दिनों में चर्चा का विषय बनी। यह रा
दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर में यूपीएससी की तैयारी करने वाले 3 छात्रों की मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिये हैं। ओल्ड राजेन्द्र नगर यूपीएससी की तैयारी कराने वाले कोचिंग
अक्टूबर माह से शुरू हुए फिलिस्तीन पर इजरायल के नए नरसंहार वाले युद्ध के 6 माह बीतते-बीतते अमेरिका में ऐसी परिस्थिति पैदा हो गयी है जो कि वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका मे
पिछले कुछ सालों में एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों में बड़े बदलाव किये गये हैं। मौजूदा बदलाव पाठयक्रम में छोटी-छोटी कैंची चला कर किये गये हैं। गुजरात दंगों का जिक्र जो अब सिर्फ
इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है।
1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।
असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता।
इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।
आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।