कविता

युद्ध -महेंद्र पाण्डेय

/war-mahendra-pandey

युद्ध सेनायें नहीं करतीं 
युद्ध शासक करते हैं 
युद्ध में शासक नहीं मरते
सैनिक मरते हैं 
जनता मरती है.. 

पहलगाम हमले पर टिप्पणी

/pahalgam-hamale-par-tippani

पहलगाम हमले पर टिप्पणी पर गायिका नेहा सिंह राठौर के बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर माद्री काकोटी उर्फ डा. मेड्यूसा के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज हुआ है।

चोर बाजार में जनता की सम्पत्ति का बंटवारा -रॉक डाल्टन अनुवाद -मनोज पटेल

उन्होंने हमें बताया कि पहली शक्ति है
कार्यपालिका शक्ति
और विधायी शक्ति दूसरी शक्ति है
जिसे ठगों के एक गिरोह ने
‘‘सत्ता पक्ष’’ और ‘‘विपक्ष’’ में बांट रखा है,

कहे सतलुज का पानी -सुरजीत पातर

/kahe-satluj-ka-pani-surajeet-paatar

कहे सतलुज का पानी
कहे ब्यास की रवानी

अपनी लहरों की ज़ुबानी
हमारा झेलम चिनाब को सलाम कहना
हम मांगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !

डेविड डियोज की दो कविताएं

गिद्ध

उन दिनों
जब सभ्यता हमारे चेहरों पर लात मार रही थी
जब पवित्र जल हमारी सिकुड़ी हुई भौहों पर
तमाचे जड़ रहा था
गिद्ध अपने पंजों के साये में

वर्णमाला -मंगलेश डबराल

/varnmala-manglesh-dabaraal

एक भाषा में अ लिखना चाहता हूं
अ से अनार अ से अमरूद
लेकिन लिखने लगता हूं 
अ से अनर्थ अ से अत्याचार
कोशिश करता हूं कि क से कलम या करुणा लिखूं

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।