
सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुजर गए। बिलकुल उसी तरह जिस मौसम में खिलाफ-ए-मामूल चंद दिन खराब आएं और चले जाएं। ये नहीं कि करीम दाद, मौला की मर्जी समझ कर खामोश बैठा रहा। उसने इस तूफ़ान का मर्दानावार मुकाबला किया था। मुखालिफ कुव्वतों के साथ वो कई बार भिड़ा था। शिकस्त देने के लिए नहीं, सिर्फ मुकाबला करने के लिए नहीं। उसको मालूम था कि दुश्मनों की ताकत बहुत ज्यादा है। मगर हथियार डाल देना वो अपनी ही नहीं हर मर्द की तौहीन समझता था। सच्च पूछिए तो इसके मुतअल्लिक ये सिर्फ दूसरों का ख्याल था इनका, जिन्होंने उसे वहशीनुमा इंसानों से बड़ी जांबाजी से लड़ते देखा था। वर्ना अगर करीम दाद से इस बारे में पूछा जाता, कि मुखालिफ कुव्वतों के मुकाबले में हथियार डालना क्या वो अपनी या मर्द की तौहीन समझता है। तो वो यकीनन सोच में पड़ जाता। जैसे आप ने उससे हिसाब का कोई बहुत ही मुश्किल सवाल कर दिया है।
करीम दाद, जमा, तफरीक और जरब तकसीम से बिलकुल बे-नियाज था। सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुजर गए। लोगों ने बैठकर हिसाब लगाना शुरू किया कि कितना जानी नुकसान हुआ, कितना माली, मगर करीम दाद इससे बिलकुल अलग-थलग रहा। उसको सिर्फ इतना मालूम था कि उसका बाप रहीम दाद इस जंग में काम आया है। उसकी लाश खुद करीम दाद ने अपने कंधों पर उठाई थी। और एक कुवें के पास गढ़ा खोद कर दफनाई थी।
गांव में और भी कई वारदातें हुई थीं। सैंकड़ों जवान और बूढ़े कत्ल हुए थे, कई लड़कियां गायब हो गई थीं। कुछ बहुत ही जालिमाना तरीके पर बे-आबरू हुई थीं। जिसके भी ये जख्म आए थे, रोता था, अपने फूटे नसीबों पर और दुश्मनों की बेरहमी पर, मगर करीम दाद की आंख से एक आंसू भी न निकला। अपने बाप रहीम दाद की शहजोरी पर उसे नाज था। जब वो पच्चीस-तीस, बरछियों और कुल्हाड़ियों से मुसल्लह बलवाइयों का मुकाबला करते-करते निढाल होकर गिर पड़ा था, और करीम दाद को उसकी मौत की खबर मिली थी तो उसने उसकी रूह को मुखातब करके सिर्फ इतना कहा था। ‘‘यार तुमने ये ठीक ना किया। मैंने तुम से कहा था कि एक हथियार अपने पास जरूर रखा करो।’’ और उस ने रहीम दाद की लाश उठा कर, कुंवें के पास गढ़ा खोद कर दफना दी थी और उसके पास खड़े हो कर फातिहा के तौर पर सिर्फ ये चंद अल्फाज कहे हुए ‘‘गुनाह सवाब का हिसाब खुदा जानता है। अच्छा तुझे बहिश्त नसीब हो!’’
रहीम दाद जो न सिर्फ इसका बाप था बल्कि एक बहुत बड़ा दोस्त भी था बलवाइयों ने बड़ी बेदर्दी से कत्ल किया था। लोग जब उसकी अफसोसनाक मौत का जिक्र करते थे तो कातिलों को बड़ी गालियां देते थे, मगर करीम दाद खामोश रहता था। उसकी कई खड़ी फसलें तबाह हुई थीं। दो मकान जलकर राख हो गए थे। मगर उसने अपने इन नुकसानों का कभी हिसाब नहीं लगाया था। वो कभी-कभी सिर्फ इतना कहा करता था जो कुछ हुआ है हमारी अपनी ग़लती से हुआ है। और जब कोई उससे इस गलती के मुतअल्लिक़ इस्तिफसार करता तो वो खामोश रहता।
गांव के लोग अभी सोग में मसरूफ थे कि करीम दाद ने शादी कर ली। उसी मुटियार जीनां के साथ जिस पर एक अर्से से उसकी निगाह थी। जीनां सोगवार थी। इसका शहतीर जैसा कड़ियल जवान भाई बलवों में मारा गया था। मां, बाप की मौत के बाद एक सिर्फ वही उसका सहारा था। इस में कोई शक नहीं कि जीनां को करीम दाद से बेपनाह मोहब्बत थी, मगर भाई की मौत के गम ने ये मोहब्बत उसके दिल में स्याह पोश कर दी थी, अब हर वक्त उसकी सदा मुस्कुराती आंखें नमनाक रहती थीं।
करीम दाद को रोने-धोने से बहुत चिड़ थी। वो जीनां को जब भी सोग जदा हालत में देखता तो दिल ही दिल में बहुत कुढ़ता। मगर वो उससे इस बारे में कुछ कहता नहीं था, ये सोच कर कि औरत ज़ात है। मुमकिन है उसके दिल को और भी दुख पहुंचे, मगर एक रोज उससे न रहा गया। खेत में उसने जीनां को पकड़ लिया और कहा.... ‘‘मुर्दों को कफ़नाये दफनाए पूरा एक साल हो गया है अब तो वो भी इस सोग से घबरा गए होंगे.... छोड़ मेरी जान! अभी जिंदगी में जाने और कितनी मौतें देखनी हैं। कुछ आंसू तो अपनी आंखों में जमा रहने दें।’’
जीनां को उसकी ये बातें बहुत नागवार मालूम हुई थीं। मगर वो उससे मोहब्बत करती थी। इसलिए अकेले में उसने कई घंटे सोच-सोच कर उसकी इन बातों में मानी पैदा किए और आखिर खुद को ये समझने पर आमादा कर लिया कि करीम दाद जो कुछ कहता है ठीक है.......!
शादी का सवाल आया तो बड़े बूढ़ों ने मुखालिफत की। मगर ये मुखालिफत बहुत ही कमजोर थी। वो लोग सोग मना मना कर इतने नहीफ हो गए थे कि ऐसे मुआमलों में सौ फीसदी कामयाब होने वाली मुखालिफतों पर भी ज्यादा देर तक न जमे रह सके... चुनांचे करीम दाद का ब्याह हो गया। बाजे गाजे आए, हर रस्म अदा हुई और करीम दाद अपनी महबूबा जीनां को दुल्हन बना कर घर ले आया।
फसादाद के बाद करीब-करीब एक बरस से सारा गांव कब्रिस्तान सा बना था। जब करीम दाद की बारात चली और ख़ूब धूम धड़ाका हुआ तो गांव में कई आदमी सहम-सहम गए। उनको ऐसा महसूस हुआ कि ये करीम दाद की नहीं, किसी भूत प्रेत की बारात है। करीम दाद के दोस्तों ने जब उसको ये बात बताई तो वो ख़ूब हंसा। हंसते-हंसते ही उसने एक रोज इसका जिक्र अपनी नई नवेली दुल्हन से कहा तो वो डर के मारे कांप उठी।
करीम दाद ने जीनां की सूहे चौड़े वाली कलाई अपने हाथ में ली, और कहा। ‘‘ये भूत तो अब सारी उम्र तुम्हारे साथ चिमटा रहेगा....... रहमान साईं की झाड़ फूंक भी उतार नहीं सकेगी।’’
जीनां ने अपनी मेहंदी में रची हुई उंगली दांतों तले दबा कर और जरा शर्मा कर सिर्फ इतना कहा। ‘‘कीमे, तुझे तो किसी से भी डर नहीं लगता।’’
करीम दाद ने अपनी हल्की-हल्की स्याही माइल भूरी मोंछों पर जबान की नोक फेरी और मुस्कुरा दिया.... ‘‘डर भी कोई लगने की चीज है!’’
जीनां का गम अब बहुत हद तक दूर हो चुका था। वो मां बनने वाली थी। करीम दाद उस की जवानी का निखार देखता तो बहुत ख़ुश होता और जीनां से कहता। ‘‘खुदा की कसम जीनां, तू पहले कभी इतनी ख़ूबसूरत नहीं थी। अगर तू इतनी ख़ूबसूरत अपने होने वाले बच्चे के लिए बनी है तो मेरी उससे लड़ाई हो जाएगी।’’
ये सुन कर जीनां शर्मा कर अपना ठिलिया सा पेट चादर से छिपा लेती। करीम दाद हंसता और उसे छेड़ता। ‘‘छुपाती क्यों हो इस चोर को....... मैं क्या जानता नहीं कि ये सब बनाओ सिंघार सिर्फ तुमने इसी सूअर के बच्चे के लिए किया है।’’
जीनां एक दम संजीदा हो जाती। ‘‘क्यों गाली देते हो अपने को?’’
करीम दाद की स्याही माइल भूरी मोंछें हंसी से थरथराने लगतीं। ‘‘करीम दाद बहुत बड़ा सुअर है।’’
छोटी ईद आई। बड़ी ईद आई, करीम दाद ने ये दोनों तहवार बड़े ठाट से मनाए। बड़ी ईद से बारह रोज पहले उसके गांव पर बलवाइयों ने हमला किया था और इसका बाप रहीम दाद और जीनां का भाई फजल इलाही कत्ल हुए थे, जीनां इन दोनों की मौत को याद करके बहुत रोती थी! मगर करीम दाद की सदमों को याद ना रखने वाली तबीयत की मौजूदगी में इतना गम न कर सकी, जितना उसे अपनी तबीयत के मुताबिक करना चाहिए था।
जीनां कभी सोचती थी तो उसको बड़ा तअज्जुब होता था कि वो इतनी जल्दी अपनी जिंदगी का इतना बड़ा सदमा कैसे भूलती जा रही है। मां-बाप की मौत उसको कतअन याद नहीं थी। फजल इलाही उससे छः साल बड़ा था। वही उसका बाप था वही उसकी मां और वही उसका भाई। जीनां अच्छी तरह जानती थी कि सिर्फ इसी की खातिर उसने शादी नहीं की। और ये तो सारे गांव को मालूम था कि जीनां ही की अस्मत बचाने के लिए उसने अपनी जान दी थी। उसकी मौत जीनां की जिंदगी का यकीनन बहुत ही बड़ा हादिसा था। एक कियामत थी, जो बड़ी ईद से ठीक बारह रोज पहले उस पर यकायक टूट पड़ी थी। अब वो उसके बारे में सोचती थी तो उसको बड़ी हैरत होती थी कि वो इसके असरात से कितनी दूर होती जा रही है।
मुहर्रम करीब आया तो जीनां ने करीम दाद से अपनी पहली फर्माइश का इजहार किया उसे घोड़ा और ताजिए देखने का बहुत शौक था। अपनी सहेलियों से वो उनके मुतअल्लिक बहुत कुछ सुन चुकी थी। चुनांचे उसने करीम दाद से कहा। ‘‘मैं ठीक हुई तो ले चलोगे मुझे घोड़ा दिखाने?’’
करीम दाद ने मुस्कुरा कर जवाब दिया। ‘‘तुम ठीक न भी हुईं तो ले चलूंगा....... इस सुअर के बच्चे को भी!’’
जीनां को ये गाली बहुत ही बुरी लगती थी। चुनांचे वो अक्सर बिगड़ जाती थी। मगर करीम दाद की गुफ़्तुगू का अंदाज कुछ ऐसा पुर-खुलूस था कि जीनां की तल्खी फौरन ही एक नाकाबिल-ए-बयान मिठास में तबदील हो जाती थी और वो सोचती कि सुअर के बच्चे में कितना प्यार कोट कोट के भरा है।
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की जंग की अफवाहें एक अर्से से उड़ रही थीं। असल में तो पाकिस्तान बनते ही बात गोया एक तौर पर तय हो गई थी कि जंग होगी। और जरूर होगी। कब होगी, इसके मुत्ल्लिक गांव में किसी को मालूम नहीं था। करीम दाद से जब कोई इस के मुतअल्लिक सवाल करता, तो वो ये मुख्तसर सा जवाब देता। ‘‘जब होनी होगी हो जाएगी। फुज़ूल सोचने से क्या फ़ायदा!’’
जीनां जब इस होने वाली लड़ाई भिड़ाई के मुतअल्लिक़ सुनती, तो उस के औसान खता हो जाते थे। वो तबअन बहुत ही अमन पसंद थी। मामूली तू तू मैं मैं से भी सख्त घबराती थी। इसके इलावा गुजश्ता बलवों में उस ने कई किशत-ओ-ख़ून देखे थे और इन्ही में उसका प्यारा भाई फजल इलाही काम आया था। बेहद सहम कर वो करीम दाद से सिर्फ इतना कहती। ‘‘कीमे, क्या होगा!’’
करीम दाद मुस्कुरा देता। ‘‘मुझे मालूम है। लड़का होगा या लड़की।’’
ये सुन कर जीनां बहुत ही जच बच होती मगर फौरन ही करीम दाद की दूसरी बातों में लग कर होने वाली जंग के मुतअल्लिक सब कुछ भूल जाती। करीम दाद ताकतवर था, निडर था, जीनां से उसको बेहद मोहब्बत थी। बंदूक खरीदने के बाद वो थोड़े ही अर्से में निशाने का बहुत पक्का हो गया था। ये सब बातें जीनां को हौसला दिलाती थीं, मगर इस के बावजूद तरंजनों में जब वो अपनी किसी खौफजदा हमजोली से जंग के बारे में गांव के आदमियों की उड़ाई हुई होलनाक अफवाहें सुनती, तो एक दम सुन्न सी हो जाती।
बुखतो दाई जो हर रोज जीनां को देखने आती थी। एक दिन ये खबर लाई कि हिंदुस्तान वाले दरिया बंद करने वाले हैं। जीनां इसका मतलब न समझी। वजाहत के लिए उसने बुखतोदाई से पूछा। ‘‘दरिया बंद करने वाले हैं?....... कौन से दरिया बंद करने वाले हैं।’’
बुखतो दाई ने जवाब दिया। ‘‘वो जो हमारे खेतों को पानी देते हैं।’’
जीनां ने कुछ देर सोचा और हंसकर कहा। ‘‘मौसी तुम भी क्या पागलों की सी बातें करती हो, दरिया कौन बंद कर सकता है....... वो भी कोई मोरियां हैं।’’
बुखतो ने जीनां के पेट पर हौले-हौले मालिश करते हुए कहा। ‘‘बीबी मुझे मालूम नहीं....... जो कुछ मैंने सुना तुम्हें बता दिया। ये बात अब तो अखबारों में भी आ गई है।’’
‘‘कौन सी बात?’’ जीनां को यकीन नहीं आता था।
बुखतो ने अपने झुर्रियों वाले हाथों से जीनां का पेट टटोलते हुए कहा। ‘‘यही दरिया बंद करने वाली’’ फिर उसने जीनां के पेट पर उस की कमीज खींची और उठ कर बड़े माहिराना अंदाज में कहा। ‘‘अल्लाह खैर रखे तो बच्चा आज से पूरे दस रोज के बाद हो जाना चाहिए!’’
करीम दाद घर आया, तो सबसे पहले जीनां ने इस से दरियाओं के मुतअल्लिक़ पूछा। उस ने पहले बात टालनी चाही, पर जब जीनां ने कई बार अपना सवाल दोहराया तो करीम दाद ने कहा। ‘‘हां कुछ ऐसा ही सुना है।’’
जीनां ने पूछा। ‘‘क्या?’’
‘‘यही कि हिंदुस्तान वाले हमारे दरिया बंद कर देंगे।’’
‘‘क्यों?’’
करीम दाद ने जवाब दिया। ‘‘कि हमारी फसलें तबाह हो जाएं।’’
ये सुन कर जीनां को यकीन हो गया कि दरिया बंद किए जा सकते हैं। चुनांचे निहायत बेचारगी के आलम में उसने सिर्फ इतना कहा। ‘‘कितने ज़ालिम हैं ये लोग।’’
करीम दाद इस दफा कुछ देर के बाद मुस्कुराया। ‘‘हटाओ उसको। ये बताओ मौसी बुखतो आई थी।’’
जीनां ने बेदिली से जवाब दिया....... ‘‘आई थी!’’
‘‘क्या कहती थी?’’
‘‘कहती थी आज से पूरे दस रोज के बाद बच्चा हो जाएगा।’’
करीम दाद ने जोर का नारा लगाया। ‘‘जिंदाबाद।’’
जीनां ने उसे पसंद न किया और बड़बड़ाई। ‘‘तुम्हें ख़ुशी सूझती है जाने यहां। कैसी कर्बला आने वाली है।’’
करीम दाद चौपाल चला गया। वहां करीब-करीब सब मर्द जमा थे। चौधरी नत्थू को घेरे, उससे दरिया बंद करने वाली खबर के मुतअल्लिक़ बातें पूछ रहे थे, कोई पण्डित नहरू को पेट भर के गालियां दे रहा था। कोई बद दुआएं मांग रहा था। कोई ये मानने ही से यकसर मुनकिर था कि दरियाओं का रुख बदला जा सकता है। कुछ ऐसे भी थे जिनका ये ख्याल था कि जो कुछ होने वाला है वो हमारे गुनाहों की सजा है। उसे टालने के लिए सबसे बेहतर तरीका यही है कि मिलकर मस्जिद में दुआ मांगी जाये।
करीम दाद एक कोने में खामोश बैठा सुनता रहा। हिंदुस्तान वालों को गालियां देने में चौधरी नत्थू सब से पेश पेश था। करीम दाद कुछ इस तरह बार-बार अपनी नशिस्त बदल रहा था जैसे उसे बहुत कोफ्त हो रही है। सब एक जबान होकर ये कह रहे थे कि दरिया बंद करना बहुत ही ओछा हथियार है। इंतिहाई कमीनापन है। रजालत है। अजीम तरीन जुल्म है। बदतरीन गुनाह है। यजीदपन है।
करीम दाद दो-तीन मर्तबा इस तरह खांसा जैसे वो कुछ कहने के लिए खुद को तैयार कर रहा है। चौधरी नत्थू के मुंह से जब एक और लहर मोटी-मोटी गालियों की उठी तो करीम दाद चीख पड़ा। ‘‘गाली ना दे चौधरी किसी को।’’
मां की एक बहुत बड़ी गाली चौधरी नत्थू के हलक में फंसी की फंसी रह गई, उसने पलट कर एक अजीब अंदाज से करीम दाद की तरफ देखा जो सर पर अपना साफा ठीक कर रहा था। ‘‘क्या कहा?’’
करीम दाद ने आहिस्ता मगर मजबूत आवाज में कहा। ‘‘मैंने कहा गाली न दे किसी को।’’
हलकं में फंसी हुई मां की गाली बड़े जोर से बाहर निकाल कर चौधरी नत्थू ने बड़े तीखे लहजे में करीम दाद से कहा। ‘‘किसी को? क्या लगते हैं। वो तुम्हारे?’’
इसके बाद वो चौपाल में जमा शुदा आदमियों से मुखातब हुआ। ‘‘सुना तुम लोगों ने .......कहता है गाली न दो किसी को....... पूछो इससे वो क्या लगते हैं इस के?’’
करीम दाद ने बड़े तहम्मुल से जवाब दिया। ‘‘मेरे क्या लगते हैं? मेरे दुश्मन लगते हैं।’’
चौधरी के हलक से फटा फटा सा कहकहा बुलंद हुआ। इस कदर जोर से कि उसकी मोंछों के बाल बिखर गए। ‘‘सुना तुम लोगों ने। दुश्मन लगते हैं। और दुश्मन को प्यार करना चाहिए। क्यों बरखुर्दार?’’ करीम दाद ने बड़े बरखुर्दाना अंदाज में जवाब दिया। ‘‘नहीं चौधरी। मैं ये नहीं कहता कि प्यार करना चाहिए। मैंने सिर्फ ये कहा है कि गाली नहीं देनी चाहिए।’’
करीम दाद के साथ ही उस का लंगोटिया दोस्त मीरां बख्श बैठा था। इसने पूछा। ‘‘क्यों?’’
करीम दाद सिर्फ मीरां बख्श से मुख़ातब हुआ। ‘‘क्या फ़ायदा है यार..... वो पानी बंद करके तुम्हारी जमीनें बंजर बनाना चाहते हैं। और तुम उन्हें गाली दे कर ये समझते हो कि हिसाब बेबाक हुआ। ये कहां की अक्लमंदी है। गाली तो उस वक्त दी जाती है। जब और कोई जवाब पास न हो।’’
मीरां बख्श ने पूछा। ‘‘तुम्हारे पास जवाब है?’’
करीम दाद ने थोड़े तवक्कुफ के बाद कहा। ‘‘सवाल मेरा नहीं। हजारों और लाखों आदमियों का है। अकेला मेरा जवाब सबका जवाब नहीं हो सकता....... ऐसे मुआमलों में सोच समझ कर ही कोई पुख्ता जवाब तैयार किया जा सकता है....... वो एक दिन में दरियाओं का रुख नहीं बदल सकते। कई साल लगेंगे। लेकिन यहां तो तुम लोग गालियां देकर एक मिनट में अपनी भड़ास निकाल बाहर कर रहे हो।’’ फिर उसने मीरां बख्श के कांधे पर हाथ रखा और बड़े खुलूस के साथ कहा। ‘‘मैं तो इतना जानता हूं यार कि हिंदुस्तान को कमीना, रजील और जालिम कहना भी गलत है।’’
मीरां बख्श के बजाय चौधरी नत्थू चिल्लाया। ‘‘लो और सुनो?’’
करीम दाद, मीरां बख्श ही से मुखातब हुआ। ‘‘दुश्मन से मेरे भाई रहम-ओ-करम की तवक्को रखना बेवक़ूफी है। लड़ाई शुरू और ये रोना रोया जाये कि दुश्मन बड़े बोर की राईफलें इस्तेमाल कर रहा है। हम छोटे बम गिराते हैं, वो बड़े गिराता है। तो अपने ईमान से कहो ये शिकायत भी कोई शिकायत है। छोटा चाक़ू भी मारने के लिए इस्तेमाल होता है, और बड़ा चाक़ू भी। क्या मैं झूठ कहता हूं।’’
मीरां बख्श की बजाय चौधरी नत्थू ने सोचना शुरू किया। मगर फ़ौरन ही झुंझला गया। ‘‘लेकिन सवाल ये है कि वो पानी बंद कर रहे हैं....... हमें भूका और प्यासा मारना चाहते हैं।’’
करीम दाद ने मीरां बख्श के कांधे से अपना हाथ अलाहिदा किया और चौधरी नत्थू से मुख़ातब हुआ। ‘‘चौधरी जब किसी को दुश्मन कह दिया तो फिर ये गिला कैसा कि वो हमें भूका प्यासा मारना चाहता है। वो तुम्हें भूका प्यासा नहीं मारेगा। तुम्हारी हरी भरी जमीनें वीरान और बंजर नहीं बनाएगा तो क्या वो तुम्हारे लिए पुलाव की देगें और शर्बत के मटके वहां से भेजेगा। तुम्हारी सैर, तफरीह के लिए यहां बाग बगीचे लगाएगा।’’
चौधरी नत्थू भुना गया। ‘‘ये तू क्या बकवास कर रहा है?’’
मीरां बख़्श ने भी हौले से करीम दाद से पूछा। ‘‘हां यार ये क्या बकवास है?’’
‘‘बकवास नहीं है मीरां बख्शा।’’ करीम दाद ने समझाने के अंदाज में मीरां बख्श से कहा। ‘‘तू जरा सोच तो सही कि लड़ाई में दोनों फरीक एक दूसरे को पिछाड़ने के लिए क्या कुछ नहीं करते, पहलवान जब लंगर लंगोट कस के अखाड़े में उतर आए तो उसे हर दाओ इस्तिमाल करने का हक होता है....... ’’
मीरां बख्श ने अपना घुटा हुआ सर हिलाया। ‘‘ये तो ठीक है!’’
करीम दाद मुस्कुराया। ‘‘तो फिर दरिया बंद करना भी ठीक है। हमारे लिए ये जुल्म है, मगर उन के लिए रवा है।’’
‘‘रवा क्या है....... जब तेरी जीब प्यास के मारे लटक कर जमीन तक आ जाएगी तो मैं फिर पूछूंगा कि जुल्म रवा है या नारवा....... जब तेरे बाल बच्चे अनाज के एक-एक दाने को तरसेंगे तो फिर भी ये कहना कि दरिया बंद करना बिलकुल ठीक था।’’
करीम दाद ने अपने खुश्क होठों पर जबान फेरी और कहा। ‘‘मैं जब भी कहूंगा चौधरी....... तुम ये क्यों भूल जाते हो कि सिर्फ वो हमारा दुश्मन है। क्या हम उसके दुश्मन नहीं। अगर हमारे इख्तियार में होता, तो हमने भी उस का दाना पानी बंद किया होता....... लेकिन अब कि वो कर सकता है, और करने वाला है तो हम जरूर इसका कोई तोड़ सोचेंगे....... बेकार गालियां देने से क्या होता है.......दुश्मन तुम्हारे लिए दूध की नहरें जारी नहीं करेगा चौधरी नत्थू....... इस से अगर हो सका तो वो तुम्हारे पानी की हर बूंद में जहर मिला देगा, तुम उसे जुल्म कहोगे, वहशियानापन कहोगे इसलिए कि मारने का ये तरीक़ा तुम्हें पसंद नहीं....... अजीब सी बात है कि लड़ाई शुरू करने से पहले दुश्मन से निकाह की सी शर्तें बंधवाई जाएं.......उस से कहा जाये कि देखो मुझे भूका प्यासा न मारना, बंदूक से और वो भी इतने बोर की बंदूक से, अलबत्ता तुम मुझे शौक से हलाक कर सकते हो। असल बकवास तो ये है....... जरा ठंडे दिल से सोचो।’’
चौधरी नत्थू झुंझलाहट की आखिरी हद तक पहुंच गया। ‘‘बर्फ ला कर रख मेरे दिल पर।’’
‘‘ये भी मैं ही लाऊं।’’ ये कहकर करीम दाद हंसा। मीरां बख्श के कांधे पर थपकी देकर उठा और चौपाल से चला गया।
घर की ड्योढ़ी में दाखिल हो ही रहा था कि अंदर से बुखतो दाई बाहर निकली। करीम दाद को देख कर उस के होंठों पर पोपली मुस्कुराहट पैदा हुई.......
‘‘मुबारक हो कीमे। चांद सा बेटा हुआ है, अब कोई अच्छा सा नाम सोच उस का?’’
‘‘नाम?’’ करीम दाद ने एक लहजे के लिए सोचा। ‘‘यजीद.......यजीद!’’
बुखतो दाई का मुंह हैरत से खुला का खुला रह गया। करीम दाद नारे लगाता अन्दर घर में दाखिल हुआ। जीनां चारपाई पर लेटी थी। पहले से किसी कदर जर्द, इसके पहलू में एक गुल गोथना सा बच्चा चपड़ चपड़ अंगूठा चूस रहा था। करीम दाद ने उस की तरफ प्यार भरी फख्रिया नजरों से देखा और उस के एक गाल को उंगली से छेड़ते हुए कहा। ‘‘ओए मेरे यज़ीद!’’
जीनां के मुंह से हल्की सी मुतअज्जिब चीख़ निकली....... ‘‘यजीद?’’
करीम दाद ने गौर से अपने बेटे का नाक नक्शा देखते हुए कहा। ‘‘हां यजीद....... ये इस का नाम है।’’
जीनां की आवाज बहुत नहीफ हो गई। ‘‘ये तुम क्या कह रहे हो कीमे?.......यजीद’’
करीम दाद मुस्कुराया। ‘‘क्या है इसमें? नाम ही तो है!’’
जीनां सिर्फ इस कदर कह सकी। ‘‘मगर किसका नाम?’’
करीम दाद ने संजीदगी से जवाब दिया। ‘‘जरूरी नहीं कि ये भी वही यजीद हो....... उसने दरिया का पानी बंद किया था....... ये खोलेगा!’’
(4 अक्तूबर 1951 ई.) साभार : https://hindikahani.hindi-kavita.com/