
आजकल राहुल गांधी बहुत मेहनत कर रहे हैं। वे कांग्रेस को एक विचारधारात्मक आधार पर खड़ा करना चाहते हैं। पर कोई राहुल गांधी को जाकर समझाये कि भाई तले हुए अण्डों से चूजे नहीं निकल सकते हैं। और वे हैं कि तले हुए अण्डों से चूजे निकालने की कोशिश कर रहे हैं। खैर! कोई जब नरेन्द्र मोदी को कुछ नहीं समझा सकता है तो राहुल गांधी को भी क्या समझा पायेगा। राहुल गांधी को नरेन्द्र मोदी से एक बात ढंग से सीख लेनी चाहिए कि वे कैसे एक तले हुए अण्डे से चूजा निकाल पाये या न निकाल पाये पर उसे सोने के अण्डे में बदल सकते हैं। खैर! राहुल गांधी की उस मेहनत पर आयें जिस पर उच्चतम न्यायालय ने उन्हें धमका दिया।
हुआ यूं था कि राहुल गांधी ने अपनी ‘भारत जोड़ो’ यात्रा के दौरान एक तले हुए अण्डे से चूजे निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने सावरकर की हकीकत उजागर कर दी थी। सावरकर ने कभी सेल्युलर जेल से रिहा होने के लिए अंग्रेजों से बार-बार माफी मांगी थी। और फिर जब वे जेल से रिहा हुए तो अंग्रेजों के प्रति वफादार बने रहे और वही करते रहे जिसका उन्होंने वायदा किया था। हिन्दू फासीवाद को विचारधारात्मक आधार प्रदान किया और फिर अंत में स्वतंत्र भारत में शुद्ध भारतीय ढंग से एकदम उपेक्षित अवस्था में अपने प्राण त्याग दिये। राहुल गांधी ने सावरकर पर निशाना साधा तो उनके चेलों ने राहुल गांधी को अदालत में घसीट लिया। जब उन्हें निचली अदालत से राहत नहीं मिली तो वे उच्च न्यायालय पहुंचे। पर वहां भी ठहरे सावरकर के प्रशंसक। और जब वे उच्चतम न्यायालय पहुंचे तो न्यायालय ने दो काम एक साथ किये। लिखित रूप में उन्हें राहत दी और कार्रवाही पर रोक लगा दी और दूसरा काम यह किया कि मौखिक रूप से फटकार लगा दी। कि आगे से सावरकर के बारे में कुछ नहीं कहेंगे। मतलब यह है कि नेहरू-गांधी को कुछ भी कहें पर सावरकर के बारे में कुछ सत्य कहने की अनुमति न्यायालय नहीं देगा। राहुल गांधी मान गये।
वे आगे से तले हुए अण्डे से चूजा निकालेंगे कि नहीं यह तो समय बतायेगा। पर संघी जानते हैं तले हुए अण्डे को कैसे सोने के अण्डे में बदला जाता है। एकदम आसान है तले हुए अण्डे पर राष्ट्रवाद की सोने की परत चढ़ा दो। किसी को क्या पता कि सोने की परत के भीतर का अण्डा तला-भुना हुआ है। अब तो अदालत ने भी इस बात पर पाबंदी लगा दी कि जिस अण्डे पर सोने की परत चढ़ा दी जायेगी उससे कोई चूजा निकालने की कोशिश नहीं करेगा।