
हम अत्याचारी से पूछते हैं-
हमें यातना देना कब बंद करोगे तुम
वह हमसे पूछता है-
सांप कब खड़ा होगा अपने पैरों के बल
चूहा कब शादी करेगा बिल्ली के बच्चों से
हम सिहर जाते हैं काल कोठरी की चीख सुन
वह कहता है ये ठहाके हैं उनकी खुशियों के
हम अत्याचारी से पूछते हैं-
तुम हमारी जंजीरों को कब नष्ट करोगे
वह कहता है
जब धरती पर आग होगी इतनी
कि पिघला सके उनकी कड़ियां
लोहार को आवाज दो आज, अभी
और भट्ठी की धधकती ज्वाला से पिघला दो
मौत के सभी महलों को
जिस आग ने
गढ़ा था ताला
क्या उसी ने गढ़ी थी चाभी?
(साभारः ‘गांव की आवाज’ कविता संग्रह से
अनुवाद : दिगम्बर, गार्गी प्रकाशन)