
सभी साथियों व पाठकों को लाल सलाम। साथियों मेरा नाम पूरन है। मैं गुड़गांव में रहता हूं। साथियो मैं बात कर रहा हूं आज के केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के बारे में। साथियो जब मैं अपनी पढ़ाई खत्म करके सन् 2010 में गुड़गांव आया और सन् 2012 में सेक्टर 37 गुड़गांव में जेबीएम कम्पनी में इंटरव्यू के लिए गया, जिसमें बतौर प्रेस आपरेटर की भर्ती दी गयी। इस पद पर मैंने 18 दिन इस कम्पनी में काम किया। क्योंकि इस कम्पनी में जानवरां की तरह काम कराया जाता है। जिसकी वजह से मुझे चोट लगी। और पट्टी करने के बादभी मुझसे काम कराया गया। और मैंने इस वजह से जॉब छोड़ दी। जब हिसाब मांगा तो मुझे 18 दिन का हेल्पर रेट के हिसाब से पैसे दिये गये। जब मैंने आपरेटर रेट का पैसा मांगा तो मुझे धमकी दी गयी। लेना है तो ले नहीं तो ये भी नहीं मिलेगा। मैंने उसे कोर्ट जाने की धमकी दी तो बोला जहां जाना है जा।
और मैं कोर्ट चला गया। जहां मेरी मुलाकात एटक के अनिल से हुई। और मैंने सारी घटना उसे बताई। उसने गुड़गांव बस स्टैण्ड स्थित एटक के आफिस में बुलाया। जो पहली मंजिल पर था। और वहां अनिल के अलावा एक दूसरा व्यक्ति था। उसने सारा घटनाक्रम जाना। और एक एप्लीकेशन लिखी और मेरा मो.न. लिया। और बोला 2-3 दिन बाद मैं फोन करूंगा। और मैं चला आया। दो दिन बाद कॉल आता है, ठेकेदार का और धमकी देता है। केस वापस ले लो। मैंने कहा जो करना है कर ले। हिसाब कोर्ट में देने आना। अगले दिन अनिल का फोन आया और मुझे कोर्ट में बुलाया और मैं कोर्ट चला गया। वहां मुझे अनिल नहीं मिला। और फोन पर बताया कि लेबर इंस्पेक्टर शेर सिंह चौथी या पांचवीं मंजिल पर मिलेगा। और वो आपका पैसा दिला देगा। मैं शेर सिंह के पास गया और मैंने उसे बताया कि अनिल जी ने भेजा है आपके पास। वो बोला हां मेरी बात हुई थी अनिल जी से, और आप मेरा ये विजिटिंग कार्ड लो और कम्पनी एच आर को मेरा कार्ड दिखा देना वो आपके पैसे दे देगा। मैंने कहा ठीक है सर, और मैं कम्पनी चला गया।
जब मैं कम्पनी गेट पर पहुंचा तो गार्ड ने बिना रोके एच आर में जाने को कहा। जहां ठेकेदार और उसके दो गाड़ी भर कर आये गुण्डे मेरा इंतजार कर रहे थे और एच आर ऑफिस में घुसते ही मेरे साथ मारपीट की गयी। और पूछा गया उसे भी बुला जिसने तुझे कोर्ट जाने को कहा था। उसके बाद सिक्योरिटी सुपरवाइजर एक एप्लीकेशन लाया जो पहले से ही लिखी हुयी थी। उस पर मेरे साइन और अगूंठा लगाया गया। फिर मुझे गाड़ी में बैठाया गया और मारपीट के साथ ठेकेदार के घर के बाहर ले जाया गया। और जान से मारने की बात कर रहे थे। ठेकेदार मोहम्मदपुर का था। श्री कृष्णा नाम से कान्ट्रेक्ट चलाता था। उसके बाद वो मुझे एक मोल्डिंग की कम्पनी में ले गये। जो उस ठेकेदार की अपनी थी।
उसके बाद मुझे खेडकी दौला पुलिस थाने ले जाया गया। और उस रिपोर्ट को थाने में दिया गया। जिस पर मेरे साइन और अंगूठा लगाया गया था। पुलिस वाले ने पूछा आपने कम्पनी में चोरी क्यों की। मैंने मना कर दिया और कहा इस रिपोर्ट पर जबरदस्ती मारपीट करके साइन और अंगूठा लगाया गया है। फिर ठेकेदार उस इंस्पेक्टर को अलग कमरे में ले गया। फिर कुछ देर बाद मुझे उस रूम में बुलाया गया जहां इंस्पेक्टर और ठेकेदार बैठे थे। फिर कुछ पुलिस वाले और आये जो थाने के पीछे जुआ खेल रहे थे। फिर मुझसे 2000 रुपये देने को कहा पुलिस वाले ने। जब मैंने पूछा किस बात के तो पुलिस वाले ने मुझे धमकाया। राजीव चौक जेल में जाना है क्या? मैं डर गया और मैंने पुलिस वाले को 2000 रु. दे दिये। फिर ठेकेदार ने मुझे गाड़ी में बैठाया जिसमें जे बी एम कम्पनी का एच आर मैनेजर भी था जिसने मुझे आपरेटर रेट के 18 दिन के पैसे दिये और आधे रास्ते में उतारकर धमकी देकर कि फिर ऐसी गलती जिन्दगी में दुबारा न करना कहकर उतार दिया गया।
जिसके बाद मैं रूम पर पहुंचा। मेरा रूम पार्टनर रूम छोड़ कर भाग चुका था। क्यांकि उसे भी फोन करके धमकी दी गयी थी। उसके बाद मैंने रूम का दरवाजा बंद किया और गुड़गांव सदर बाजार के पास स्थित ए टू जेड न्यूज चैनल के आफिस में गया। वहां आफिस में एक व्यक्ति था जिसने वहां आने का कारण पूछा। और मैंने सारी घटना का वर्णन उसके सामने बताया। उसने मुझे पुलिस स्टेशन जाने को कहा। और मुझे वहां से जाने को कहा। फिर मैंने दैनिक जागरण के संवाददाता से इस मामले को बताया। उसने भी मना कर दिया। फिर एक दोस्त के माध्यम से मैं बजाज मोटर्स लि. नरसिंहपुर (गुड़गांव) के यूनियन लीडर विजेन्द्र से मिला। जिसने घटना के बारे में सुनते ही उसी वक्त लेबर इंस्पेक्टर को फोन लगाया और बोला तू मजदूर साथियों के साथ ऐसा करेगा। तुझे देख लेंगे। और विजेन्द्र ने मुझे दूसरे दिन आने को कहा। और मैं रूम पर वापस आ गया।
धमकियों का सिलसिला फोन से जारी था। और मेरे घर (गांव) तक ये मामला पहुंचा दिया गया। और अगले दिन सुबह 5 बजे मेरा दरवाजा खटखटाया गया। खोला तो देखा मेरा बड़ा भाई और दोस्त जो मुझे उसी वक्त घर जाने को विवश कर अपने साथ ले गये।
तो साथियों हम आज के इस दौर में ऐसी केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके नेताओं और आज का मीडिया, पुलिस प्रशासन, कम्पनियों की मैनेजमेण्ट से और क्या आशा कर सकते हैं।
बाकी हम लड़ेंगे साथी कि जब तक लड़ने की जरूरत है। -पूरन, गुड़गांव