आपका उन्माद विषाक्त समाज रच रहा है!

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पहलगाम हमले के बाद पूंजीवादी मीडिया, संघी प्रचार मशीनरी के उन्मादी प्रचार से भारतीय समाज को एक विषाक्त समाज में तब्दील किया जा रहा है। एक ऐसा समाज जो सारा विवेक-सारी तर्क बुद्धि त्यागकर वहशियाने तरीके से पाकिस्तान, कश्मीरियों और मुसलमानों को कोसने में जुटा हो। संघी ताकतें खुश हैं क्योंकि इसी तरीके का विषाक्त-नफरती समाज कायम करना उसका लक्ष्य रहा है। 
    
सहज बुद्धि यह बताती है कि चंद आतंकियों के धर्म पूछकर किये गये हमले के लिए उन आतंकियों को सजा मिलनी चाहिए न कि उनके धर्म व कौम के समस्त लोगों को। इसी तरह अगर इन आतंकियों को पाक शासक मदद भी कर रहे हैं तो इसका दोष पाक जनता को नहीं दिया जाना चाहिए। पर यह सहज सी समझ में आने वाली बात समाज की चेतना से गायब करने के अभियान में संघी मशीनरी जुटी है। 
    
इस उन्मादी माहौल का सर्वाधिक खामियाजा कश्मीरी छात्र-व्यापारी, मुसलमान और भारत में आये पाक नागरिक झेल रहे हैं। पाक नागरिकों को तो खुद ही सरकार वापस जाने का फरमान जारी कर चुकी है। उसमें भी पाक के मुसलमान नागरिकों पर ज्यादा सख्ती बरत उन्हें पकड़-पकड़ कर वापस भेजने का काम किया जा रहा है। वहीं कश्मीरी छात्रों-छोटे व्यापारियों को इनके द्वारा कायम माहौल में सुनियोजित तौर पर हमले का निशाना बनाया जा रहा है। उनका आजादी से सड़क पर चलना दूभर हो गया है क्योंकि उन्हें नहीं पता कि कब पहलगाम हमले का विरोध करते लोग उन पर हमला बोल खुद की बदला लेने की मानसिकता को तुष्ट करने लग जायें। चौतरफा शक की निगाहों का सामना करते हुए वे अपमान झेलने को मजबूर हैं। किसी कश्मीरी को किराये का घर छोड़ने को कहा जा रहा है तो कुछ डर के मारे घर से नहीं निकल पा रहे हैं व कुछ मजबूरन सोशल मीडिया पर उन्हें दी जा रही गालियों के चलते सदमे में हैं। कई जगह तो संघी-दक्षिणपंथी संगठन इन्हें ढूंढ कर, हमला बोल कर अपनी ‘देशभक्ति’ साबित करने के अभियान में जुटे हैं। उत्तराखण्ड के देहरादून में हिंदू रक्षा दल ने तो खुलेआम कश्मीरी छात्रों को धमकी देते हुए राज्य छोड़ने अन्यथा परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। 
    
जो कालेज परिसर सारी रुढिवादिता के खिलाफ प्रगतिशीलता के लिए जाने जाते थे वहां भी कश्मीरी छात्रों के प्रति ये दक्षिणपंथी तत्व नफरत फैलाने में जुटे हैं। उन्हें पहलगाम के अपराधी के बतौर देखा जा रहा है। कुछ यही हालात मुसलमानों के प्रति भी बनाये जा रहे हैं। कहीं उनके बहिष्कार का आह्वान हो रहा है तो कहीं पहलगाम हमले पर उनके विरोध को पाखण्ड बताया जा रहा है। 
    
पाक जनता को सबक सिखाने में तो खुद सरकार बढ़ चढ़कर जुटी है। सिंधु नदी का जल रोक कर किसे संकट में डाला जायेगा- पाकिस्तान के किसानों को। उन किसानों को जिनका इस आतंकवाद या अपने शासकों की करतूतों से कोई लेना-देना नहीं है। या फिर भारत आये पाक नागरिकों का वीजा रद्द करने से किसे तकलीफ होनी है- आम नागरिकों को। इस तार्किक बात को समझने की सहज बुद्धि संघी प्रचार मशीनरी जनता से छीनती जा रही है। 
    
अगर इसी कूपमण्डूक सोच से चला जाये तो मालेगांव हमले के आरोपी प्रज्ञा ठाकुर व अन्य के हिन्दू होने के नाते समस्त हिन्दुओं को इसका दोषी माना जाना चाहिए। इसी तरह बलूचिस्तान में हो रही हिंसक घटनाओं के लिए समूची भारतीय जनता को दोषी माना चाहिए। चूंकि कश्मीर में पाक शासक तो बलूचिस्तान में भारतीय शासक लगातार हस्तक्षेप करते रहे हैं ऐसे में शासकों की करतूतों के लिए जनता को निशाना बनाना कहां से जायज है। 
    
सरकार खुद कश्मीर में धरपकड़ व घर ढहाने के अभियान के जरिये आम कश्मीरियों से बदला निकालने में जुटी है। डेढ़ हजार से अधिक कश्मीरी पकड़े जा चुके हैं। कईयों के घर ढहा कर बदला निकाला जा रहा है। इन हालातों में भी सरकार दावा करेगी कि कश्मीर शांत है। 
    
कहां तो पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक के नाते मोदी-शाह पर सवाल उठने चाहिए थे पर यहां सवाल कश्मीरी कौम, पाक जनता व मुसलमानों पर उठ रहे हैं। केवल सवाल ही नहीं उठ रहे हैं, कर्नाटक में इस माहौल का लाभ उठा एक व्यक्ति को पीट-पीट कर भीड़ ने मार डाला। आरोप यह था कि उसने एक क्रिकेट मैच के दौरान पाक जिन्दाबाद के नारे लगाये।     
    
विवेक शून्यता, तार्किकता, सही-गलत की समझ खोकर संघी मशीनरी द्वारा इंगित दुश्मन को ही असली खलनायक मान लेना, उस पर हमला बोल अपने को देशभक्त मानना आदि लक्षणों से युक्त जनता का हिन्दू फासीवादी निर्माण करने में जुटे हैं। एक ऐसी जनता जो इनके हर मस्जिद में मंदिर तलाशने में जुट जाये, जो हर मुसलमान में अपना दुश्मन तलाशने लगे। जो शासकों की कारगुजारियों पर कोई प्रश्न न उठाये। जो निर्दोष पर्यटकों की मौत पर वोटों की फसल उगाने वालों को अपना नायक मान बैठे। यही सब कुछ हमारे हुक्मरान चाहते हैं। 
    
सुकून की बात बस इतनी है कि जनता का एक ठीक ठाक हिस्सा इनके जाल में फंसने से अभी दूर है। वो इनके बार-बार वो देखो तुम्हारा दुश्मन तुम्हारे पड़ोस में रहने वाला फलाना धर्म का व्यक्ति है, उस पर हमला बोलने को तैयार नहीं है। इसी के साथ एक छोटा ही सही जागरूक हिस्सा भी है जो इनके तांडव को पहचान इन्हें कठघरे में खड़ा कर रहा है। इनके दमन-गम्भीर धाराओं में मुकदमे झेलकर भी इनके सामने बहादुरी से सीना ताने खड़ा है। जो मांग कर रहा है कि दोषी भारतीय शासक हैं उनकी कश्मीर नीति है। कि हमें युद्ध नहीं चाहिए कि युद्ध हमारे पहले से बदहाल जीवन को और बदहाली की ओर ले जायेगा। कि युद्ध में आम जनता या उसकी औलादें ही चारा बनेंगी। 
    
यह हिस्सा ही भविष्य के प्रति उम्मीद जगाता है। यह उम्मीद जगाता है कि संघी ताकतों द्वारा समाज में भरे जा रहे जहर को रोका जा सकता है। कि एक दिन जनता यह देखने में कामयाब होगी कि विष का स्रोत उनके द्वारा गद्दी पर पहुंचाये लोग हैं न कि आम कश्मीरी या मुसलमान। तब तर्क बुद्धि लौट आयेगी और सभी धर्मों के आम जन मिलकर फासीवादी विषबेल और इसे रोपने वाले पूंजीपतियों का इंसाफ करेंगे।  

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