
बेल्जियम में सरकार एक ओर युद्धक विमानों की खरीद व अन्य सैन्य खर्च बढ़ा रही है वहीं दूसरी ओर मजदूरों-कर्मचारियों पर मितव्ययिता कार्यक्रम थोप रही है। मजदूरों के वेतन और पेंशन व अन्य सुविधाओं में कटौती कर रही है। सरकार के इन कटौती कार्यक्रमों के खिलाफ बेल्जियम के मजदूरों-कर्मचारियों ने संघर्ष का एलान कर दिया है। संघर्ष में सरकार के पैसे की कमी के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए नारा लगाया जा रहा है कि ‘युद्धक विमानों के लिए हम पेंशन नहीं छोड़ेंगे’।
27 अप्रैल को हजारों की संख्या में मजदूर-कर्मचारी राजधानी ब्रुसेल्स की सड़कों पर उतरे और सरकार के विरुद्ध संघर्ष का एलान किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि सरकार एक ओर पेंशन घटाने पर उतारू है और दूसरी ओर पेंशन पाने के लिए मजदूरों से ज्यादा समय तक काम करने की मांग कर रही है। सरकार पेंशन-स्वास्थ्य सेवा आदि के लिए पैसों की कमी की बात कर रही है और दूसरी ओर युद्ध व हथियारों के लिए अरबों डालर खर्च की बात कर रही है। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए अपनी पेंशन का त्याग करने से इंकार करते हैं।
बेल्जियम में इस वर्ष की शुरूआत में न्यू फ्लेमिश एलायंस के नेतृत्व में दक्षिणपंथी व मध्यमार्गी दलों का गठबंधन सत्ता में आया था। तब सरकार में शामिल कई पार्टियों ने मजदूरों के हित में काम करने का वादा किया था पर अब सरकार उक्त सभी वायदे भुला कर पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है और मजदूरों पर हमले बोल रही है। साथ ही सरकार सैन्यीकरण में खर्च बढ़ाने के साथ जनता के जनवादी अधिकारों पर हमला बोल रही है।
बेल्जियम सरकार फिलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने वाले प्रदर्शनों के प्रति कठोर रुख अपना रही है। एरिजोना सरकार के खिलाफ मजदूरों-कर्मचारियों ने संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए 29 अप्रैल को आम हड़ताल व 1 मई-मजदूर दिवस पर बड़े जुटान को एलान किया था।
29 अप्रैल की आम हड़ताल में ट्रेन व हवाई जहाज थम गये। बंदरगाहों का काम ठप कर दिया गया। उड़ानें रद्द हो गयीं। बड़े पैमाने पर निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने हड़ताल में हिस्सा लिया। इस वर्ष में यह चौथी आम हड़ताल थी। 29 अप्रैल को कई जगह प्रदर्शन हुए।
दरअसल एरिजोना सरकार ने बीते दिनों की एक घोषणा में वेतन वृद्धि पर रोक लगा दी थी। सरकार ओवरटाइम के घण्टे बढ़ाने की भी कोशिश कर रही है। सरकार पेंशन से अपने हाथ पीछे खींचने को प्रयासरत है।
मजदूरों के पक्ष में लड़ने की बात करने वाली नामधारी वामपंथी ताकतें भी पूंजीवादी व्यवस्था में ही मजदूरों को बेहतर जीवन दिलाने की सोच रखती हैं इसीलिए वे संघर्ष का इस्तेमाल अपने वोट बढ़ा चुनावी लाभ के लिए करती हैं पर सत्ता में आने पर वे भी उसी तरह हमला मजदूरों पर बोलती हैं जैसे एरिजोना सरकार बोल रही है।
इसी वजह से किसी जुझारू देशव्यापी संघर्ष के लिए जरूरी है कि मजदूर-कर्मचारी क्रांतिकारी राजनीति पर संगठित हों।