औद्योगिक कामगारों में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी

/industrial-workers-mein-women-ki-badhati-hissedaari

भारत दुनिया के उन देशों में से है जहां कामगार आबादी में महिलाओं का अनुपात कम है। तब भी, भारत में भी पिछले दशकों में कामगार आबादी में महिलाओं का हिस्सा बढ़ा है। आंगनबाड़ी, आशा, मिड डे मील तो पूरी तरह महिलाओं के श्रम पर निर्भर है। खेती में भी महिलाओं का श्रम बड़़ा हिस्सा बनता है। महिला कामगारों की संख्या औद्योगिक क्षेत्र में भी बढ़ती जा रही है। 
    
औद्योगिक क्षेत्र में नए मजदूरों की जो आवक हो रही है उसमें बड़ी संख्या महिला मजदूरों की है। 1999-2000 से लेकर 2011-12 तक नए औद्योगिक रोजगार में महिलाओं का हिस्सा 22 प्रतिशत था। 2017-18 से लेकर 2023-24 की अवधि में यह काफी बढ़ गया है। इस अवधि में नए औद्योगिक रोजगार में महिलाओं का हिस्सा बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया है। इस 74 प्रतिशत में से 46 प्रतिशत का अंक ग्रामीण महिलाओं के दम पर जुड़ता है। 
    
नए औद्योगिक रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रही है। 2018-19 से लेकर 2023-24 के बीच कुल औद्योगिक (मैन्युफैक्चरिंग) रोजगार में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत है। इन राज्यों में नए औद्योगिक रोजगारों में महिलाओं की हिस्सेदारी तुलनात्मक तौर पर कम रही है (औसतन 36 प्रतिशत)। दूसरी तरफ, बिहार में नए औद्योगिक रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत रही है और असम में 85 प्रतिशत रही है। कुछ राज्यों में तो औद्योगिक रोजगार में पुरुषों की संख्या घट भी गयी है जबकि महिलाओं की संख्या बढ़ गयी है। उदाहरण के लिए, केरल में 2018-19 से लेकर 2023-24 के बीच औद्योगिक क्षेत्र में कुल रोजगार में 30,000 की वृद्धि हुई है जबकि महिलाओं की संख्या 65,000 बढ़ी है। ऐसी ही स्थिति कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी है। 
    
गहरे विश्लेषण करने पर पता चलता है कि जिन राज्यों में संगठित या औपचारिक क्षेत्र बढ़ा है, उन राज्यों में औद्योगिक श्रम में महिलाओं का अनुपात कम बढ़ा है (मसलन हरियाणा में) या गिरा भी है। दूसरी तरफ जिन राज्यों में औद्योगिक क्षेत्र में औपचारिक हिस्सा छोटा है वहां श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ी है (मसलन असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार में)।
    
औद्योगिक क्षेत्र के संगठित-औपचारिक हिस्से में महिला कामगारों का अनुपात अगर असंगठित-अनौपचारिक हिस्से की तुलना में कम तेजी से बढ़ रहा है तो इसका कारण यह नहीं है कि महिला कामगारों की कुशलता, क्षमता या उपलब्धता कम है। बल्कि, इन क्षेत्रों में अपेक्षाकृत बेहतर कार्यपरिस्थिति और सेवा शर्तों की वजह से और रोजगार ढूंढ रही आबादी की तुलना में इन क्षेत्रों में कम रोजगार पैदा होने की वजह से यहां नौकरी के लिए मारा-मारी ज्यादा है। अगर इन क्षेत्रों में पर्याप्त रोजगार का सृजन हो तो इन क्षेत्रों में भी महिला कामगार पुरुष कामगारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती हुई दिख जायेंगी। 
    
(आंकड़े Ideas For India वेबसाइट के लेख Feminisation of India’s Industrial Workforce से लिए गये हैं)

आलेख

/ameriki-dhamakiyon-ke-sath-iran-amerika-varta

अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं।