
पुरानी बात है, किच्छा में एक फैक्टरी होती थी ‘रामा विजन’, इस फैक्टरी में ब्लैक एण्ड व्हाइट पिक्चर ट्यूब बनती थी। ब्लैक एण्ड व्हाईट टेलीविजन ही उस समय चलन में थे। अभी रंगीन टेलीविजन चलन में इस तरह नहीं आया था, जैसा कि आज है। काफी महंगा होने के कारण वह आम आदमी की पहुंच से काफी दूर था। तब ब्लैक एण्ड व्हाइट पिक्चर ट्यूब की खूब डिमांड होती थी जिस कारण यह फैक्टरी अच्छी हालत में चल रही थी।
उस समय रामा विजन फैक्टरी तराई की बड़ी फैक्टरियों में गिनी जाती थी। लाल कुआ पेपर मिल उस समय इस इलाके की सबसे बड़ी फैक्टरी होती थी, एक और बड़ी फैक्टरी होती थी ‘श्री राम होण्डा’ जो कि जनरेटर बनाती थी, पेट्रोल से चलने वाले जनरेटर। इसमें होण्डा के साथ श्री राम का कोलेबरेशन था। बाद में श्री राम के होण्डा से अलग होने के बाद से लेकर अपने अस्तित्व के समाप्त हो जाने तक कम्पनी के नाम बदलते रहे। कुछ समय बाद यह फैक्टरी बंद हो गयी और आज इसकी सारी जमीन जायदाद बिक चुकी है।
उस समय तराई के इलाके में अगर बात की जाय तो कुल मिलाकर गिनी-चुनी फैक्टरी हुआ करती थी, जिनमें से दो फैक्टरियां खटीमा में ‘खटीमा फाइबर्स’ के नाम से थीं, जो कि फिल्म की प्लेट आदि बनाती थीं। जिसका अधिकतर माल विदेशों को निर्यात होता था। लालकुआं में पेपर मिल जो कि उस समय केवल तराई की ही नहीं कुमाऊं की सबसे बड़ी फैक्टरियों में शुमार थी। इसकी यूनियन और उसके नेताओं की इलाके में इज्जत थी, लाल कुआं पेपर मिल की मजदूर यूनियन जो एक दौर में दमदार यूनियन थी जुझारू और लड़ाकू यूनियन थी। आज अपने ही अंतर्विरोधों के कारण बुरी हालत में है। किच्छा-रुद्रपुर में रामाविजन और होंण्डा फैक्टरी थी। एक छोटी फैक्टरी और थी ‘तराई फूड’ के नाम से जो कि फल और खाने की चीजों का प्रसंस्करण करती थी। रुद्रपुर में ही एक और फैक्टरी हुआ करती थी संभवतः उसका नाम ए एल पी था।
इस पूरे तराई के इलाके में केवल यही गिनी-चुनी फैक्टरियां होती थीं। स्थानीय निवासी ही अधिकांशतः इन फैक्टरियों में मजदूरी किया करते थे। सेंचुरी पेपर मिल में ही संभवतः मजदूर बाहर से आकर यहां काम पर लगे हों।
सेंचुरी पेपर मिल इस इलाके की बड़ी मिल होती थी, इसकी मजदूरों की संख्या हजार से अधिक रही होगी। उस समय इसकी यूनियन भी बहुत दमदार थी। इस इलाके की बड़ी यूनियन व बड़ी फैक्टरी होने के नाते वे मजदूरों के हर संघर्ष में हर तरह से सहयोग करते थे।
इस इलाके में कुल मिलाकर जितनी भी फैक्टरियां थीं उनके मजदूर आपस में एक दूसरे के संपर्क में रहते थे और एक-दूसरे का सुख-दुख में साथ देते थे, मिलकर संघर्ष करते थे।
उस समय अगर रामा विजन में हड़ताल होती थी तो होंण्डा के मजदूर अपनी सभी गाड़ियां लेकर सभा स्थल में हाजिर हो जाते थे जिसमें अधिकतम मजदूर शामिल होते थे।
लेकिन तब एक बात थी कि आज की तरह बेरोजगारी, भुखमरी, हत्या-बलात्कार, धर्म के नाम पर मारकाट समाज में नहीं थी। गरीबी थी, लोगों की आर्थिक स्थिति आज के मुकाबले खराब ही रही होगी, लेकिन तब समाज में भाईचारा, प्रेम सौहार्द था, एक दूसरे के सुख-दुख में साथ देने की इच्छाशक्ति आज के मुकाबले कहीं अधिक थी। सामाजिक अलगाव (धार्मिक उन्माद के रूप में जिस तरह आज मौजूद है) बहुत कम या नहीं के बराबर था। आर्थिक उन्नति और पूंजी के असमाधेय होते संकट ने सामाजिक अलगाव को बढ़ाया है और समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण को तेज किया है जिससे समाज में अशांति और हरवक्त भय का सा माहौल बना रहता है। इंसान तब के मुकाबले आज ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहा है। पूंजी का इतना नग्न रूप तब सामने नहीं था जो उसके संकटों के चलते अधिकतम प्रतिक्रियावादी होता गया है और आज अधिकतम नग्न रूप में हमारे सामने मौजूद है। आज पूंजी ने अपनी सारी मान मर्यादाएं त्याग कर यह नग्नता धारण की है। हालांकि इतिहास में इससे भी ज्यादा नग्न और बर्बर रूप इस पूंजी ने मानव समाज को दिखाया है, यह इसके चरित्र में ही है, वास्तव में यह बर्बर और मानवता की हत्यारिन रही है, और जब तक जीवित है यह अपनी बर्बरता और क्रूरता को कायम रखेगी।
तब से लेकर अब तक यानी रामाविजन के दौर से लेकर आज तक के समय की तुलना करेंगे तो पायेंगे कि आज पूंजी ने बेतहाशा वृद्धि दर हासिल कर ली है। जिस तेजी से पूंजी ने गति पकड़ी उसी तेज गति से सामाजिक असमानता भी बढ़ती जा रही है, अमीरी-गरीबी की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। समाज में कुछ लोग लगातार सम्पत्तिशाली होते जा रहे हैं, उनकी सम्पत्ति लगातार बढ़ती जा रही है दूसरी तरफ समाज में उसी तेजी से गरीबी और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, जिस कारण गरीबी और भुखमरी का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। इस समस्या का समाधान करने का इस पूंजीवादी व्यवस्था का न तो इरादा है न ही क्षमता जिससे सामाजिक अलगाव लगातार बढ़ता जा रहा है और धार्मिक उन्माद समाज पर हावी होता जा रहा है।
तब के मुकाबले आज सरकारों का दमन चक्र तेज हुआ है। राज्य हो या केन्द्र सभी ने जनता की समस्याओं का हल करने के बजाय उठती आवाज को लाठी-गोली-जेल-मुकदमे से दबाने का प्रयास किया है साथ ही जनवाद का दायरा लगातार कम से कमतर किया जाता रहा है और समाज में धार्मिक उन्माद फैलाकर लोगों का इस तरफ से ध्यान भटकाने का प्रयास किया जा रहा है। आज अगर आप सरकार से कहते हैं कि आप भूख से मर रहे हैं तो आप देशद्रोही हो सकते हैं।
रामाविजन के दौर में हम लोग अपने अधिकारी के कार्यालय में नई आर्थिक नीतियों के विरोध में निकलने वाले पर्चे बांट कर आते थे, यहां तक कि उन अधिकारियों से उस पर्चे के पैसे भी लेकर आते थे तब भी वह अधिकारी हमारे खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं करते थे। क्या आज के दौर में यह संभव है कि कर्मचारी अधिकारी के कार्यालय में पर्चा बांट दे और उस पर देशद्रोह का मुकदमा न लगे और उसकी नौकरी खतरे में न पड़ जाये? इस रूप में सरकारों का दमन चक्र तेज हुआ है और हर किसी के जनवादी अधिकारों में कटौती की गयी है, और लगातार यह कटौती जारी है। यह कटौती अंततः कहां पहुंचेगी कहा नहीं जा सकता है।
आज पूंजी का यह संकट असमाधेय हो चुका है। इस संकट का समाधान अब केवल मजदूर-मेहनतकश वर्ग के हाथ में है, उसकी एकता और संगठन में है, बस एक बार संगठित होकर जोरदार हुंकार भरने की जरूरत है। सड़ा-गला ठूंठ तो गिर ही जायेगा।
रामा विजन के मजदूरों का संघर्ष आज भी जारी है ... ... वे आज उसी ताजगी के साथ इंकलाब जिंदाबाद! दुनिया के मजदूरो एक हो!! का नारा लगा रहे हैं।
-रमेश तिवारी, रुद्रपुर