
उत्तराखण्ड में भोजनमाताएं रोज-ब-रोज कई समस्याओं से जूझ रही हैं। सरकार एक तरफ ईजा-बैणी महोत्सव मना रही है। उज्ज्वला गैस योजना को घर-घर पहुंचाने की बात कर रही है। लेकिन कई सरकारी स्कूलों में अभी भी लकड़ी पर खाना बनाया जा रहा है। स्कूलों में साफ-सफायी व बागवानी करवायी जा रही है।
इसके अलावा भोजनमाताओं को काम से निकाले जाने का खतरा हमेशा झेलना पड़ता है। कई जगहों पर उनका तरह-तरह से उत्पीड़न किया जाता है। कभी स्कूल में कम बच्चे होने पर या कभी छुट्टी करने पर निकाले जाने की तलवार उनके सिर पर लटकी रहती है। ढेरों दफा उन्हें अपमानजनक व्यवहार भी झेलना पड़ता है।
बेहद कम वेतन (मात्र 3000 रु. प्रतिमाह) पर कार्य कर रही भोजनमाताओं से सरकार एक तरह से बंधुआ मजदूरी करवा रही है। इस पर भी उन्हें स्कूलों में ड्यूटी से अतिरिक्त समय तक रोका जाता है। यह बेहद कम वेतन भी उन्हें कई बार समय पर नहीं मिलता। ड्रेस इत्यादि का पैसा तो अक्सर ही समय पर नहीं दिया जाता।
उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार या केन्द्र की मोदी सरकार महिला हित के जुमले तो खूब उछालती है पर खुद ये अपने विभागों में महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न में जुटी रहती हैं।
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन ने भोजनमाताओं से विद्यालयों में अतिरिक्त कामों को कराए जाने व बंधुआ मजदूरी करवाये जाने के विरोध में उत्तराखंड के हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर, भगवानपुर, लक्सर, खानपुर, ब्लॉकों में धरना प्रदर्शन किया और सभी जगह खंड शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन दिया। इसके अलावा न्यूनतम वेतन व स्थाई करने की मांग को लेकर एक ज्ञापन खंड शिक्षा अधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजा गया।
-विशेष संवाददाता