भारी बारिश के बावजूद भोजनमाताओं ने निकाला जुलूस

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अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री को दिया ज्ञापन 

देहरादून/ प्रगतिशील भोजनमाता संगठन उत्तराखंड ने अपनी मांगों को लेकर देहरादून में दिनांक 2 व 3 जून 2025 को दो दिन का धरना प्रदर्शन किया। दिनांक 3 जून को भोजनमाताएं सुबह 12 बजे जुलूस निकाल कर मुख्यमंत्री आवास पहुंचने को निकलीं। रास्ते में भारी बारिश के बावजूद भोजनमाताएं मुख्यमंत्री आवास के लिए कूच करती रहीं। मुख्यमंत्री आवास से पहले ही बेरिकेडिंग लगाकर भोजनमाताओं को रोक दिया गया।  
    
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन ने अपनी मांगों का ज्ञापन मिड डे मील प्रभारी के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार को सौंपा। भोजनमाताओं के ज्ञापन में मुख्य मांगें- भोजनमाताओं को स्थाई करने, न्यूनतम वेतन लागू करने, सामाजिक सुरक्षा पी.एफ. व ई.एस.आई. को लागू करने, भोजनमाताओं को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी घोषित करने, मुख्यमंत्री द्वारा पूर्व में की गई घोषणा कि भोजनमाताओं का मानदेय तीन हजार से बढ़ाकर पांच हजार रुपए किया जायेगा, को लागू करने, अक्षय पात्र फाउंडेशन पर रोक लगाने व भोजनमाताओं से अतिरिक्त कार्य करवाने पर रोक लगाने इत्यादि थीं।
    
उत्तराखंड में वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि अगर हमारी सरकार आई तो हम भोजनमाताओं का मानदेय 5000 रुपए करेंगे। लेकिन चुनाव के दो वर्ष बीत जाने के बाद भी मुख्यमंत्री अपनी ही घोषणा को लागू नहीं कर रहे हैं।
    
बेरिकेडिंग पर रोक दिये जाने के बाद सभी भोजनमाताएं वहीं बैठ गयीं और सभा शुरू कर दी। सभा में प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की अध्यक्ष शारदा ने कहा कि पूरे उत्तराखंड में भोजनमाताएं 3000 रुपये जैसे मामूली मानदेय में बेगारी कर रही हैं। हम पहले भी कई बार अपनी मांगें लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन अभी तक हमारी समस्याओं पर सुनवाई तो दूर हमें मिलने तक का मौका नहीं दिया जाता है। हम अपने संगठन के द्वारा सरकार को आगाह कर रहे हैं कि अगर हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो हम अपने आंदोलन को और व्यापक करेंगे और अगली बार और बड़ी ताकत लेके राजधानी आयेंगे।
    
प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की महासचिव रजनी ने कहा कि आज ये स्थिति सिर्फ भोजनमाताओं की नहीं है बल्कि तमाम स्कीम वर्कर्स की यही स्थिति है। सरकारें अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए योजनाएं तो लागू कर देती हैं लेकिन इन योजनाओं में काम करने वाले कर्मचारी बहुत कम तनख्वाह में बदतर परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। कहने को भारतीय संविधान में बेगारी कानूनी रूप से अवैध है लेकिन सरकार खुद अपनी योजनाओं में इन वर्कर से मामूली मानदेय में भी अतिरिक्त काम करवा कर एक तरह से बेगारी ही करवा रही है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मध्याह्न भोजनकर्मियों द्वारा करवाए जा रहे काम को बेगार का नाम देकर उसके खिलाफ दिया गया फैसला इसका साक्ष्य है।
    
कुमाऊं तथा गढ़वाल के विभिन्न ब्लाकों से आई भोजनमाताओं ने कहा कि जहां एक तरफ हमारे देश में सांसदों और विधायकों को तमाम तरह की सुविधाएं और ऊंची तनख्वाह और दोहरी-तिहरी पेंशन दी जाती है वहीं इनकी सरकारों द्वारा लगाई गई भोजनमाताएं 3000 रुपये जैसे बेहद कम मानदेय में काम कर रही हैं और इस पर भी सरकार अब मिड डे मील का ठेका अक्षय पात्र फाउंडेशन को देके भोजनमाताओं के रोजगार पर खतरा पैदा कर रही है। जहां एक तरफ इस देश में एक आबादी के लिए ऐशो आराम की तमाम सुविधाएं हैं वहीं दूसरी तरफ इस देश की मजदूर मेहनतकश आबादी अमानवीय परिस्थितियों में काम कर रही है और जीवन यापन कर रही है। हमारे देश की सरकारें केवल पैसे वालों के लिए काम कर रही हैं।
    
कुछ भोजनमाताओं ने कहा कि सरकार द्वारा आदेश पारित किया गया है कि वही महिला भोजनमाता का काम कर सकती है जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हों लेकिन हम पूछना चाहते हैं कि ये कानून मोटी तनख्वाह लेने वाले सरकारी कर्मचारियों या सांसदों-विधायकों पर क्यों नहीं लागू होते हैं जिनके बच्चे ना सिर्फ महंगे निजी स्कूलों में बल्कि विदेशों में पढ़ते हैं।
    
सभा का संचालन प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की कोषाध्यक्ष नीता ने किया। 
        -देहरादून संवाददाता

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