
हरिद्वार/ सिडकुल में स्थित सी एंड एस इलेक्ट्रिक लिमिटेड हैवी पावर प्लांट के उत्पाद (स्विच, बिजली बोर्ड, आदि) बनाती है। 2006 में सी एंड एस का एक बीटी प्लांट लगा और बाद में एलडब्ल्यू, बीएमसीबी, बीडी नाम से तीन प्लांट और लगे। अब इसके चार प्लांट हो चुके हैं। चारों प्लाटों में लगभग 2000 मजदूर कार्यरत हैं जिसमें कुछ महिला मजदूर भी कार्यरत हैं। 10 प्रतिशत स्थायी मजदूर हैं बाकी मजदूर नेप्स, एफटी, नीम ट्रेनी और ठेकेदारी के तहत रखे गए हैं।
बीडी प्लांट के मैनेजरों और इंजीनियरों द्वारा किये जाने वाले शोषण-उत्पीड़न से परेशान मजदूर काम छोड़कर चले जा रहे हैं या निकाल दिये जा रहे हैं। मजदूरों पर उत्पादन बढ़ाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। जो मजदूर टारगेट पूरा नहीं कर पाता है उसे अतिरिक्त घंटे काम के लिए रुकना पड़ता है। सुपरवाइजर और इंजीनियर मजदूरों से बदतमीजी से पेश आते हैं और विरोध करने पर हाथ तक उठाते हैं। मजदूरों से बात करने पर पता चला है कि इस तानाशाही और उत्पीड़न से परेशान मजदूर खुद काम छोड़कर चले जा रहे हैं। इन्हें कानूनन उचित हिसाब भी नहीं दिया जा रहा है।
2020 में जो उत्पादन होता था उसे अब दुगुना कर दिया गया है। एक मजदूर से दो-दो मोल्डिग मशीनें चलवाई जा रही हैं। मशीनों में मैटीरियल डालने के लिए कोई सीढ़ी या लिफ्ट तक नहीं है। मजदूर (यानी कहने को आपरेटर) सिर पर बोरी लाद कर मशीन में डालते हैं। कई बार तो डालते वक्त फिसल कर गिर जाते हैं क्योंकि मशीनों पर तेल जमा होता है। सेफ्टी के नाम पर मीटिंग होती है लेकिन मजदूरों की सेफ्टी के लिए जो सुरक्षा इंतजाम करने चाहिए वो नहीं किये जाते हैं। लाईनों पर छोटी मशीनें हैं जो हाथ और पांव से चलती हैं इनमें आये दिन अंगुली दबना आम बात है। और ऊपर से दुर्घटना होने पर मजदूर से एक कागज पर उसकी गलती से घटना हुई है, लिखवा लिया जाता है जो एक तरह से गैरकानूनी है। मशीनों में सेंसर न लगे होने की वजह से दुघर्टनाएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। मजदूरों से इतना ज्यादा प्रोडक्शन व काम लिया जा रहा है कि मजदूरों को खाना खाने व चाय पीने तक का टाईम नहीं मिल पाता है।
सी एंड एस इलेक्ट्रिक लिमिटेड, सिडकुल हरिद्वार के चारों प्लांटों को 2021 से जर्मनी के सीमेंस ग्रुप ने खरीद लिया है। उसके बाद से प्रबंधकों की तनख्वाह लाखों में पहुंच गई है लेकिन 10-15 सालों से काम कर रहे मजदूरों की तनख्वाह न्यूनतम वेतन तक सीमित है। थोड़े स्थाई मजदूर हैं जिनकी तनख्वाह 13,000 से 15,000 रुपये तक है। स्थाई मजदूरों को बोनस मिलता है लेकिन ठेके और नेप्स, एफटीई, नीम ट्रेनी वाले मजदूरों को नहीं मिलता है। मजदूरों का कहना है कि स्थाई मजदूरों के वेतन से ही बोनस काटा जा रहा है जो श्रम कानूनों के खिलाफ है। मजदूरों ने कई बार अपनी तनख्वाह बढ़ाने और हो रहे शोषण पर रोक लगाने के लिए कुछ छिटपुट आवाजें उठायीं पर मैनेजमेंट उनकी मांगों को अनसुनी करता रहा है। प्लांटों में मैनेजमेंट अपने अधिकारों की बात करने वाले मजदूरों की जासूसी करवाता है कि कहीं मजदूर एकजुट ना हो जायें।
श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाते सी एंड एस इलेक्ट्रिक लिमिटेड (सीमेंस ग्रुप) के प्रबंधक वर्ग को कानून का कोई डर नहीं है। वो मजदूरों को कहता है जाओ जहां जाना हो हमने सब श्रम अधिकारियों को खरीद रखा है।
कम्पनी को शुरू हुए 20 साल होने को हैं। कम्पनी का मुनाफा करोड़ों में हो रहा है। लेकिन मजदूरों को इस महंगाई के दौर में इतनी कम तनख्वाहों में गुजारा करना भारी पड़ रहा है। मजदूरों को अपने शोषण के खिलाफ आवाज उठानी ही होगी। सिडकुल में किर्बी और पैनासोनिक (ऐंकर कम्पनी) के मजदूर अपने हक अधिकार के लिए सड़कों पर उतरे और प्रबंधक को झुकाया। इन संघर्षशील मजदूरों का साथ देने के लिए सिडकुल के मजदूर संगठन और यूनियनें खड़ी हैं। सी एंड एस के मजदूरों को आज समझना होगा कि ‘‘बिन हवा न पता हिलता है बिन लडे़ न कुछ भी मिलता है!’’ -हरिद्वार संवाददाता