
अक्सर भाजपा नेता कहते हुए सुनाई देते हैं कि कांग्रेस राज में 1 रुपये किसी योजना के लिए भेजे जाते थे तो जमीन पर 25 पैसे ही पहुंचते थे। यह बात काफी हद तक सच भी थी। लेकिन इसके बरक्स भाजपा राज में तो योजनाओं पर योजनाएं हैं लेकिन जमीन पर कुछ भी नहीं है। उत्तर प्रदेश में असंगठित मजदूरों के लिए बनाई गयी योजनाओं के बारे में तो यह बात सौ फीसदी सच है।
एक आरटीआई के जवाब में उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि असंगठित मजदूरों के कल्याण के लिए पिछले तीन वर्ष में प्रत्येक वर्ष 112 करोड़ तथा वर्ष 2024-25 में 92 करोड़ रुपये विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित किये गये। लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह राशि खर्च ही नहीं हुई।
प्रदेश सरकार ने विभिन्न योजनाएं बनाईं। उन योजनाओें के प्रचार के लिए राशि भी तय की गयी। लेकिन प्रचार तक की धन राशि खर्च नहीं की गयी।
मोदी ने असंगठित मजदूरों के लिए ई श्रम पोर्टल शुरू किया था। जिसमें 30.68 करोड से अधिक मज़दूरों ने रजिस्ट्रेशन करवाया। उत्तर प्रदेश में 8 करोड़ 38 लाख मजदूरों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया। यानि भारत में कुल पंजीकृत असंगठित मजदूरों में से 27.5 फीसदी अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। गौरतलब है कि पंजीकृत मजदूरों से अतिरिक्त बहुत से और मजदूर भी हैं जिन्होंने पंजीकरण नहीं करवाया है। तब भी 8 करोड़ 38 लाख की संख्या कोई कम नहीं है।
मजदूरों ने इस पोर्टल में पंजीकरण इसी उम्मीद से करवाया था कि उन्हें कोई सरकारी सुविधा मिलेगी। लेकिन वे एक बार फिर से ठगे गये। सरकार ने तो खर्च की राशि तय करने के बावजूद भी असंगठित मजदूरों पर खर्च करना गैरजरूरी समझा।