इंपीरियल ऑटो के मजदूरों को श्रम न्यायालय में मिली जीत

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इंपीरियल ऑटो इंडस्ट्रीज 21/1 प्लाट नंबर 1 मथुरा रोड सेक्टर 5 फरीदाबाद में स्थित है। इंपीरियल ऑटो इंडस्ट्रीज के दर्जनों से ज्यादा प्लांट फरीदाबाद व पूरे हरियाणा में स्थित हैं। यह कंपनी गाड़ियों के लिए हार्स पाइप बनाने का काम करती है। कंपनी में महिला मजदूर बड़ी संख्या में कार्यरत हैं। 
    
पिछले वर्ष सितंबर माह में इंपीरियल ऑटो इंडस्ट्रीज 21/1 का नाम बदलकर सुपर पालिटेक प्लाट नंबर 2 कर दिया गया। हालांकि नवंबर माह तक इंपीरियल का प्रबंधन ही प्लांट को संचालित करता रहा। साथ ही कम्पनी प्रबंधन द्वारा मजदूरों को यह भरोसा दिया गया कि सिर्फ नाम बदला है, बाकी कुछ नहीं; आपकी नौकरी पहले जैसी चलती रहेगी। क्योंकि काम इंपीरियल का ही चल रहा था तो मजदूरों ने भी प्रबंधन पर भरोसा किया।
    
सितंबर के आखिरी सप्ताह व दिवाली के बाद सुपर पालिटेक ने अलग-अलग बहाने बनाकर मजदूरों को कंपनी से निकालना शुरू कर दिया। एक छुट्टी पर भी मजदूरों का गेट बंद किया जाने लगा।  यहां तक कि दिवाली की छुट्टी के बाद में एकाध मजदूरों को काम पर वापस नहीं लिया गया। क्योंकि यह एक-एक करके मजदूरों के साथ हो रहा था तो बाकी मजदूरों में सुगबुगाहट व नौकरी जाने का डर तो पैदा हो गया था, लेकिन कोई संघर्ष तब मौजूद नहीं था। बात तब आगे बढ़ी जब 19 दिसंबर 2024 को कंपनी प्रबंधन ने लगभग 32 मजदूरों को शाम 4ः00 बजे छुट्टी के समय गेट पर बताया कि वह कल से काम पर ना आयें उनकी नौकरी खत्म हो चुकी है। इसमें ज्यादातर मजदूर वह थे जिनको कंपनी में काम करते हुए 7 से 8 साल हो चुके थे।         

इसके बाद मजदूरों ने कंपनी गेट पर ही संघर्ष करना शुरू कर दिया और देर रात तक कंपनी गेट पर डटे रहे। इसकी सूचना इंकलाबी मजदूर केंद्र को भी मिली और इंकलाबी मजदूर केंद्र के कार्यकर्ता भी गेट पर पहुंचे। हालांकि रात 9 बजे के बाद मजदूर घर चले गए। अगले दिन सुबह 7ः30 बजे से मजदूर फिर कंपनी गेट पर डटे, हालांकि इस बार बाकी मजदूर जिनको काम से नहीं निकाला गया था वह अंदर काम करने चले गए, और सिर्फ जिनको काम से निकाला था वही मजदूर गेट पर बैठे। 
    
संघर्ष की भनक दूसरे मजदूरों को भी लगी जिनको अलग-अलग समय में दिवाली पर या दिवाली के बाद या उसके बाद भी एक-एक, दो-दो करके निकाला गया था, तो वह भी संघर्ष करने के लिए कंपनी गेट पर पहुंच गए। इस तरह सिर्फ 32 मजदूर ही नहीं बल्कि लगभग 60 से 70 मजदूर कंपनी गेट पर डट गये। मजदूरों के डटे रहने से व संघर्ष करने से मजबूर होकर उन 32 मजदूरों का हिसाब कंपनी मैनेजमेंट को करना पड़ा।
    
मजदूरों को हिसाब मिलते देख अन्य मजदूर जो कंपनी के अंदर काम पर थे उनमें भी यह डर पैदा होने लगा कि अब तो कंपनी का नाम बदल चुका है, और जो उनकी पुरानी नौकरी थी वह अब खत्म हो चुकी है ऐसे में अंदर रहने से फायदा नहीं होगा बल्कि उनको भी गेट पर आना चाहिए और अपनी पुरानी नौकरी का हिसाब जो इंपीरियल के साथ बनता है वह उनको भी लेना चाहिए। इस बात के साथ कंपनी के बाकी मजदूर भी गेट पर आ धमके और वह भी इंपीरियल मैनेजमेंट से अपना हिसाब  मांगने लगे। 
    
इसके बाद मुख्य कंपनी प्लांट जो कि इंपीरियल का हेड प्लांट है वहां पर भी मजदूरों ने इंकलाबी मजदूर केंद्र के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन किया। प्रबन्धन के अश्वासन पर मजदूरों ने धरना खत्म किया। हालांकि धरने के दौरान मजदूरों व इंकलाबी मजदूर केंद्र के कार्यकर्ताओं को डराने-धमकाने का काम पुलिस और कम्पनी प्रबंधन द्वारा किया जा रहा था लेकिन मजदूर डटे रहे। मजदूरों की संख्या को लगातार बढ़ती देख प्रबन्धन मजदूरों का हिसाब देने से इंकार करता रहा।  
    
अंत में जनवरी माह में इंकलाबी मजदूर केंद्र ने मजदूरों के साथ मिलकर श्रम विभाग में इंपीरियल ऑटो इंडस्ट्रीज व सुपर पालिटेक के खिलाफ शिकायत दी जिसमें लगभग 180 मजदूरों के हस्ताक्षर थे। इस बात से घबरा कर मैनेजमेंट ने कुछ नेतृत्व के मजदूरों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर व डराकर अपनी शिकायत वापस लेने व काम पर आने का दबाव बनाया जिससे कुछ मजदूर कंपनी में काम करने लगे। लगभग 65 मजदूर संघर्ष में डटे रहे जिसके दबाव में 18 मार्च को व 24 मार्च को इंपीरियल मैनेजमेंट हिसाब देने को मजबूर हुआ। लगभग 11 लाख 71 हजार 4 सौ सत्तर रु. का हिसाब मैनेजमेंट ने मजदूरों को दिया।
    
हिसाब करने के दौरान पता चला कि प्रबंधन द्वारा कितनी चालाकी मजदूरों के साथ की जाती है। इंपीरियल प्रबंधन ने नौकरी के दौरान ही  मजदूरों के कई ठेकेदार बदले जिसकी भनक तक मजदूरों को नहीं थी। यहां तक कि कुछ मजदूरों के केस में मजदूर 5 से 6 साल से इस कंपनी में काम कर रहे हैं लेकिन अंदरखाने उनका ई एस आई सी व पीएफ किसी दूसरी फर्म का कट रहा था जिसको मजदूर जानते तक नहीं थे। इसके अलावा भी समय-समय पर इंपीरियल प्रबन्धन मजदूरों को अपने अन्य प्लांट में स्थानांतरित करता है लेकिन दूसरे प्लांट में जाते ही उनकी नई ज्वायनिंग दिखा दी जाती है भले ही उनको तीन से चार या पांच साल पूरे होने वाले हों, जिसका अंदाजा मजदूरों को नहीं होता और  ट्रांसफर लेटर उनको या तो दिया ही नहीं जाता या अगर कुछ दिया भी जाता है तो वह दूसरे प्लांट में जमा कर दिया जाता है। जब मजदूर हिसाब के दौरान इसके खिलाफ बोल रहे थे तो तब यह कहकर प्रबंधन अपना पल्ला झाड़ना चाहता था कि उनके दर्जनों प्लांट हैं मजदूर अपनी मर्जी से इधर से उधर होते रहते हैं वह किस-किस को ग्रेच्युटी देते फिरें और अगर उन्होंने ट्रांसफर किया है तो मजदूर उसका कागज दिखाएं। साथ ही कुछ मजदूरों को मेडिकल के दौरान उनका ब्रेक दिखाकर 5 साल की ग्रेच्युटी से वंचित किया जा रहा था। हालांकि इन सभी चीजों के लिए इंकलाबी मजदूर केंद्र ने श्रम विभाग व इंपीरियल मैनेजमेंट को जमकर फटकार लगाई। 
    
लेकिन यह कोई एक इंपीरियल का मामला नहीं है बल्कि आज ठेकेदारी के तहत काम करने वाले लाखों मजदूरों के यही हालात हैं। जहां न तो कोई नौकरी की गारंटी, सालों साल काम करने के बाद भी ना कोई फंड-बोनस ना ही ग्रेच्युटी और ना ही छुट्टियों का पैसा। लेकिन यह सब चीज मजदूरों को तभी समझ में आती है जब वह कोई संघर्ष कर रहे होते हैं। उसे संघर्ष के दौरान ही ठेकेदारी प्रथा जैसे चीजों की कड़वी सच्चाई व प्रबन्धन और श्रम विभाग की मिलीभगत मालूम होती है। जहां मैनेजमेंट सालों-साल काम करने वालों से यह कहकर पल्ला झाड़ना चाहता है कि यह तो ठेके के मजदूर हैं। इंपीरियल ऑटो के मामले में भी लगभग कुछ इसी तरह की बातें मैनेजमेंट द्वारा आती रहीं। जबकि जितने मजदूर इंपीरियल में काम कर रहे थे उनमें से लगभग 30 के आस-पास लोग ऐसे थे जिनको 5 से 6 साल हो चुके थे लेकिन उनमें से 8 से 10 लोग अपनी नौकरी की निरंतरता सिर्फ इसलिए नहीं साबित कर पा रहे थे कि कंपनी मैनेजमेंट ने बड़ी चालाकी से नौकरी के दौरान या तो उनके ठेकेदार बदल दिए थे या मेडिकल के दौरान उनका ब्रेक दिखा दिया था, उनको दूसरे प्लांट में ट्रांसफर करके नई ज्वायनिंग दिखा दी थी। 
    
इंपीरियल ऑटो में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर मशीनों को आपरेट करते हैं और हेल्पर बहुत कम है लेकिन कंपनी मैनेजमेंट बड़े धड़ल्ले के साथ मजदूरों को ठेकेदारी में दिखाकर आपरेटर का काम करवाता है लेकिन उनकी तनख्वाह हेल्पर वाली देता है। 
    
पूरे संघर्ष के दौरान मैनेजमेंट कोई डाटा श्रम विभाग के सामने नहीं दे पाया और श्रम विभाग भी इस पर विभिन्न मौका पर खुले नहीं तो छुपे तौर पर मैनेजमेंट का ही साथ देता रहा। लेकिन लगातार संघर्ष में डटे रहने और अपने मजबूत हौसलों के चलते इस संघर्ष में मजदूरों को जीत हासिल हुई और वह इंपीरियल मालिक के नुकीले व खूनी जबड़ों से अपने लिए अपने हक का पैसा खींच लाने में सफ़ल हो पाये।
    
आज इंपीरियल ऑटो कोई अकेला मामला नहीं है बल्कि इस पूंजीवादी व्यवस्था में लाखों मेहनतकश मजदूर इसी तरह कम्पनी में काम कर रहे हैं, इसी तरह का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं जहां किसी भी तरह की रोजगार की गारंटी आज मजदूर को नहीं हासिल है। जब चाहे मालिक काम पर रखें और जब चाहे निकाल दें। चारों नई श्रम संहिताएं भले ही कानूनी में रूप में कम्पनियों में लागू नहीं हो पाई हां लेकिन अनौपचारिक रूप से सालों से फैक्टरी के अंदर लागू हैं। जिसमें रखो और निकालो की नीति आज आम बनती जा रही है। रातों-रात कम्पनी के नाम बदलकर मजदूरों की सालों की नौकरियों को एक दिन में ही जीरो कर लिया जा रहा है। 
    
ऐसे में जरूरत बनती है कि मजदूर फैक्टरी के अंदर खुद को संगठित करें, अपनी यूनियन बनाएं और मजदूर वर्ग के बतौर खुद को संगठित करें।     -फरीदाबाद संवाददाता
 

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