सुनो ! स्त्रियों, सुनो ! -मृगया शोभनम्

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तुम्हारे हृदय 
में उठे तूफान को
आसान तो नहीं
समझना।
आसान तो नहीं
व्यक्त करना।

बहने दो, आंसू
देखने दो, आंसू
उन सभी को
जो समझते हैं,
आंसू हैं
निशानी कमजोरी की।

उन सभी को 
देखने दो
ये आंसू,
जो बहते हैं,
उन्होंने नहीं बहाये आंसू।
वे हो सकता है हों बहादुर!
पर ये भी हो सकता है
न हो उनके शरीर में 
एक धड़कता हृदय!
तुम्हारे आंसू,
अमूल्य हैं।

सुनो! स्त्रियों सुनो!
सुनो, उस वक्त की पुकार को
जो तुम्हारे हृदय में है।
जो तुम्हारे हृदय में है
वो अमूल्य है।
सदियां गुजर गईं
बहाते आंसू
पर सुनो,
अब नहीं गुजरेंगी
इस तरह सदियां!
नहीं गुजरेंगी इस तरह सदियां
ये निश्चित है।
तुम्हारे आंसू
व्यर्थ नहीं जायेंगे।
तुम्हारे आंसू में 
सब कुछ है
हृदय की पीड़ा 
मन के द्वन्द्व 
जीवन का संघर्ष।

तुम्हारे आंसू में
वह सब कुछ है 
जो है जीवन का सार
निरन्तर परिश्रम
निरन्तर चिंता
निरन्तर सक्रियता
निरन्तर इच्छा
जीवन को समझने की।

तुम्हारे आंसू
तुम्हें कमजोर नहीं
मजबूत करते हैं।
तुम्हारे आंसू
नहीं चाहते, झूठी सहानुभूति
नहीं चाहते, झूठी दिलासा।
असल में
तुम्हारे बहते आंसू में भी
छुपी होती है आशा
तुम्हारे आंसू
तुम्हें दिखाते हैं
नया रास्ता,
नयी युक्तियां,
नयी संभावनाएं,
नयी आशाएं।

सुनो! स्त्रियों सुनो!
सदियों से 
तुमने संभाला है
जीवन को
दिया है बार-बार
जन्म 
नये जीवन को।

सुनो! स्त्रियों सुनो!
जब पुरुष के हृदय 
रिक्त हो
जीवन की पुकार से
तुम ही हो उसे
करना सिखाती हो
प्रेम! 
तुम ही हो जो उसे
बनाती हो प्रेमी
तुम ही हो उसे 
बनाती हो इंसान।

सुनो! स्त्रियों सुनो! 
अब वक्त की ये पुकार है
उठाओ क्रांति की ध्वजा
करो धरा का नया श्रृंगार। 
(साभार : ‘यह वक्त नहीं चुप रहने का’ नामक कविता संग्रह से)

आलेख

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। 

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ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है। 

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आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?