महाकुंभ में महा अव्यवस्था

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केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महाकुंभ मेले का जोर शोर से प्रचार जारी है।
    
13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलने वाला महाकुंभ मेला 25 सेक्टर में बना हुआ है। प्रत्येक सेक्टर में मेला में पहुंचने वाले स्नानार्थियों को दवा व इलाज के लिए सरकार द्वारा अस्पताल खोला गया है। यह अस्पताल पूरी तरह से सेवा के नाम पर शासकीय मानसिकता-विचार व संस्कृति को ही दर्शाता है। अस्पताल की पूरी बनावट का रंग भी भगवा ही दिखता है। प्रत्येक अस्पताल में 50 से अधिक कर्मचारी हैं। उन कर्मचारियों से बातचीत करने पर सच्चाई निकल कर सामने आई। अस्पताल कर्मचारी ने बहुत ही निराश और उदास शब्दों में बताया कि सरकार द्वारा हम सभी कर्मचारियों को यहां पर कोई भी सुविधा और सुरक्षा नहीं मिली है। भारी दुखित मन से वह यह कह रहा था कि हम सभी कर्मचारियों के सुबह-दोपहर या शाम खाने या नाश्ता करने का कोई इन्तजाम नहीं है। यह गैर जिम्मेदाराना रवैया कहां तक उचित है?
    
सरकार द्वारा अस्पताल या किसी भी मेले के सजावट-बनावट के कामों में कितना बड़ा घोटाला होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। क्योंकि आध्यात्मिक कार्यों में बहस और जांच-पड़ताल का रिवाज नहीं है।
    
आज सरकार द्वारा जनता के असल मुद्दे की जगह फर्जी मुद्दे और नफरत की राजनीति हिन्दू-मुस्लिम को आपस में बांट कर फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई जा रही है।
    
ऐसे में महाकुंभ मेले का प्रचार करके आकर्षण और उत्साह पैदा करना जनता को मूर्ख बनाकर देश में धार्मिक भावनाओं की चाशनी में अपनी संस्कृति की दुहाई देकर कुर्सी को सुरक्षित करना है। किन्तु इतिहास गवाह है कि देश की जनता ने अपनी लूट के खिलाफ हमेशा संघर्ष किया है और आने वाले समय में भी उठ खड़ी होगी। यही सच है। सिर्फ जरूरत है शासकों की मानसिकता को पहचान कर एकता व लामबंद होकर संघर्ष किया जाय।
    -डा.सत्यनारायण, बलिया
 

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।