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आम बजट : 2025-26
वर्ष 2025-26 का आम बजट पेश हो चुका है। आयकर में मध्यम वर्ग को दी गयी छूट पर पूंजीवादी मीडिया बजट के गुणगान में जुटा है। पर एक ऐसे वक्त में जब देश में निजी क्षेत्र में पूंजी निवेश घटता जा रहा हो, बेरोजगारी आसमान छू रही हो, 80 करोड़ आबादी सरकारी 5 किलो मुफ्त राशन पर जिन्दा रहने को मजबूर हो, यह बजट इन सब मामलों में किसी सुधार या बेहतरी की राह नहीं सुझाता। यह निजीकरण-वैश्वीकरण-उदारीकरण के ही रथ को और आगे बढ़ा आम मजदूरों-मेहनतकशों के जीवन को और कष्टमय बनाने की ही राह खोलता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश करते हुए बजट को विकसित भारत बनाने को समर्पित बजट करार दिया। वित्त मंत्री ने देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था करार दे अपनी पीठ ठोंकी। तेलगु कवि-नाटककार की उक्ति ‘‘कोई देश केवल उसकी मिट्टी से नहीं है बल्कि देश उसके लोगों से है।’’ का हवाला देकर साबित करने की वित्त मंत्री ने कोशिश की कि बजट आम लोगों के लिए है। विकसित भारत के लिए वित्तमंत्री ने गरीबी से मुक्ति, सर्वसुलभ शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार, आर्थिक गतिविधियों में 70 प्रतिशत महिलायें व सम्पन्न किसान को अपना लक्ष्य बताया। पर बजट की बातों पर गौर करें तो इन सभी मामलों में मोदी सरकार उल्टी दिशा में बढ़ रही है।
भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2024-25 में 324.11 लाख करोड़ रु. व 2025-26 में 356.97 लाख करोड़ रु. रहने का अनुमान लगाया गया है। विभिन्न प्रकार के करों से 25-26 में केन्द्र सरकार 42.70 लाख करोड़ रु. राजस्व इकट्ठा करेगी। इसमें 14.22 लाख करोड़ रु. राज्यों का हिस्सा देने के पश्चात राजस्व मद में 28.37 लाख करोड़ रु. केन्द्र सरकार पर बचेंगे। इसके अलावा 5.83 लाख करोड़ रु. का भिन्न राजस्व केन्द्र सरकार जुटायेगी। इस तरह केन्द्र सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां 34.2 लाख करोड़ रु. होंगी। सरकार अपने निवेशों से 0.76 लाख करोड़ रु. पूंजी प्राप्ति व कर्ज से 15.66 लाख करोड़ रु. पूंजीगत प्राप्ति करेगी। यानी कुल पूंजीगत प्राप्ति 16.42 लाख करोड़ रु. होगी। इस तरह केन्द्र का कुल बजट (34.20$16.42$नकदी शेष) 50.65 लाख करोड़ रु. होगा। यानी इस वर्ष कुल 50.65 लाख करोड़ रु. सरकार जुटायेगी व खर्च करेगी।
खर्च की मदों को देखें तो लगभग 20 प्रतिशत यानी 12.76 लाख करोड़ रु. सरकार कर्ज पर ब्याज के रूप में अदा करेगी।
अगर जनराहत के कामों में बजट खर्च देखें तो उर्वरक सब्सिडी की मद में बीते वर्ष में सरकार ने 1.71 लाख करोड़ रु. खर्च किये। नये बजट में सरकार ने इस मद में 1.67 लाख करोड़ रु. खर्च करने का लक्ष्य लिया है। पैट्रोलियम सब्सिडी भी गत वर्ष के 14,000 करोड़ रु. खर्च से घटा कर इस वर्ष 12,100 करोड़ रु. कर दी गयी है। खाद्य सब्सिडी की मद में सरकार ने बीते वर्ष बजट में 2.05 लाख करोड़ रु. खर्च का प्रावधान किया था। हालांकि सरकार ने इस मद में 1.97 लाख करोड़ रु. ही खर्च किये। इस वर्ष इस मद में भी 2000 करोड़ की कटौती कर 2.03 लाख करोड़ रु. बजट प्रावधान किया गया। इस तरह सरकार ने सब्सिडी की मद में मुद्रास्फीति को ध्यान में रखें तो वास्तव में कटौती ही की।
शिक्षा के क्षेत्र में गत वर्ष 1.25 लाख करोड़ रु. खर्च का बजट प्रावधान किया गया था। इसमें सरकार ने 1.14 लाख करोड़ रु. ही गत वर्ष खर्च किये। नये वर्ष में इस मद में नाम मात्र की वृद्धि कर 1.28 लाख करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है जो मुद्रास्फीति को ध्यान में रखें तो वृद्धि के बजाय कटौती ही साबित होगी। यही स्थिति स्वास्थ्य मद में है जिसमें गत वर्ष के 89,000 करोड़ रु. के बजट प्रावधान को इस वर्ष 98,000 करोड़ रु. रखा गया है।
इसी तरह सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील देने की पीएम पोषण योजना के तहत गत वर्ष 12,467 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया था जिसमें सरकार ने महज 10,000 करोड़ रु. ही खर्च किये। इस वर्ष इस मद में 12,500 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है। आयुष्मान भारत योजना में गत वर्ष के 7,606 करोड़ रु. खर्च के बरक्स इस वर्ष 9,406 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया है।
सरकार की प्राथमिकता लगातार बढ़ते रक्षा खर्च में नजर आती है जिस पर गत वर्ष के 4.56 लाख करोड़ रु. से बढा़कर 4.91 लाख करोड़ रु. इस वर्ष कर दिया गया। वहीं गांव में बामुश्किल जिन्दा रखने वाली मनरेगा योजना पर सरकार एक रुपया भी खर्च बढ़ाने को तैयार नहीं हुई। इस मद में गत वर्ष के अनुरूप 86,000 करोड़ के बजट का ही प्रावधान किया गया। यह दिखाता है कि बजट में वास्तव में कटौती कर सरकार बेरोजगारी के चरम पर बेरोजगारों से मजाक कर रही है।
जनकल्याण के कामों में तय बजट खर्च न करना बीते कुछ वर्षों से इस सरकार की आदत बन गयी है। अब सरकार ढेरों मसलों पर बजट में खर्च की घोषणा कर देती है पर अगले वर्ष पता चलता है कि उक्त बजट का नाम मात्र का ही खर्च किया गया।
पिछले बजट में बेरोजगारों को अप्रेन्टिस से लेकर कौशल देने, शीर्ष कम्पनियों में मौका देने की काफी बढ़ चढ़कर घोषणा की गयी थी। पर इस बजट के वक्त पता चला कि सरकार साल भर में इन योजनाओं को लागू ही नहीं कर पायी। अभी सरकार इन्हें लागू करने की तैयारी ही कर रही है। ऐसा कई अन्य घोषणाओं के साथ भी किया गया।
स्पष्ट है कि मजदूर-मेहनतकश गरीब जनता, किसानों की स्थिति सुधारने की बजट कोई मंशा नहीं व्यक्त करता। जहां तक मध्य वर्ग की बात है तो 12 लाख रु. (वेतनभागी 12.75 लाख रु) तक आयकर छूट देकर सरकार का सोचना है कि लोग इससे बची राशि बाजार में खर्च करेंगे जो मांग बढ़ा निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करेगी।
वैसे सरकार ऐसे ही प्रयास पूर्व में पूंजीपतियों पर कारपोरेट टैक्स घटा या पूंजीपतियों को कर माफी देकर भी कर चुकी थी। पर पाया गया कि पूंजीपतियों ने यह राशि न खर्च की और न ही नये निवेश में डाली। इसलिए मध्य वर्ग को राहत कितना बाजार को गति देगी, कहा नहीं जा सकता।
विदेशी निवेश को विभिन्न क्षेत्रों में 100 प्रतिशत छूट देने, पूंजीपतियों को तरह-तरह की रियायतें देने, लघु उद्योगों को कर्ज की ज्यादा सहूलियत देने के जरिये सरकार उन्हीं नीतियों को और आगे बढ़ा रही है जिन्होंने आज आम नागरिक के जनजीवन में बदहाली पैदा की है।
दरअसल 6.4 प्रतिशत की वृद्धि दर का आज कोई भी लाभ आम मेहनतकश जनता को नहीं मिल रहा है। सामान्य मजदूर ठेके की नौकरी में भारी महंगाई के अनुरूप वेतन वृद्धि न होने से परेशान है तो बेरोजगार रोजगार के अवसर न होने से। बेरोजगार युवक तंग आकर ‘पकौड़ा बेचने’ सरीखे स्वरोजगार को मजबूर हैं। इस पर भी वित्त मंत्री अपनी पीठ थपथपा रही हैं कि देश में स्वरोजगार करने वालों की संख्या बढ़ रही है। इस स्वरोजगार में बढ़ती को सरकार की नये रोजगार न पैदा करने की नाकामी से जोड़ शर्म करने के बजाय वह तारीफ समझ रही हैं।
मोदी सरकार ने बीते 11 वर्ष में एक ऐसा विकसित भारत बनाने की मानो कसम खा ली है जिसमें चंद अडाणी-अम्बानी विकास के सारे फल अपनी जेब में डाल रहे होंगे और बाकी मेहनतकश जनता बेहद कंगाली में 5 किलो मुफ्त राशन पर जिन्दा रहने को मजबूर होगी। और सरकार गरीबी को अपनी प्रचार मशीनरी के जरिये खत्म घोषित कर जनता को ‘फील गुड’ करायेगी। ये बजट देश को इसी ओर बढ़ाने का ही दस्तावेज है।
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