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<div dir="auto" style="text-align: justify;"><span style="font-size: 16px;">वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को जब आम बजट पेश किया तो उससे लोगों को बहुत उम्मीदें थीं। खासकर कोरोना काल के बाद आम जन कर खस्ता हालत, महंगाई व बेकारी की स्थिति देखते हुए लोग उम्मीद कर रहे थे कि वित्तमंत्री के पिटारे में से इन समस्याओं के समाधान के लिए कोई राह निकलेगी। पर अफसोस कि ऐसा कुछ भी वित्तमंत्री के पिटारे से नहीं निकला। वित्तमंत्री ने बेशर्मी की हद पार करते हुए इन समस्याओं से पूरी तरह मुंह फेर लिया और अपना सारा ध्यान मोदी काल के 9 वर्षों की उपलब्धियां गिनाने में लगा दिया। ढेरों संस्कृतनिष्ठ शब्दों सप्तऋषि लक्ष्य, श्री अन्न, पी एम मत्स्य सम्पदा योजना, सहकार से समृद्धि, भारत श्री मिशन कर्मयोगी, विवाद से विश्वास आदि से सजा वित्तमंत्री का भाषण उस थोथे चने से अलग नहीं था जो घना बजता है।</span></div>
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<div dir="auto">वित्तमंत्री के सारी जनता के कल्याण, अंतिम व्यक्ति तक पहुंच आदि बातों का ही कमाल था कि पूंजीवादी मीडिया-टीवी चैनलों ने इस भाषण को हाथों हाथ लिया। उनके भारी प्रचार के प्रभाव में कुछ विपक्षी दल भी आ गये और इसे चुनावी बजट घोषित करने लग गये। पूंजीवादी मीडिया तो दावा करने में जुट गया कि बजट इतना बेहतरीन है कि विपक्षियों को इसमें कोई कमी ही नहीं मिल रही कि वे जबरन बजट की आलोचना करने में जुटे हैं।</div>
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<div dir="auto">पूंजीवादी मीडिया के भारी कोलाहल को, तारीफ के पुलिंदों की भी एक वजह थी और यह वजह यही थी कि दरअसल बजट में कोई भी ऐसी सकारात्मक बात नहीं थी जिसका वे प्रचार कर पाते। ऐसे में उन्हें बजट की तारीफ भक्ति भाव से करने का यही तरीका सूझा कि वे उसके इर्द-गिर्द बेवजह का इतनी तारीफ का गुबार खड़ा करें कि कोई इस गुबार के नीचे की असलियत देखने की हिम्मत ही न जुटा सके।</div>
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<div dir="auto">तारीफों के गुबार के नीचे झांकते ही बजट में छिपी कालिमा, कुत्सित षड्यंत्र (जो आम जन के साथ किया गया था) तुरंत नजर आ जाते हैं। यह षड्यंत्र इस बात से भी सामने आ जाता है कि कारपोरेट पूंजीपति वर्ग ने इस बजट का दिल खोल कर स्वागत किया। जाहिर है कि अगर पूंजीपति वर्ग बजट का यूं स्वागत कर रहा है तो बजट में उसके मुनाफे को बढ़ाने वाली बातें होंगी और निश्चय ही यह मुनाफा गरीबों-मजदूरों-मेहनतकशों के शोषण को और बढ़ाकर ही हासिल होगा।</div>
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<div dir="auto"><span style="font-size: 16px;">अब अगर बजट की मोटी बातों पर आया जाए तो 45 लाख करोड़ रु. का बजट पेश करते हुए विकास करते देश की तस्वीर दिखाने के लिए वित्तमंत्री पर इसके सिवाय कोई विशेष बात नहीं थी कि भारत इस वक्त दुनिया में सबसे तेज गति से विकास करने वाले देशों में एक है। यह बात कुछ इसी तरीके की बात है जब लोग देश में बेकारी-महंगाई से बढ़ रही बदहाली की चर्चा करते हैं तो पूंजीवादी मीडिया व संघी अंधभक्त पाकिस्तान-श्रीलंका की बदहाली का बखान करते हुए बताने लगते हैं कि हमारे यहां तो तब भी बेहतर स्थिति है। जाहिर है कि मंदी में जाती बाकी दुनिया से तुलना कर ही भारत के संदर्भ में खुशफहमी कायम की जा सकती है। अन्यथा तो जो भी देश के आम जन के हालात देखेगा वह यही करेगा कि अमृतकाल में चारों ओर विष ही विष फैला है।</span></div>
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<div dir="auto">बजट में वित्तमंत्री ने दावा किया कि भारत दुनिया की तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है और इसकी विकास दर 6 से 6.5 प्रतिशत है। पर अगर हम 2019-20 से तुलना करें तो पाते हैं कि बीते 3 वर्षों में देश का सकल घरेलू उत्पाद महज 8 प्रतिशत बढ़ा है और इस तरह वास्तविक विकास दर 2.8 प्रतिशत औसतन रही। इन अर्थों में दरअसल अभी देश कोरोना काल की गिरावट की ही कुछ मायनों में भरपाई कर पाया है।</div>
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<div dir="auto">अर्थव्यवस्था की स्थिति इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि इस वर्ष के बजट हेतु आवंटित 45 लाख करोड़ रु. की 34 प्रतिशत राशि सरकार उधार लेकर प्राप्त करेगी और बजट की 20 प्रतिशत राशि पिछले उधारों की ब्याज अदायगी में खर्च करेगी।</div>
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<div dir="auto">अब अगर निगाह उन मदों में खर्च पर डालें जिनका आम जनता के जीवन से कुछ सम्बन्ध है तो हमें पता चलता है कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में ही नहीं, ढेरों मामलों में निरपेक्ष रूप से भी बजट में कटौती की गयी है। एक सामान्य अनुमान के तहत सकल घरेलू उत्पाद चालू कीमतों पर गत वर्ष से 10 प्रतिशत बढ़ गया है पर सरकार ने बजट राशि गत वर्ष के संशोधित अनुमान (41.9 लाख करोड़ रु.) से मात्र 7 प्रतिशत ही बढ़ायी है। ऐसे में स्पष्ट है कि जिन भी मदों में 10 प्रतिशत से कम की वृद्धि हुई है उनमें सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में गिरावट हुई है।</div>
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<div dir="auto">यह देखते हुए कि पुलिस, सेना, रेल, सड़क परिवहन, आदि मदों में वृद्धि हुई है और स्पष्ट हो जाता है कि यह वृद्धि ढेरों जनोपयोगी मदों में कटौती करके ही हासिल हुई होगी।</div>
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<div dir="auto">बेरोजगारी की भयावह स्थिति को छिपाने के लिए सरकार द्वारा जारी बजट पत्रों में एक शीर्षक दिया गया है ‘बेरोजगारी 4 वर्षों की निम्नतम अवस्था में’। इसमें बताया गया है कि जनवरी 19 में यह दर 8.9 प्रतिशत थी, जनवरी 20 में 20.9 प्रतिशत व सितम्बर 22 में 7.2 प्रतिशत। भारी बेरोजगारी (जो 8 प्रतिशत से ऊपर विभिन्न आंकड़ों में है) के बीच सरकार का यह दावा बेहद हास्यास्पद है। जहां तक बेरोजगारी दूर करने के प्रावधानों की बात है तो सरकार ने मनरेगा के बजट में गत वर्ष के 89400 करोड़ रु. खर्च को घटा इस वर्ष महज 60,000 करोड़ रु. आवंटित किये हैं। नये रोजगार पैदा करना तो दूर सरकार ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के बजट को गत वर्ष के बजट प्रावधान 16893.68 करोड़ रु. से घटा 13221.73 करोड़ रु. कर दिया। कौशल विकास का भारी ढिंढोरा पीटने वाली सरकार ने गत वर्ष कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय हेतु 2999 करोड़ रु. बजट रखा था जिसमें महज 1901.71 करोड़ रु. ही गत वर्ष खर्च किये गये। अब इस वर्ष कुछ वृद्धि कर इस मद में 3517.31 करोड़ रु. बजट रखा गया है। राष्ट्रीय आजीविका मिशन के बजट से भी लगभग 100 करोड़ रु. की कटौती की गयी है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सरकार बेरोजगारी के मामले में कितनी गंभीर है।</div>
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<div dir="auto">इसी तरह खाद्यान्न, पेट्रोलियम, उर्वरक से लेकर एलपीजी सब्सिडी सबकी मदों में निरपेक्ष तौर पर कटौती की गयी है। एक ओर सरकार नये वर्ष में भी मुफ्त राशन 80 करोड़ लोगों को बांटने का ढिंढोरा पीट रही है दूसरी ओर खाद्यान्न सब्सिडी में भारी कटौती कर रही है।</div>
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<div dir="auto">पूंजीवादी मीडिया मध्य वर्ग को आयकर में दी नाममात्र की छूट का भारी ढिंढोरा पीट रहा है। पर इसका मकसद भी लोगों को आयकर के नये तरीकों की ओर ढकेलना है।</div>
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<div dir="auto">जहां तक पूंजीपतियों के हित में कदमों की बात करें तो पूंजीपतियों से वसूली जाने वाली एक राशि इस बार भी बट््टे खाते में डाल सरकार ने उन्हें सीधे लाभ पहुंचाया है। स्टार्ट अप के लिए कई छूटों के साथ उच्च आय वालों के लिए आयकर में बड़ी छूट प्रदान की गयी है। ढेरों क्षेत्रों में उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों को आगे बढ़ाने की बातें की गयी हैं। पूंजीपतियों को विवाद निपटारे आदि में और सहूलियतों की घोषणा की गयी है। उन्हें कुशल प्रशिक्षित मजदूर नाममात्र के वेतन पर और ‘रखो व निकालो’ की छूट के साथ उपलब्ध कराने की दिशा में तो सरकार पहले से कार्य कर रही है।</div>
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<div dir="auto">बजट से देश के पूंजीपति खुश हैं। पूंजीवादी मीडिया इस पर ताली पीट रहा है। और जनता बजट की तफसीलों में अपने लिए राहत का कोई कतरा ढूंढ रही है पर एक भी कतरा उसे नजर नहीं आ रहा है। बड़बोली सरकार का घोर पूंजीपरस्त बजट ऐसा ही है।</div>
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