कहानी - कुंभ स्नान

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प्रेम और आस्था के बीच एक फर्क है। प्रेम को मनुष्य जीवित रहते हुए प्राप्त करना चाहता है और ईश्वर को आयु पूरी करने के बाद। ईश्वर पर विश्वास करना एक सामान्य सी बात है, लेकिन अकस्मात ईश्वर के पास कोई जाना नहीं चाहता। कभी कोई किसी को यह आशीर्वाद नहीं देता कि भगवान के घर चला जा, हां आहत मन दुखी होने पर ईश्वर के पास भेजने का श्राप जरूर देता है। मृत्यु के बाद मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होगी या नहीं इसका कोई प्रमाण आज तक नहीं मिला है लेकिन मानव मन ये विश्वास जरूर करता है कि कुंभ स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है। मोहन लाल भी ऐसे ही इंसानों में एक हैं। पेशे से मजदूर हैं, कभी पहलवानी का शौक था। वक्त के बेरहम थपेड़ों ने पहलवानी के फितूर को तो उड़ा दिया लेकिन पहलवानी के किस्सों से पीछा नहीं छुड़ा पाए। अक्सर नए मजदूरों को पहलवानी के फायदे बताते हैं। 
    
रात को 9 बजे से खबरें देखना पसंद करते हैं। ड्यूटी से घर आकर, चाय पीना पसंद है। हाथ में चाय का कप लिए कुंभ का प्रसारण देख रहे हैं। जनाब के जीवन का यह पहला ऐसा कुंभ है जो 70 वर्षों में सिर्फ एक बार आता है। इस लिहाज से ऐसा पुण्य प्रताप का अवसर इन्हें जीवन में पहली और आखिरी बार मिल रहा है। साक्षात् गंगा जी के पवित्र घाट पर स्नान का सौभाग्य तो नहीं पाया जा सकता परन्तु घाट की भव्यता, रोशनी की चकाचौंध से गदगद हुए जाते हैं। बूढ़ी माता ने इस बार कुंभ स्नान की इच्छा जाहिर की है, मन ही मन प्रसन्न हैं कि खुद भले ही न सही लेकिन माता को तो ये सौभाग्य, पुण्य प्रताप मिल ही जाएगा और इसी बहाने उन्हें भी सुपुत्र होने का सौभाग्य मिल जाएगा।
    
मोहन दा बैठो! ये कमल की आवाज थी जो साइकिल से ड्यूटी जा रहे हैं। आटो रिक्शा का इंतजार कर रहे मोहन लाल के लिए ये फायदे वाली बात है। वैसे तो कमल, मोहन लाल के पड़ोसी हुए लेकिन दोनों के मध्य राजनीतिक घमासान छिड़ा रहता है। अब कमल ठहरे विधर्मी नास्तिक इंसान और मोहन लाल खुद को कट्टर हिंदू कहने पर तुले रहते हैं। लेकिन इस मतभेद के बावजूद भी दोनों ही एक-दूसरे से चर्चा करने में कभी कंजूसी नहीं करते। मोहन लाल जवानी के दिनों में शाखा से जुड़ गए थे। अब सीधे तो जुड़ाव नहीं रहा लेकिन अब भी खुद को हिंदुत्व का सिपाही मानते हैं। कमल की बातें अक्सर ही मोहन लाल की भावनाओं को आहत कर देती और दोनों के मध्य वाक्युद्ध शुरू हो जाता जो कंपनी पहुंचने तक चलता रहता।
    
मोहन दा सुना तुमने? इस बार सरकार की 40,000 करोड़ की कमाई कुंभ आयोजन से होने वाली है। और इस तथ्य के बाद जो वाक्युद्ध शुरू हुआ वो थोड़ा घमासान ही हुआ और अंत में जीत कुतर्कों की हुई क्योंकि आस्था खुद को जिला रखने के लिए कुतर्कों का दरवाजा खटखटाती है। कुंभ स्नान के बारे में बोली गई कोई भी आलोचना मोहन लाल को एक हमले के रूप में नजर आती जो मानो उनकी आस्था पर बोली गई हो। आस्था जो ईश्वर पर थी, प्रदेश के मुख्यमंत्री पर थी, उनके कट्टर हिंदुत्व पर थी और अंततः कमल पर सदैव ही धर्म विरोधी, मुस्लिम समर्थक होने का कुतर्क मढ़कर मोहन लाल खुद की नजरों में जीत जाते। मोहन दा तुम चलो मैं साइकिल स्टैंड पर लगा कर आता हूं। कार्यस्थल के गेट पर पहुंचते हुए राकेश ने कहा।
    
कई दिनों से कुंभ विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। बाबाओं की शार्ट वीडियो, इस बार पहली बार लोगों को बाबाओं के साथ अवघड महिला भी देखने को मिल रही हैं। तरह-तरह के बाबाओं के चमत्कारिक किस्से सुन कर मोहन लाल को सुखद अनुभूति हो रही है। मोहन लाल खुद क्योंकि भोले बाबा की बूटी के शौकीन हैं, दिन भर में दो-तीन बार बूटी का आनंद उठा लेते हैं। जब भी किसी शार्ट वीडियो में धुंआ उड़ाते नागा बाबाओं, साधुओं को देखते हैं तो ऐसा महसूस करते हैं मानो उन्हीं का अक्स हो। अगले हफ्ते माता को कुंभ स्नान के लिए भेजना है, गाहे बगाहे अपने जानने वालों से इस बात का जिक्र भी कर देते हैं।
    
मौनी अमावस्या को गंगा जी के विशेष घाट पर नहाने से महान पुण्य की प्राप्ति होगी ऐसा देश के करोड़ों लोगों का मानना है और उन करोड़ों लोगों में मोहन लाल भी शामिल हैं। शाम को ड्यूटी से आने के बाद दिन भर की हलचल के बारे में जानने की प्रबल इच्छा है और जैसे ही चैनल खोला तो मालूम चला कि स्नान के दौरान भगदड़ मचने से 25-30 लोगों की मौत हो गई है। देश के भीतर धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के दौरान मौतों का होना आम बात है। और इन मौतों की वजह खुद लोग होते हैं ऐसा मानने वाले मोहन लाल अकेले नहीं हैं। मुख्यमंत्री और कुंभ आयोजन के लिए बनाई गई चाक-चौबंद व्यवस्था के ऊपर जो श्रद्धा अभी तक बनी हुई थी वो अभी भी वैसे ही कायम है। अभी भी मोहन लाल की आस्था में कोई कमी नहीं आई है। और अब भी मोहन लाल मुख्यमंत्री का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति से वाक्युद्ध के लिए तैयार हैं।
    
इंसान जब भी किसी दूसरे को आहत होते देखता है तब उसके मन में क्या भाव पैदा होंगे यह इस बात से तय होता है कि इंसान के मन की बनावट कैसी है। मसलन इंसान किसी की मौत पर खुश भी हो सकता है और किसी मौत पर ग़मज़दा भी। लेकिन जब प्रश्न इंसान के परिवार के किसी सदस्य के जीवन से जुड़ा हो तब एक सामान्य इंसान ज्यादा मानवीय सोच का हो जाता है। जैसे-जैसे सत्य की परतें, परत दर परत उभरने लगती हैं वैसे-वैसे मोहन लाल बूढ़ी माता के प्रति ज्यादा संवेदनशील होने लगते हैं। बूढ़ा शरीर जो 30 किलोमीटर चलने के लायक नहीं है। बूढ़ी देह जिसके प्राण पखेरू निकलने के लिए सामान्य सा धक्का भी काफी हो सकता है। जिस अव्यवस्था, अराजकता को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया था परन्तु अब मोहन लाल का पवित्र विश्वास डगमगाने लगा है क्योंकि अब प्रश्न बूढ़ी माता के जीवन का है।
    
रात में अंधेरा गहरा था, सुबह धुंध अभी तक जमी थी अब समय ने कुहासे को नष्ट कर दिया है और सूरज तीव्र और प्रचंड है जिसमें सब कुछ साफ दिखने लगता है। मोबाइल पर नजरें गड़ाए मोहन लाल महसूस कर रहे हैं कि सरकार द्वारा उपलब्ध मौतों के आंकड़े झूठे हैं, मौतों का सिलसिला सैकड़ों में नहीं हजारों में है। एक सहज अनुमान लगता है कि इनमें ज्यादातर बूढ़े ही रहे होंगे। 30 किलोमीटर पैदल चलने वाली बात अब वास्तविक लगने लगी है। आस्था, कुंभ आयोजन की व्यवस्था, मुख्यमंत्री की आलोचना को सुनकर बिफर जाने वाले मोहन लाल शाम आते-आते शांत और चिंतित दिखाई दे रहे हैं। वास्तविकता की विकरालता के आगे अंधी श्रद्धा किसी कोने में दुबक गई है और उसका स्थान संवेदना और प्रेम ने ले लिया है।
    
करोड़ों लोगों को कुंभ में देखकर जो हर्ष की अनुभूति बीती रात तक थी अब वो हवा हो चुकी है। आज थोड़ा जल्दी घर पहुंच गए हैं। दिन में ही पत्नी को फोन करके बता दिए हैं कि माता जी के लिए पूरी रायता और सूखे आलू की सब्जी बना लेना। शाम को कुछ मीठा भी घर लेकर गए हैं। रात खाने के समय बूढ़ी माता के पास ही पालती मारकर बैठ गए हैं। भर पेट भोजन के बाद बूढ़ी माता ने बहू और बेटे को आशीर्वाद दिया और सोने चली गई। आज सोने से पहले मोहन लाल ने टीवी नहीं देखा और न ही इस सवाल पर ही दिमाग पर जोर दिया कि गंगा स्नान से पुण्य प्राप्ति होती है या नहीं क्योंकि जब भी प्रश्न प्रेम और ईश्वर के बीच चयन का होगा तो इंसान प्रेम को ही चुनेगा और प्रेम जीवित रहकर ही हासिल हो सकता है। आज शाम से ही अपने हर परिचित को फोन करके आगाह कर रहे थे कि घर के बूढों को कुंभ स्नान के लिए न भेजें और जो भी थोड़ा इधर-उधर की बोले उससे तार्किक होकर बहस कर रहे हैं।         -पथिक
 

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